देश का सबसे पुराना चौथ माता मंदिर चौथ माता लगभग 567 साल पुराना है। ये मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा नाम के शहर में है। इस मंदिर की स्थापना 1451 में वहां के शासक भीम सिंह ने की थी। करवा चौथ का त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत में चौथ माता की पूजा जाती है और उनसे सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। चाैथ माता गौरी देवी का ही एक रुप है। इनकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान तो मिलता ही है साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी सुख बढ़ता है।
करीब 1 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर है ये मंदिर
चौथ माता मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना 1451 में वहां के शासक भीम सिंह ने की थी। 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी और तालाब का निर्माण कराया गया। इस मंदिर में दर्शन के लिए राजस्थान से ही नहीं अन्य राज्यों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। नवरात्र के दौरान यहां होने वाले धार्मिक आयोजनों का विशेष महत्व है। करीब एक हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर विराजमान चौथ माता जन-जन की आस्था का केन्द्र है।
चढ़नी पड़ती हैं 700 सीढ़ियां
शहर से 35 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मंदिर जयपुर शहर के आसपास का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। मंदिर सुंदर हरे वातावरण और घास के मैदान के बीच स्थित है। सफेद संगमरमर के पत्थरों से स्मारक की संरचना तैयार की गई है। दीवारों और छत पर शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। देवी की मूर्ति के अलावा, मंदिर परिसर में भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी दिखाई पड़ती हैं।
शुभ काम का पहला निमंत्रण माता को
हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य से पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं। प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही इसे कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है। कोई संतान प्राप्ति तो कोई सुख-समृद्धि की कामना लेकर चौथ माता के दर्शन को आता है। मान्यता है कि माता सभी की इच्छा पूरी करती हैं।
कब जाएं
वैसे से इस मंदिर की यात्रा साल में कभी भी की जा सकती है, लेकिन नवरात्र और करवा चौथ के समय यहां जाने का विशेष महत्व माना जाता है। नवरात्र में यहां मेल लगता है। इसके अलावा किसी भी समय यहां अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना के लिए जा सकते हैं।
करवा चौथ क्यों मनाया जाता है?
करवा चौथ व्रत का महत्व पति की लंबी उम्र और दाम्पत्य जीवन की सुख-समृद्धि से जुड़ा है। इसे खासतौर पर विवाहित महिलाएँ रखती हैं। आइए विस्तार से समझते हैं –
सुहाग की रक्षा के लिए
सुहागिन स्त्रियाँ पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को चाँद देखकर करवा चौथ का व्रत तोड़ती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पति की आयु लंबी होती है और दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
चौथ माता की पूजा
इस दिन चौथ माता (माता गौरी का रूप) की पूजा की जाती है। चौथ माता को अखंड सौभाग्य और सुहाग की रक्षक माना जाता है।
पौराणिक कथा से जुड़ा महत्व
साहूकार की बेटी और उसके भाइयों की कथा (जिसमें धोखे से व्रत तुड़वाने पर पति की मृत्यु हुई और बाद में चौथ माता की कृपा से जीवित हुआ) करवा चौथ व्रत के महत्व को दर्शाती है।
पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती
यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम, त्याग और विश्वास का प्रतीक भी माना जाता है।
करवा का महत्व
करवा यानी मिट्टी का घड़ा और “चौथ” यानी चतुर्थी तिथि। करवा में जल भरकर कथा सुनने और पूजा करने का विशेष महत्व है। यह समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए करवा चौथ को सुहाग, सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कामना से पूरे श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया जाता है।