इस दिन प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा। भारतीय संस्कृति में पितरों के नाम समर्पित यह पक्ष 21 सितंबर आश्विन अमावस्या तक रहेगा, उसी दिन पितृ विसर्जन किया जाएगा। इसके अगले दिन 22 सितंबर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से मां आदिशक्ति की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आरंभ हो जाएगा। ज्योतिर्विद पं. ऋषि द्विवेदी का कहना है कि महालया का आरंभ भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से ही हो जाता है और यह आश्विन अमावस्या तक रहता है। जिस दिन पूर्णिमा उदयातिथि में होती है, उसी दिन महालया का आरंभ होता है और उसी दिन से श्राद्ध कर्म भी आरंभ होते हैं। चूंकि इस बार उदयातिथि में पूर्णिमा सात सितंबर को है, इसलिए महालयारंभ भी उसी दिन से होगा।
महालया का आरंभ चंद्रग्रहण से
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषि विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रमौलि उपाध्याय ने बताया कि भाद्रपद पूर्णिमा छह सितंबर की आधी रात के बाद 12.57 बजे से लग जाएगी जो सात सितंबर की रात 11.47 बजे तक रहेगी। श्राद्ध की पूर्णिमा सात सितंबर को मनाई जाएगी। इसमें अपने मातृकुल के पितरों का श्राद्ध तर्पण-अर्पण किया जाएगा। इसी रात्रि में खग्रास चंद्रग्रहण भी होगा जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में दृश्यमान होगा। चंद्रग्रहण रात्रि में 9.52 बजे से आरंभ होकर 1.27 बजे तक रहेगा। चंद्रग्रहण का मोक्ष होते ही आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। अत: प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा।
पूर्व विभागाध्यक्ष व श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि इस बार पितृपक्ष 14 दिनों का होगा। पंचमी व षष्ठी का श्राद्ध 12 सितंबर को होगा। मातृनवमी 15 सितंबर को तथा संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी 18 सितंबर को होगा। चतुर्दशी तिथि में 20 सितंबर को दुर्धटना या शस्त्र से मृत लोगों का श्राद्ध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पूरे दिनमान अर्थात सूर्योदय से सूर्यास्त तक के कालखंड को 15 भागों में विभाजित कर दिया जाय तो प्रथम से आठवें भाग के कालख्ंड में श्राद्ध कर्म किया जाता है।
पितृपक्ष में करें सात्विक तरीके से ब्रह्मचर्य का पालन
बीएचयू ज्योतिष विभाग के ही पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री बताते हैं कि सात सितंबर को पूर्णिमा के श्राद्ध से आरंभ पितरों की पूजा-उपासना का यह काल अत्यंत शुद्ध, सात्विक तरीके से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्यतीत करना चाहिए। इस काल में जिनके पिता जीवित नहीं हैं, उनकी पुण्यतिथि पर चौलकर्म करते हुए विधि पूर्वक पिंडदान, गरीबों को दान-पुण्य व ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
पितृदोष से बचने के लिए आवश्यक है पितरों की संतुष्टि
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुभाष पांडेय ने कहा कि पितृपक्ष के काल में पूर्वजों की पुण्यतिथि के अनुसार निश्चित तिथि पर उनके लिए पिंडदान करना चाहिए।
कर सकते हैं सभी प्रकार के पूजन-अर्चन
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पं. श्रीकांत मिश्रा बताते हैं कि भ्रम की स्थिति यह होती है कि लोग इस काल में पूजा-पाठ करने या मंदिर जाने से परहेज करते हैं। यह कोई सूतक काल नहीं, जिसमें मंदिर नहीं जा सकते, पूजा-अर्चना आदि नहीं कर सकते। यह एक पवित्र पक्ष है। इसमें सभी प्रकार के पूजन-अर्चन पूर्ववत किए जा सकते हैं। मंदिर आदि जाने में कोई दोष नहीं। इस पक्ष में नई वस्तुओं की खरीदारी भी की जा सकती है। हां, जिनके पिता नहीं हैं, उन्हें नए उपभोग की कोई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए। पिता की तिथि बीत जाने के बाद खरीदारी कर सकते हैं।