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न्यायमूर्ति सूर्यकांत बनेंगे देश के 53वें चीफ जस्टिस, केंद्र को भेजी गई सिफारिश
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    27 Oct 2025 21:57 PM



नई दिल्ली। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे न्यायमूर्ति सूर्यकांत को देश के अगले प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए वर्तमान प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है।

वह प्रधान न्यायाधीश गवई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। 23 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद वह 24 नवंबर को भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश बनेंगे। इस वर्ष 14 मई को शपथ लेने वाले प्रधान न्यायाधीश गवई ने केंद्रीय विधि मंत्रालय से न्यायमूर्ति सूर्यकांत को अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है।

कहां से ताल्लकु रखते हैं न्यायमूर्ति सूर्यकांत?

सर्वोच्च न्यायालयकी ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, ''भारत के माननीय प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की अनुशंसा करते हैं, जो भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनके उत्तराधिकारी होंगे।''

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उन्हें 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। बहरहाल, उनका प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा। वह नौ फरवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है।

अनुच्छेद 370 निरस्त करने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों में रहे हैं शामिल देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत का दो दशकों का अनुभव है जिसमें उनके अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार, पर्यावरण और लैंगिक समानता पर ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं। वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था और निर्देश दिया था कि सरकार की समीक्षा तक इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज न की जाए।

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को रेखांकित करने वाले एक आदेश में उन्होंने चुनाव आयोग को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के दौरान मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख नामों का विवरण जारी करने के लिए प्रेरित किया। उन्हें यह निर्देश देने का भी श्रेय दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।

उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा, और सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों की स्थायी कमीशन में समानता की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी। वह उस सात जजों की पीठ में थे, जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था।

किन-किन मामलों की सुनवाई का थे हिस्सा?

वह पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा थे, जिसने गैरकानूनी निगरानी के आरोपों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार को ''राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में खुली छूट'' नहीं मिल सकती।

वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे हैं जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसे मामलों के लिए ''न्यायिक रूप से प्रशिक्षित दिमाग'' की आवश्यकता होती है।

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