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वाराणसी के आदर्श पल्ली पट्टी इंटर कॉलेज में भव्य स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया गया
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    17 Aug 2025 01:08 AM



वाराणसी, उत्तर प्रदेश: 15 अगस्त, 2025 को वाराणसी के सिंधोरा रोड स्थित आदर्श पल्ली पट्टी इंटर कॉलेज में 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़े ही धूमधाम और देशभक्ति के उत्साह के साथ मनाया गया।

इस वर्ष का समारोह खास था क्योंकि इसकी शुरुआत विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने विद्यालय के दिवंगत मैनेजर सुभाष चंद्र सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके की। यह भावुक क्षण स्वर्गीय मैनेजर के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक था।

समारोह के मुख्य आकर्षण सांस्कृतिक कार्यक्रम थे, जिसमें कक्षा 6 से लेकर 12 तक के छात्रों ने भाग लिया। बच्चों ने देशभक्ति गीतों, नृत्यों और नाटकों के माध्यम से देश के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। हर प्रस्तुति में देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और एकता का संदेश निहित था।

प्रधानाध्यापक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने अपने संबोधन में छात्रों को देश के गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बारे में बताया। उन्होंने छात्रों को शिक्षा के महत्व और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका पर भी ज़ोर दिया।

इस भव्य आयोजन को सफल बनाने में विद्यालय के वर्तमान मैनेजर सुधीर सिंह और समस्त शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह समारोह न केवल एक कार्यक्रम था, बल्कि यह छात्रों में देशभक्ति और राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम भी था।

कार्यक्रम का समापन मिठाई वितरण और राष्ट्रगान के साथ हुआ, जिसने सभी में एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया।

 

 

वाराणसी की पावन भूमि पर, जहाँ गंगा की लहरें और काशी विश्वनाथ के मंदिर की घंटियाँ मिलकर एक दिव्य वातावरण बनाती हैं, वहाँ से कुछ ही दूरी पर, सिंधोरा राजमार्ग के पास, प्रकृति की गोद में स्थित है - आदर्श पलही पट्टी इंटरमीडिएट कॉलेज। यह सिर्फ ईंटों और पत्थरों से बनी एक इमारत नहीं, बल्कि पीढ़ियों के सपनों, संघर्षों और अटूट समर्पण का जीता-जागता प्रतीक है।

 

 

इस कहानी की शुरुआत साठ के दशक के शुरुआती वर्षों में होती है, जब इस क्षेत्र में शिक्षा की कमी थी और बच्चों को पढ़ने के लिए दूर-दराज के शहरों में जाना पड़ता था। उस समय, बसांव गाँव के एक दूरदर्शी शिक्षक, पंडित रामयस दुबे, जो प्राथमिक विद्यालय पलही पट्टी में प्रधानाध्यापक थे, ने इस समस्या को समझा। उनके मन में एक सपना पल रहा था - एक ऐसा इंटर कॉलेज बनाने का, जो इस ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को उच्च शिक्षा का अवसर प्रदान कर सके।

 

 

अपने सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने मियवा के बारी में एक स्थान पर एक छोटे से विद्यालय का निर्माण शुरू किया। कुछ दिनों तक सब ठीक चला, लेकिन कहते हैं कि अच्छी चीजों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कुछ स्थानीय लोगों, खासकर मुसलमानों ने, वहाँ विद्यालय के संचालन का विरोध किया, जिससे पंडित रामयस दुबे को वह स्थान छोड़ना पड़ा। लेकिन एक सच्चे शिक्षाविद की तरह, उन्होंने हार नहीं मानी। उनका विश्वास था कि ज्ञान की रोशनी को बुझाया नहीं जा सकता।

इसके बाद, वह पलही पट्टी गाँव के एक प्रतिष्ठित और हृदय से उदार व्यक्ति, श्री खेमई सिंह के पास गए। उन्होंने अपनी समस्या और अपने सपने को उनके सामने रखा। श्री खेमई सिंह ने पंडित रामयस दुबे के जुनून और दूरदर्शिता को तुरंत पहचान लिया। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी लगभग एक बीघा जमीन दान कर दी, यह कहते हुए कि 'यह जमीन सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि इस गाँव के बच्चों के भविष्य की है।'

इस तरह, दो महानुभावों के सहयोग से, उस भूमि पर आदर्श पलही पट्टी इंटरमीडिएट कॉलेज की नींव रखी गई, जहाँ यह आज भी गौरव के साथ खड़ा है। शुरुआत में, इस कॉलेज की बागडोर श्री त्रिलोचन मिश्र जी ने संभाली। जिन्होंने इस विद्यालय को लगभग सात एकड़ जमीन दान कर दिया। उनका सपना था कि यह विद्यालय खूब फले-फूले, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, और वे इस सपने को पूरी तरह साकार नहीं कर पाए।

