जैसे-जैसे दीपावली का पावन पर्व करीब आ रहा है, भरतपुर के बाजारों में मिट्टी से बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। परंपरागत शिल्पकार इन दिनों दिन-रात मेहनत कर मिट्टी की मूर्तियों को आकार देने में जुटे हुए हैं।
🎨 मिट्टी और प्लास्टर की मूर्तियां बनाना आसान नहीं
मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से मूर्तियां बनाना एक जटिल और मेहनत भरा काम है।
बारीक कढ़ाई, महीन रंगाई और प्राकृतिक लुक देने के लिए घंटों की मेहनत और वर्षों का अनुभव चाहिए।
मगर आधुनिकता और मशीनों की चमक ने इन पारंपरिक कारीगरों की मेहनत को कहीं हद तक नजरअंदाज कर दिया है।
🧑🎨 मिट्टी की मूर्तियां: परंपरा आज भी जिंदा है
भले ही बाजार में मशीन से बनी प्लास्टिक या सिंथेटिक मूर्तियों की भरमार हो, लेकिन आज भी कई लोग मिट्टी से बनी हस्तनिर्मित मूर्तियों को ही प्राथमिकता देते हैं।
इन मूर्तियों में परंपरा की खुशबू और संस्कृति का स्पर्श होता है, जो इन्हें खास बनाता है।
भारत सरकार द्वारा मूर्तिकला और परंपरागत हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं – जैसे कि:
लेकिन स्थानीय कलाकारों को इन योजनाओं की जानकारी नहीं है, जिस कारण वे सरकारी लाभों से वंचित रह जाते हैं।
चैनल की न्यूज़ का मानना है कि मिट्टी की मूर्तियां सिर्फ त्योहार का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं। इन्हें बचाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
📍 विशेष रिपोर्ट – योगेन्द्र शर्मा भरतपुर
📡 देखते रहिए फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया – आपकी आवाज़, आपका चैनल
