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अकेलेपन की आग और बारूद का इंसाफ़
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 0 0
    25 Dec 2025 09:58 AM



उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में बेलघाट नाम का एक गाँव था, जहाँ गुलाब सिंह और अर्जुन सिंह, दो सगे भाई, रहते थे। गुलाब बड़ा था, और उसका पूरा जीवन पैसे कमाने के जुनून में सिमट गया था। शहर में उसकी कपड़े की दो दुकानें थीं; एक वह ख़ुद संभालता था और दूसरी उसका छोटा भाई अर्जुन। दोनों की मेहनत से घर में ख़ूब पैसा आता था, लेकिन इस दौलत की क़ीमत गुलाब की पत्नी निर्मला देवी चुका रही थी।

 

चार साल पहले निर्मला की शादी गुलाब से हुई थी। वह एक सुंदर और भावुक महिला थी, लेकिन गुलाब के लिए पैसा ही सब कुछ था। वह सुबह आठ बजे दुकान जाता और रात ग्यारह बजे थका-हारा लौटता। घर उसके लिए बस सोने की जगह थी।निर्मला घर के कामकाज निपटाकर अक्सर अकेली पड़ जाती थी। घर की चारदीवारी उसे काटने को दौड़ती थी। उसने कई बार गुलाब से गुहार लगाई, “गुलाब, थोड़ा समय परिवार को भी दो। मैं अकेली पड़ जाती हूँ।”

 

गुलाब उसकी बात अनसुनी कर देता। “पैसे कमा रहा हूँ तो किसके लिए, निर्मला? तुम्हारे लिए ही तो सब कर रहा हूँ।”

 

यही गुलाब की सबसे बड़ी ग़लती थी—उसने पैसे को समय का विकल्प मान लिया था। निर्मला का अकेलापन धीरे-धीरे विरक्ति में बदलता गया।

 

१५ अक्टूबर, २०२५ का दिन था। यह उनकी शादी की सालगिरह थी। सुबह निर्मला ने दोनों भाइयों के लिए खाना बनाया और टिफ़िन पैक किया। उसने हिम्मत करके गुलाब को फ़ोन किया।

 

“गुलाब, आज हमारी सालगिरह है। प्लीज़, आज रात जल्दी आ जाना।”

 

गुलाब ने बेपरवाही से जवाब दिया, “कोशिश करूँगा, अगर वक़्त मिला।”

 

निर्मला समझ गई। पिछले साल की तरह इस साल भी वह अकेली ही रहेगी। उसके भीतर का अकेलापन अब उसे ग़लत रास्ते पर धकेलने लगा। उसे लगा कि अगर उसका पति उसे ख़ुशी नहीं दे सकता, तो उसे ख़ुशी ख़ुद ही तलाशनी होगी।

 

भाग २: पहली फिसलन: अशोक

 

उसी दिन, निर्मला ने शहर जाने का फ़ैसला किया, यह सोचकर कि सालगिरह के बहाने कुछ शॉपिंग कर लेगी। वह बस अड्डे पर पहुँची और ऑटो रिक्शा का इंतज़ार करने लगी।

 

तभी गाँव का एक नौजवान, अशोक कुमार, अपनी ऑटो रिक्शा लेकर वहाँ आया। अशोक ने जब निर्मला को देखा, तो उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो गया।

 

निर्मला ने अशोक से शहर चलने को कहा। रास्ते भर अशोक उससे बातें करता रहा। बातों-बातों में निर्मला ने अपना दर्द बयाँ किया—गुलाब का पैसे के पीछे भागना, उसका अकेलापन, और उसका ख़ुश न रहना।

 

अशोक ने सहानुभूति दिखाई, जो निर्मला को बहुत रास आई। उसने तुरंत ताड़ लिया कि अशोक उसकी ओर आकर्षित हो रहा है।

 

निर्मला ने एक ख़तरनाक फ़ैसला लिया। “अशोक, मेरा एक काम करोगे? मैं तुम्हें दो हज़ार रुपये दूँगी।”

 

अशोक ने उत्सुकता से पूछा, “कैसा काम, मैडम?”

 

निर्मला ने साफ़ शब्दों में कहा, “आज तुम्हें मेरे साथ किसी होटल में चलना होगा। मेरे साथ वक़्त गुज़ारना होगा।”

 

पैसों की बात सुनकर और निर्मला की सुंदरता देखकर अशोक का इरादा भी डगमगा गया। ऑटो का रुख़ शहर के एक होटल की ओर मुड़ गया। होटल मालिक को डेढ़ हज़ार रुपये देकर निर्मला ने दो घंटे के लिए कमरा किराए पर लिया।

 

कमरे में, निर्मला और अशोक ने अपनी मर्ज़ी से एक-दूसरे के साथ वक़्त गुज़ारा। यह निर्मला के लिए एक तरह से अपने अकेलेपन और पति की उपेक्षा का बदला था। काम ख़त्म होने पर निर्मला ने ख़ुश होकर अशोक को दो हज़ार रुपये दिए।

 

“जब भी मुझे वक़्त मिलेगा, मैं तुम्हें फ़ोन करूँगी,” निर्मला ने कहा।

 

अशोक के लिए यह एक आसान कमाई और एक सुंदर महिला का साथ था। निर्मला के लिए, यह उसके अकेलेपन का इलाज था। इस तरह, उनका प्रेम-प्रसंग शुरू हो गया।

 

भाग ३: दूसरी फिसलन: रणवीर

 

दिन बीतते गए। निर्मला जब भी चाहती, अशोक को फ़ोन करती, और वे होटल में जाकर मिलते। निर्मला ख़ुश रहने लगी, क्योंकि उसकी इच्छाएँ पूरी हो रही थीं, और अशोक को पैसे मिल रहे थे।

 

३० अक्टूबर की रात, गुलाब थका-हारा घर लौटा। उसने निर्मला से कहा कि दुकान पर काम बढ़ गया है, इसलिए वह एक नौकर रखना चाहता है। निर्मला को लगा कि अगर नौकर रखा गया, तो गुलाब को घर के लिए थोड़ा वक़्त मिलेगा।

 

गुलाब ने उसी रात गाँव के एक नौजवान, रणवीर सिंह, को फ़ोन करके बुलाया। रणवीर, जो देखने में अशोक से भी ज़्यादा हैंडसम था, नौकरी के लिए तुरंत आ गया।

 

जैसे ही रणवीर और गुलाब बात करने लगे, निर्मला की नज़रें रणवीर पर टिक गईं। उसके मन में विचार आया, “यह लड़का तो अशोक से भी ज़्यादा आकर्षक है। इसे भी अपने जाल में फँसाना चाहिए।”

 

गुलाब ने रणवीर को अगले दिन से दुकान पर आने को कहा।

 

२ नवंबर की सुबह, गुलाब और अर्जुन दुकान पर चले गए। दस बजे निर्मला के प्रेमी अशोक का फ़ोन आया। निर्मला ने उसे होटल के बजाय घर पर ही आने को कहा, क्योंकि वह अकेली थी।

 

अशोक ऑटो लेकर घर आ गया। दस मिनट बाद, जब वे दोनों कमरे में थे, दरवाज़े पर दस्तक हुई।

 

निर्मला ने दरवाज़ा खोला तो सामने रणवीर खड़ा था। वह टिफ़िन लेने आया था, जो गुलाब भूल गया था। रणवीर ने अंदर आते ही कमरे में अशोक को देखा। वह तुरंत समझ गया कि माजरा क्या है।

 

निर्मला घबरा गई। “रणवीर, यह बात मालिक को मत बताना। मैं तुम्हें पैसे दूँगी।”

 

रणवीर की नीयत भी ख़राब हो गई। उसने कहा, “पैसे तो ठीक हैं, पर तुम्हें इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।”

 

रणवीर ने ज़िद की कि उसे उसी क्षण निर्मला के साथ वक़्त गुज़ारना है। अशोक और निर्मला बेबस थे। अशोक को पकड़े जाने का डर था, और निर्मला को बदनामी का।

 

मजबूरी में, निर्मला ने दरवाज़ा बंद किया और तीनों ने मिलकर उस कमरे में ग़लत काम किया। यह निर्मला के जीवन का सबसे निचला स्तर था—वह अब एक नहीं, बल्कि दो पुरुषों के साथ अपने पति के घर में संबंध बना रही थी।

 

भाग ४: देवर का पर्दाफ़ाश और पति का क्रोध

 

२० नवंबर तक, निर्मला का जीवन अशोक और रणवीर के बीच झूलता रहा। वह दोनों को जब चाहती, बुला लेती।

 

५ दिसंबर, २०२५ को, निर्मला ने अशोक को घर बुलाया। वे दोनों कमरे में थे, जब दरवाज़े पर ज़ोर से दस्तक हुई।

 

निर्मला ने दरवाज़ा खोला तो सामने उसका देवर अर्जुन खड़ा था। अर्जुन दुकान के लिए कैश लेना भूल गया था।

 

