देवेन्द्र चतुर्वेदी जी महाराज ने सनातन धर्म के कठिन उपासना में रत माता एवं बहनों को छठ महापर्व पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए बताया
छठ महापर्व सूर्य देव और छठी माई की आराधना का पावन पर्व है, जो श्रद्धा, शुद्धता और आस्था का प्रतीक माना जाता है। इसकी परंपरा रामायण और महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है, जो आज भी सनातन धर्म संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।लोक आस्था का महान पर्व छठ आरंभ हो चुका है, जो सूर्य देव और छठी माई की उपासना का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत 25 अक्तूबर को नहाय-खाय से हो रही है, इसके बाद 26 अक्तूबर को खरना, 27 अक्तूबर को संध्या अर्घ्य और 28 अक्तूबर को भोरवा घाट पर उषा अर्घ्य के साथ इसका समापन होगा। यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि शुद्धता, श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम है।छठ महापर्व की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं और इसका उल्लेख रामायण व महाभारत दोनों कालों से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि त्रेता और द्वापर युग में भी सूर्य उपासना का यह पवित्र अनुष्ठान किया जाता था। यही कारण है कि छठ पर्व को न सिर्फ लोक आस्था का प्रतीक, बल्कि हमारी सनातन परंपरा और पौराणिक संस्कृति से गहराई से जुड़ा पर्व माना जाता है।
रामायण काल से छठ पर्व का संबंध
रामायण काल में छठ पर्व की उत्पत्ति से जुड़ी कथा बेहद रोचक और श्रद्धा से भरी हुई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण वध के पश्चात हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए ऋषि-मुनियों की सलाह पर राजसूय यज्ञ करने का संकल्प लिया। इस यज्ञ के लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रण भेजा गया, लेकिन उन्होंने स्वयं अयोध्या न जाकर श्रीराम और माता सीता को अपने आश्रम में आमंत्रित किया।
मुद्गल ऋषि के बुलावे पर जब भगवान श्रीराम और माता सीता उनके आश्रम पहुंचे, तो ऋषि ने गंगा जल से माता सीता का शुद्धिकरण किया और उन्हें शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर सूर्य देव की उपासना करने का निर्देश दिया। ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता ने सूर्य देव की आराधना की और यही उपासना कालांतर में छठ महापर्व के रूप में मनाई जाने लगी।
महाभारत काल से छठ पर्व का संबंध
महाभारत काल में छठ पर्व का महत्व भी अत्यंत प्राचीन माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडवों ने अपना सब कुछ जुए में हार दिया था, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। इसके फलस्वरूप उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण सूर्यदेव के अत्यंत भक्त थे और वे रोजाना कई घंटे पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। सूर्यदेव के आशीर्वाद से ही कर्ण एक महान योद्धा बने।
छठ महापर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसकी महिमा इतनी व्यापक है कि अब यह पर्व देश के अन्य राज्यों और विदेशों में भी श्रद्धा के साथ मनाया जाने लगा है। असीम आस्था और भक्ति से भरे इस पर्व को न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि अन्य धर्मों में भी सम्मान और श्रद्धा के साथ देखा जाता है।
