वाराणसी। मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, शिक्षाशास्त्र विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ तथा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, चंदौली के संयुक्त तत्वावधान में आठ दिवसीय राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020: उन्मुखीकरण एवं संवेदीकरण कार्यक्रम के दूसरे दिन गुरुवार को भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं भारतीय शिक्षा शास्त्र पर विस्तृत व्याख्यान हुआ। प्रथम सत्र में मुख्य सन्दर्भदाता प्रो. कुशा तिवारी आचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय ने भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं भारतीय शिक्षा शास्त्र पर गहन एवं विस्तृत विचार रखा। उन्होंने कहा कि भारत की पारम्परिक ज्ञान की समृद्ध विरासत, जिसमें विज्ञान, कला, दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र चिकित्सा, व्याकरण और अन्य क्षेत्र शामिल है, यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवस्थित रूप में हस्तांतरित हो रहा है और यह आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक है। भारतीय ज्ञान प्रणाली केवल अध्यात्मिकता का ज्ञान नहीं है, बल्कि भौतिकता एवं जीविकोपार्जन का भी ज्ञान है। इस ज्ञान प्रणाली को प्रारम्भ से ही पाठ्यक्रम में शामिल करने पर बल दिया गया, ताकि छात्रों को जीविकोपार्जन एवं जीवन कठिनाई से अवगत कराया जा सके।
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. अजय कुमार सिंह, अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केन्द्र, काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के अन्तर्गत उपनिषदों पर विस्तृत चर्चा किया। उन्होने बताया उपनिषद, वेदों का अंतिम भाग हैं और इन्हें वेदांत भी कहा जाता है। इनमें से कुछ मुख्य उपनिषद हैं: ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य और बृहदारण्यक। इन उपनिषदों का अध्ययन विद्वानों और आम लोगों द्वारा किया जाता है। उपनिषदों की संख्या 108 होने का उल्लेख "मुक्तिकोपनिषद" में भी मिलता है। इन उपनिषदों को विभिन्न वेदों से जोड़ा गया है, जैसे कि ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद, कृष्ण यजुर्वेद, सामवेद औरअथर्ववेद। हालांकि, उपनिषदों की संख्या 108 से अधिक भी स्वीकार की गई है। उनमें से केवल 10 ही प्रमुख उपनिषद हैं: ईशा, केन, कठ, प्रश्न, मुंडका, मांडूक्य, तत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य और बृहदारण्यक। उपनिषदों से जीवन के गूढ़ार्थ प्राप्त होते हैं। समय की आवश्यकता है इनका दोहन कर अपने ज्ञान के क्षितिज को वैश्विक पटल पर विस्तृत किया जाये।
स्वागत करते हुए डायट प्राचार्य विकायल भारती ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत पुरातन भारतीय ज्ञान प्रणाली को समृद्ध एवं पुनर्जीवित करने, युवाओं में भारत की समृद्ध विरासत का भान कराने की आवश्यकता पर बल दिया। विभागाध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक प्रो. सुरेंद्र राम ने बताया कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास एवं उनमें जागरूकता विकसित करने के प्रयोजन से आयोजित किया जा रहा है, जिससे प्रतिभागियों को सीखने और बोध करने की आवश्यकता है। धन्यवाद ज्ञापन बैजनाथ पाण्डेय एवं डॉ. जितेन्द्र सिंह, सह समन्वयक ने किया।