गोली लगते ही डीएसपी हुमायूं की आंखों के सामने ज़िंदगी की सारी तस्वीरें घूम गईं — पत्नी की मुस्कान, नवजात बेटे की मासूमियत और घर के वो सपने जो अभी अधूरे थे। लेकिन एक अफसर की जिम्मेदारी और एक पिता-पति का दिल, दोनों की लड़ाई उस क्षण में साफ दिख रही थी। जब दर्द से कांपते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को वीडियो कॉल किया, तो वो सिर्फ एक कॉल नहीं था — वो एक आखिरी विदाई थी, एक पिता का अपने बेटे के लिए आखिरी संदेश था।
वीडियो कॉल के उस पल में हुमायूं की आवाज़ कांप रही थी, सांसें तेज़ हो रही थीं, और आंखों में आंसू थे — लेकिन चेहरे पर बहादुरी अब भी थी। उन्होंने पत्नी से कहा, "शायद अब न बचूं… हमारे बेटे का ख्याल रखना। उसे बताना कि उसके पापा उसे बहुत प्यार करते थे।" ये शब्द किसी भी इंसान के दिल को चीर देने के लिए काफी थे। एक जवान जो अपने कर्तव्य पर था, आखिरी सांस तक देश के लिए खड़ा रहा, लेकिन जाते-जाते अपने परिवार को नहीं भूला।
पत्नी की आंखों से आंसू बह रहे थे, वो कुछ कह भी नहीं पा रही थी — उस कॉल पर सिर्फ शब्द नहीं थे, वो एक पूरी ज़िंदगी का सार था। हुमायूं का यह आखिरी संदेश सिर्फ एक पत्नी के लिए नहीं, बल्कि उस समाज के लिए भी था जो अपने सिपाहियों को सिर्फ वर्दी में देखता है, इंसानियत के जज़्बात नहीं।
डीएसपी हुमायूं की शहादत हमें ये याद दिलाती है कि वर्दी के पीछे भी एक इंसान होता है — जो सपने देखता है, जो प्यार करता है, जो अपने परिवार के लिए जीता है। जब वो शहीद होता है, तो सिर्फ एक सिपाही नहीं, एक बेटा, एक पति, एक पिता भी दुनिया से चला जाता है।
उस आखिरी वीडियो कॉल की गूंज शायद जीवनभर उनके परिवार के दिलों में रहेगी। उनके बेटे को जब ये बताया जाएगा कि उसके पिता कैसे बहादुरी से लड़े, कैसे अपनी आखिरी सांसों में भी उसे याद किया, तो वो गर्व से कहेगा — "मैं शहीद हुमायूं का बेटा हूं।"
इस घटना ने देशभर को झकझोर दिया। ये सिर्फ एक शहादत नहीं थी, ये एक सच्चे देशभक्त की आखिरी पुकार थी। उसकी पीड़ा, उसका साहस, और उसका प्रेम — सब कुछ उस एक वीडियो कॉल में समाया हुआ था। यही होती है सच्ची वीरता, जो अंतिम सांस तक कर्तव्य और परिवार दोनों को नहीं भूलती।