अर्जुन घर के अंदर आया और सीधे कमरे में गया। अंदर का नज़ारा देखकर उसके होश उड़ गए। निर्मला, अशोक और रणवीर को एक साथ देखकर अर्जुन को पूरा माजरा समझ आ गया।

 

“भाभी! यह क्या कर रही हो?” अर्जुन चीख़ा। उसने गुस्से में दोनों लड़कों को पीटना शुरू कर दिया।

 

अशोक और रणवीर, दोनों जवान थे, अर्जुन को धक्का देकर भागने में कामयाब हो गए।

 

निर्मला रोती हुई अर्जुन के पैरों में गिर पड़ी। “प्लीज़, देवर जी, भाई साहब को मत बताना! मैं तुम्हें भी ख़ुश कर दूँगी!”

 

अर्जुन ने निर्मला को अपनी माँ के समान माना था। उसकी आँखों में आँसू आ गए। “तुमने पाप किया है, भाभी। यह बात मुझे भाई को बतानी ही पड़ेगी।”

 

अर्जुन ने घर से कैश उठाया और सीधे शहर में गुलाब की दुकान पर पहुँचा।

 

“भाई, हमारी भाभी ग़लत रास्ते पर चली गई है। मैंने आज उसे अशोक और रणवीर के साथ रंगे हाथों पकड़ा है।”

 

गुलाब को अपने भाई पर अटूट विश्वास था। यह सुनकर उसका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ, बल्कि एक भयानक, नियंत्रित क्रोध में बदल गया। उसका सारा ध्यान पैसे से हटकर अपनी इज़्ज़त और धोखे पर केंद्रित हो गया।

 

“तुम दुकान संभालो,” गुलाब ने शांत आवाज़ में कहा। “मुझे घर पर ज़रूरी काम है।”

 

गुलाब दुकान से निकला। पास की एक दुकान से उसने एक मोटी रस्सी ख़रीदी। उसकी नज़र दिवाली के बचे हुए पटाखों पर पड़ी। उसने दुकानदार से झूठ बोला कि बेटे का जन्मदिन है और सारे पटाखे ख़रीद लिए।

 

भाग ५: बारूद का अंत

 

गुलाब घर पहुँचा। उसने निर्मला को देखा, जो अब भी मगरमच्छ के आँसू बहा रही थी।

 

“निर्मला, तुमने मुझे धोखा दिया?” गुलाब ने पूछा।

 

निर्मला ने साफ़ मुकर गई। “नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। अर्जुन झूठ बोल रहा है।”

 

गुलाब ने बहस नहीं की। उसने दरवाज़ा बंद किया, निर्मला को घसीटकर कमरे में ले गया, और रस्सी से उसके हाथ-पैर कसकर बाँध दिए।

 

फिर उसने पटाखों से निकाला हुआ सारा बारूद इकट्ठा किया।

 

निर्मला चीख़ने लगी, लेकिन गुलाब की आँखों में अब कोई दया नहीं थी। वह अपनी उपेक्षा और अपनी कमाई पर हुए धोखे का हिसाब बराबर करने जा रहा था।

 

गुलाब ने वह बारूद निर्मला के संवेदनशील हिस्से में भर दिया।

 

निर्मला दर्द से तड़प उठी। गुलाब ने माचिस की तीली जलाई और बारूद में आग लगा दी।

 

एक भयानक चीख़ के साथ निर्मला जलने लगी। उसकी चीख़ पुकार पड़ोसियों तक पहुँची। पड़ोसियों ने दरवाज़ा तोड़कर अंदर प्रवेश किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। निर्मला की जली हुई लाश कमरे में पड़ी थी।

 

गुलाब वहीं बैठा था, उसकी आँखों में अब एक अजीब सी शांति थी।

 

पुलिस आई, शव को बरामद किया और गुलाब को गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस स्टेशन में पूछताछ के दौरान, गुलाब ने शुरू से अंत तक अपनी पत्नी के भटकाव और अपने भयानक प्रतिशोध की पूरी कहानी सुनाई।

 

पुलिस ने गुलाब के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की। गुलाब ने जुर्म किया था, लेकिन यह जुर्म उस अकेलेपन, उपेक्षा और धोखे का परिणाम था जिसने एक इंसान को इतना क्रूर बना दिया।

 

अब यह भविष्य के गर्भ में छिपा है कि जज साहब गुलाब सिंह को क्या सज़ा सुनाएँगे। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, गुलाब सिंह ने अपनी पत्नी निर्मला देवी के साथ जो किया—क्या वह सही था या ग़लत? यह सवाल आज भी गोरखपुर के उस गाँव में गूँज रहा है।



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