पत्रकारिता सिर्फ़ पेशा नहीं — यह संघर्ष है, जिम्मेदारी है और समाज की नब्ज़ है।
आज यह सवाल खड़ा है कि जब पत्रकारों पर दमन होता है तो बहुत से साथी चुप क्यों रहते हैं?
कलमकारों की स्याही सूखनी नहीं चाहिए, लेकिन अफसोस है उन पर जो कार्यक्रम और आंदोलनों से कतराते हैं, और पत्रकार हित के मुद्दों पर एक शब्द भी लिखने या प्रतिक्रिया देने से बचते हैं।
अब वक्त है कि हम सक्रिय और समर्पित पत्रकारों की पहचान करें, उन्हें जोड़ें और उनके सुख-दुख में साथ खड़े हों।
चाटुकारों को किसी भी सरकार या प्रशासन से खतरा नहीं है, लेकिन सच्चाई लिखने वाले पत्रकार हमेशा निशाने पर रहते हैं।
हर नेता और अधिकारी चाहता है कि मीडिया उसकी अच्छाइयाँ दिखाए, उसे महान बनाए — लेकिन जब पत्रकार भ्रष्टाचार, माफिया, शोषण और अपराध पर लिखते हैं तो वही लोग उनके दुश्मन बन जाते हैं। यही पत्रकारिता का असली मूल्य है सत्ता के आगे झुकना नहीं, जनता की आवाज़ उठाना।
तो फिर क्यों पत्रकार हमेशा सरकार और सिस्टम की आँख की किरकिरी बने रहते हैं?
अगर अन्याय उजागर करना अपराध है, तो सरकार क्यों न सभी पत्रकारों को जेल में डाल दे?
पत्रकारिता का अस्तित्व ही यही है कि चाहे धमकियाँ मिलें, जान पर जोखिम आए — फिर भी पत्रकार समाज, जनता और देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं। यही है पत्रकार का असली जीवन, असली धर्म।
राजेश शिवहरे कंट्री इंचार्ज मैगजीन फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया

