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एक कटु सत्य कथा
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 0 1
    20 Sep 2025 11:02 AM



एक कटु सत्य कथा

*एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले में १०० ऊंट थे। उन्होंने खूंटियां गाड़कर ऊंट बांधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और रस्सी कहीं खो गई थी। अब आधी रात वे कहां खूंटी-रस्सी लेने जाएं?*

 

*काफिले के सरदार ने, वृद्ध सराय मालिक को उठाया - "बड़ी कृपा हो यदि एक खूंटी और रस्सी हमें मिल जाए। ९९ ऊंट बंध गए, एक रह गया - अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।"*

 

*वृद्ध बोले - मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी, किंतु एक युक्ति है। जाओ, और खूंटी गाड़ने का नाटक करो, और ऊंट से कह दो, सो जाए।*

 

 *काफिले का सरदार बोला - अरे, ये क्या पागलपन है..?*

 

*वृद्ध बोले - बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो!* 

*अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ये तो एक ऊंट है!* 

विश्वास तो नहीं था किंतु विवशता थी!

*उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। केवल आवाज़ हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया!*

 

*वे बड़े हैरान हुए,*

*एक अदभुत बात उनके हाथ लग गई!* 

*सो गए! सुबह उठकर उन्होंने ९९ ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए! किंतु सौवां ऊंट बैठा रहा। उसको धक्के दिए, पर वह नहीं उठा!*

 

*फिर वृद्ध से पूछा गया. वृद्ध बोले, "ऊंट, हिंदुओं की भांति बड़ा.... है! जाओ, पहले खूंटी निकालो! रस्सी खोलो!" सरदार बोले, "लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ!*

*वृद्ध बोले - जैसा बांधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का कर लो!"*

 

ऐसा ही किया गया, और ऊंट खड़ा हो गया !

*सरदार ने उस वृद्ध का धन्यवाद किया - "बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत गहरी है!"*

 

*वृद्ध बोले, "यह सूत्र, ऊंटों की जानकारी से नहीं, हिंदुओं की जानकारी से निकला है!"*

 

वह हिंदू, जिसको अंग्रेजों ने जाने से पहले, ...... खूंटे से बांध दिया था, 

आज भी वहीं बंधा है! 

वो आज भी मुगल और अंग्रेजी भाषा और संस्कृति की गुलामी कर रहा है.

उसे बार-बार बताने पर कि "तू स्वतंत्र हो गया है....",

खड़ा नहीं हो रहा!! 

*700 वर्षों की गुलामी की रस्सी गले में लटका कर घूम रहा है! जो उसे धक्के देकर उठाना चाह रहा है, उसे शत्रु मान रहा है! फिर से परतंत्रता की राह पर बढ़ रहा है!*कड़वा है पर सत्य है । उठो और जागो, अपनी भाषा और संस्कृति का सम्मान करो । 

*जय हिंद, जय भारत 🇮🇳 



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