दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास ही एक ऐसा मोहल्ला है, जो छोटा तिब्बत भी कहते हैं। कॉलेज के छात्रों और पर्यटकों के लिए लोकप्रिय जगह है। यहां कई तिब्बती रेस्टोरेंट, एक मॉनेस्ट्री और कपड़े की दुकानें हैं। इस जगह का नाम है, मजनू का टीला। आइए जानते हैं कैसे पड़ा इस इलाके का नाम। अगर आप दिल्ली के रहने वाले हैं या दिल्ली घूमने गए हैं तो आपने 'मजनू का टीला' का नाम कभी न कभी सुना जरूर होगा। मजनू का टीला नाम सुन कर ऐसा लगता है, जैसे इसका रिश्ता लैला-मजनूं जैसे किसी मजनू से होगा लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ अलग है इसको लेकर कुछ कहानियां चलती हैं। कहते हैं, सिकंदर लोदी के शासन काल में ईरान से आए मजनू नाम के एक सूफी संत यहां एक टीले पर रहते थे। यमुना के किनारे बसे इस इलाके में यह संत लोगों को मुफ्त में नदी पार कराते थे। जिसके चलते यहां के स्थानीय लोगों ने इस जगह को 'मजनू का टीला' कहना शुरू कर दिया।
इस मोहल्ले की एक कहानी गुरु नानक देव से भी जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जब यहां आए थे तो मजनू ने उनकी खूब सेवा की थी, जिससे खुश होकर उन्होंने यहां कुछ दिन और रुकने का फैसला किया। ऐसा लोगों का दावा है कि स्वयं गुरु नानक देव ने ये घोषणा की थी कि ये जगह मजनू का टीला नाम से जानी जाएगी।
इस इलाके में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या रहती है। इसी वजह इस जगह को 'दिल्ली का लिटिल तिब्बत' नाम से जानते हैं। यहां कई तरह के तिब्बती रेस्टोरेंट और खाने-पीने की चीजों के लिए मशहूर है। रोजाना यहां काफी स्टूडेंट पहुंचते हैं। ये इलाका 1960 में शरणार्थियों को दिया गया था। 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद कई शरणार्थी जो पहले भारत-चीनी सीमा के पास अस्थायी रूप से बस गए थे, यहां आकर रहने लगे। हो गए। फिलहाल यह तिब्बत शरणार्थियों की दूसरी पीढ़ी यहां रह रही है। लोग इसे यूं ही लिटिल-तिब्बत या मिनी-तिब्बत नहीं कहते।
राजेश शिवहरे कंट्री ब्यूरो चीफ 151168597