फिर 1980 का दशक आया, और कहानी में एक नया अध्याय जुड़ा। एक नई प्रबंध समिति का गठन हुआ, जिसकी कमान श्री सुभाष चंद्र सिंह ने संभाली। उस समय, यह विद्यालय केवल हाई स्कूल तक ही सीमित था। श्री सुभाष चंद्र सिंह ने, अपने कुशल नेतृत्व और अथक प्रयासों से, इसे इंटरमीडिएट कॉलेज का दर्जा दिलाया। उन्होंने शासन और शिक्षा विभाग के साथ मिलकर काम किया, और जल्द ही कॉलेज को इंटरमीडिएट स्तर पर सभी विषयों की मान्यता मिल गई। उनके प्रयासों से आज यह कॉलेज 28 कमरों, अलग-अलग बालक और बालिकाओं के लिए शौचालय और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से लैस है।

आज, इस विरासत को आगे बढ़ाने का श्रेय श्री सुधीर कुमार सिंह को जाता है, जो वर्तमान में कॉलेज के प्रबंधक हैं। उनके मार्गदर्शन में, कॉलेज न सिर्फ अकादमिक रूप से प्रगति कर रहा है, बल्कि विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान दे रहा है।

कॉलेज की रीढ़ इसके शिक्षक हैं। प्रधानाचार्य श्री राजेंद्र प्रसाद सिंह और उप-प्रधानाचार्य श्री विजय नाथ शर्मा, दोनों ही अनुभवी और समर्पित शिक्षक हैं, जिनकी देखरेख में शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ रहा है। उनके नेतृत्व में, शिक्षकगण एक टीम की तरह काम करते हैं। सहायक शिक्षक के रूप में श्री वीरेंद्र कुमार सिंह, श्री राज किशोर पाल, श्री सुजीत सिंह, श्री इंद्रजीत सिंह, श्री अश्वनी कुमार पाठक, श्री संजय सिंह, श्री मधुसूदन सिंह, और श्री अवनीश कुमार जायसवाल अपनी योग्यता और अनुभव से विद्यार्थियों को सही राह दिखाते हैं।

प्रवक्ता के रूप में, श्री श्रवण कुमार विश्वकर्मा, श्री देवनाथ प्रसाद, श्री संतोष कुमार पाठक, श्री आलोक कुमार सिंह, श्री हीरालाल पांडे, श्री संतोष कुमार प्रजापति, श्रीमती दीपिका तिवारी, और श्री देवी चरण पटेल अपने-अपने विषयों में गहन ज्ञान के साथ छात्रों को शिक्षित करते हैं। सभी शिक्षक मिलकर कॉलेज को एक परिवार की तरह चलाते हैं, जहाँ ज्ञान का आदान-प्रदान और नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है।

यह कहानी सिर्फ कॉलेज के इतिहास की नहीं है, बल्कि उस समाज की भी है, जिसने मिलकर एक सपना देखा और उसे साकार किया। यह कहानी पंडित रामयस दुबे के संघर्ष, श्री खेमई सिंह की उदारता, और बाद में श्री सुभाष चंद्र सिंह और श्री सुधीर कुमार सिंह के नेतृत्व की है। यह एक ऐसा उदाहरण है कि कैसे एक छोटा सा विचार, अगर उसमें लगन और नेकनीयती हो, तो एक पूरे क्षेत्र के लिए ज्ञान का प्रकाश स्तंभ बन सकता है।

और आज, जब आप इस कॉलेज से गुजरेंगे, तो आपको सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उन अनगिनत कहानियों और सपनों की गूंज सुनाई देगी, जो इस पवित्र भूमि पर रचे गए हैं। यह हमें याद दिलाता है कि शिक्षा सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक मिशन है, जिसे पूरा करने के लिए समर्पण और त्याग की आवश्यकता होती है। जहां रामयस दुबे का सपना, खेमई सिंह का दान और त्रिलोचन मिश्र का सहयोग आज भी आदर्श पलही पट्टी इंटरमीडिएट कॉलेज की नींव है रामयस दुबे, खेमई सिंह और त्रिलोचन मिश्र, राम लखन सिंह की विरासत: एक ऐसा कॉलेज, जो सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि समर्पण की कहानी भी कहता है समय का चक्र भले ही घूमता रहे, लेकिन आदर्श पलही पट्टी कॉलेज की बुनियाद में रामयस दुबे, त्रिलोचन मिश्र और खेमई सिंह जैसे महानुभावों का योगदान हमेशा जीवित रहेगा। यह सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है, जिसकी रोशनी आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करती रहेगी।

 



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