वाराणसी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के आदित्य एल-1 मिशन ने बीते छह माह में 50 से अधिक तीव्र सौर ज्वालाओं की तस्वीरें साझा की हैं। इन तस्वीरों के माध्यम से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान विभाग के खगोल विज्ञानी सूर्य के वायुमंडल और अंतरिक्ष मौसम का गहन अध्ययन कर रहे हैं।
सौर ज्वालाएं सूर्य की सतह पर चुंबकीय ऊर्जा के विस्फोट से उत्पन्न होती हैं और अंतरिक्ष यानों, उपग्रहों, रेडियो संचार, विद्युत ग्रिड और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। यह ज्वालाएं 10 मिनट से दो घंटे तक प्रभावी रहती हैं और अगले कुछ माह में 50 से अधिक तीव्र ज्वालाओं की संभावना है।
आदित्य एल-1 के सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप ने सूर्य के बाहरी वातावरण (सोलर कोरोना) में शक्तिशाली सौर ज्वाला ‘कर्नेल’ को कैद किया है। ये ज्वालाएं एक्स-रे, गामा किरणें, रेडियो तरंगें, पराबैंगनी और दृश्य प्रकाश जैसी विद्युत चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करती हैं।
इनके कारण उपग्रहों के इलेक्ट्रानिक सिस्टम और सोलर पैनल को नुकसान, रेडियो ब्लैकआउट और हाई फ्रिक्वेंसी के कम्युनिकेशन (संचार) में व्यवधान का खतरा बढ़ जाता है। अन्य ग्रहों के आयनमंडल पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। बीएचयू के भौतिकी विभाग में खगोल विज्ञानी प्रो. अभय कुमार सिंह के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने इन ज्वालाओं का अध्ययन शुरू किया है।
डा. अमित पाठक, डा. कुंवर अलकेंद्र सिंह, डा. राज प्रिंस और डा. प्रशांत बेरा ने विश्लेषण के दौरान महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। प्रो. अभय के अनुसार, सौर ज्वालाएं सूर्य के धब्बों के ऊपर चुंबकीय क्षेत्र में संग्रहित ऊर्जा के अचानक मुक्त होने से उत्पन्न होती हैं।
इन्हें ए, बी, सी, एम और एक्स श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। इनमें एक्स श्रेणी सबसे शक्तिशाली होती है। यह ध्रुवीय क्षेत्रों में आरोरा (उत्तरी और दक्षिणी रोशनी) को भी बढ़ावा देती हैं। 22 फरवरी को आदित्य एल-1 ने फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर सहित निचले सौर वायुमंडल में अल्ट्रावायलेट चमक देखी थी।
यह पहली बार है, जब सूर्य की पूरी डिस्क को इस तरंगदैर्घ्य में इतने विस्तार से चित्रित किया गया। यह अवलोकन सौर गतिविधि और ऊर्जा हस्तांतरण की जटिलताओं को समझने में महत्वपूर्ण हैं। यह मिशन अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों को समझने और भविष्यवाणी करने में अहम भूमिका निभा रहा है।
