फास्ट न्यूज इंडिया यूपी प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ परम पूज्य जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी योगेश्वराचार्य जी महाराज पीठाधीश्वर अतुलेश्वर धाम इंद्रप्रस्थ द्वारा श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह की अमृत वर्षा सगरा ढलान पर संपन्न कराई जा रही है। इसी क्रम में स्वामी जी ने कहा कि रासलीला के पांच अध्याय उसके पंच प्राण माने जाते हैं। रास शब्द का मूल रस है और रस स्वयं भगवान श्री कृष्ण ही हैं। " रसो वै स: "जिस दिव्य क्रीडा में एक ही रस अनेक रसों के रूप में होकर अनंत- अनंत रस का समा स्वादन करे, एक रस ही रस- समूह के रूप में प्रकट होकर स्वयं ही आस्वाद्द आस्वादक, लीला धाम और विभिन्न आलंबन एवं उद्दीपन के रूप में क्रीड़ा करे उसका नाम रास है। भगवान श्री कृष्णा शरद पूर्णिमा की रात के पावन अवसर पर महारास किया था। कुछ लोग समझते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपिकाओं के वस्त्र चुनरी, आदि को चुराया था। ऐसा नहीं है भगवान श्री कृष्णा ब्रह्म हैं, गोपीकाएं जीव हैं और वस्त्र अविद्या है। भगवान श्री कृष्ण अर्थात ब्रह्म ने गोपिका रूपी जीव के अविद्या रूपी वस्त्र का हरण किया था। साधना के दो भेद हैं मर्यादा पूर्ण वैध साधना और दूसरा मर्यादा रहित अवैध प्रेम साधना, वियोग ही संयोग का पोषक है। जैसे नन्हा सा बालक दर्पण अथवा जल में पड़े हुए अपने प्रतिबिंब के साथ खेलता है वैसे ही रमेश भगवान और ब्रज सुंदरियों ने रमण किया था। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में रास पंचाध्यायी पर अब तक अनेक अनेक भाषा और टीकाएं लिखी जा चुकी हैं जिनके लेखन में जगद्गुरु श्री वल्लभाचार्य श्रीधर स्वामी, श्री जीव गोस्वामी आदि हैं ।भगवान श्री कृष्णा आत्मा हैं, आत्माकार वृत्त श्री राधा है और शेष आत्माभिमुख वृत्तियां गोपियां हैं ।उनका धारा प्रवाह रूप से निरंतर आत्मरमण ही रास है। किसी भी दृष्टि से देखें रासलीला की महिमा अधिकाधिक पुष्टि होती है। भगवान श्री कृष्ण की इन लीलाओं का अनुकरण तो श्री कृष्ण ही कर सकते हैं। इसलिए श्री शुकदेव देव जी ने रासपंचाध्यायी के अंत में सबको सावधान करते हुए कह दिया है, भगवान के उपदेश तो सभी को मानने चाहिए परंतु उनके सभी आचरण का अनुकरण नहीं करना चाहिए। राम और कृष्ण दोनों एक है दोनों में कोई अंतर नहीं है। धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी ने वृंदावन में बरसते हुए बादलों के मध्य बैठकर के जब जलवृष्टि हो रही थी तो रासपंचाध्यायी पर अपना वर्णन कई दिनों तक किया और लोग सामने वृक्षों पर बैठकर के श्रवण किया करते थे। भगवान श्री कृष्णा विभु हैं ,परमेश्वर हैं ,लक्ष्मीपति हैं ,योगेश्वर हैं, आत्माराम है। इसलिए किसी को भ्रम नहीं करना चाहिए जो पुरुष श्रद्धा पूर्वक रासलीला का श्रवण और वर्णन करता है उसके हृदय का रोग काम बहुत ही शीघ्र नष्ट हो जाता है ।उसे भगवान का प्रेम प्राप्त होता है वहां माया से पर हो जाता है वह काम पर विजय प्राप्त करता है। धर्माचार्य ओमप्रकाश पांडे अनिरुद्ध रामानुज दास ने स्वामी जी को माल्यार्पण कर अंगवस्त्रम प्रदान कर स्वागत करते हुए कहा कि प्रतापगढ़ की धरती धन्य है जहां पर धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी सार्वभौम माधवाचार्य जी और परम विद्वान व्याकरणचार्य विद्वान स्वामी जी पीठाधीश्वर बैकुंठ धाम मंदिर प्रयागराज अवतरित हुए। इसी धरती पर स्वामी जी का भी जन्म हुआ जो निःस्वार्थ इंद्रप्रस्थ में अतुलेश्वर धाम पर बालकों को वेद वेदांग एवं संस्कृत तथा संस्कार की शिक्षा दे रहे हैं, और लोगों को श्री वैष्णव बनाने का कार्य कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुख्य रूपसे जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री श्री 1008 स्वामी अवधेश प्रपन्नाचार्य जी पं दिनेश शर्मा महेंद्र सिंह पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश राधेश्याम ओझा अरुण ओझा मुरलीधर ओझा मल्टी ओझा पदमनाभाचार्य हर प्रफुल्लाचार्य आनंद नारायण आचार्य रामकृष्णाचार्य महंत पं राम पूजन तिवारी के पी चतुर्वेदी अवधेश उपाध्याय विजय मिश्रा रोहित कुमार सुशील मिश्रा रविराज विकास ओझा आनंद ओझा उपेंद्र एवं अंबुज मिश्र सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित थे। रिपोर्ट विशाल रावत 151019049
