“हार-जीत का सफर” — एक अनमोल जीवन दर्शन
हार-जीत का सफर बहुत गहरा होता है,
जीवन में जितना लिखूं, उतना यह सफर छोटा है।
हार-जीत का खेल बड़ा निराला है —
कभी ऊँच, तो कभी नीच की मधुशाला है।
हार बोली जीत से — “मैंने इंसान को नीचा दिखाया,”
जीत बोली — “मैंने इंसान को नीचे से उठाकर बादशाह बनाया।”
जीत का जश्न, हार के बाद ही आता है,
कभी ऐश है तो कभी खेद है —
जीत उसी को मिली जिसने कुछ खोया है,
हार उसी को मिली जो तान के दुपट्टा डाल सोया है।
हार भी कई बार जीत का करिश्मा कर जाती है,
और जीत भी बहुत कुछ सिखा जाती है।
✍️ लेखिका: इंजी० खुशबू दुष्यंत सिंह
(M.Tech – Civil, विधि छात्रा, जनपद मथुरा, उत्तर प्रदेश)
