आहार और लाइफस्टाइल की गड़बड़ी ने कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को काफी बढ़ा दिया है। जो बीमारियां दो-तीन दशकों पहले तक 50-60 की उम्र के बाद देखी जाती थीं, उनका खतरा अब युवाओं में भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। अब 20 की उम्र में भी हड्डियों से संबंधित समस्याओं के मामले काफी बढ़ गए हैं। अस्पतालों की ओपीडी में 20 से कम उम्र के आर्थराइटिस और हड्डियों में दर्द की शिकायत वाले मरीजों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसके लिए आहार और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी के साथ विटामिन-डी की बढ़ती कमी को प्रमुख कारण मानते हैं।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि शहरीकरण, बढ़ते प्रदूषण और आधुनिक जीवनशैली जैसे कारकों के चलते विटामिन-डी की कमी वाले रोगियों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है। भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (आईसीआरआईईआर) की ओर से प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति में विटामिन-डी की कमी देखी जा रही है।
फ्री में मिलता है ये विटामिन, फिर भी कमी
विटामिन-डी शरीर के लिए कई प्रकार से आवश्यक माना जाता है। ये हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने के लिए तो जरूरी है ही साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (इम्युनिटी) को भी ठीक रखने के लिए हमें इस विटामिन की आवश्यकता होती है।
भारत जैसे देश में जहां सालभर सूरज की रोशनी भरपूर मिलती है, वहां विटामिन-डी की व्यापक कमी चौंकाने वाली है। सूर्य की रोशनी को इस विटामिन की सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है, यानि इसे प्राप्त करना भी बिल्कुल फ्री है, फिर भी हर पांचवां भारतीय इस जरूरी विटामिन की कमी से जूझ रहा है। भारत में यह एक छिपी महामारी के रूप में फैल रही है।
विटामिन-डी की कमी के कारण क्या हैं?
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस कमी का स्तर काफी भिन्न है। उत्तर भारत में 9.4 फीसदी से लेकर पूर्वी भारत में यह लगभग 39 फीसदी तक पहुंच चुका है। वैसे तो माना जाता है कि भारत में धूप की कोई कमी नहीं है, लेकिन वास्तविकता यह है कि शहरीकरण, बढ़ता प्रदूषण और आधुनिक जीवनशैली लोगों को पर्याप्त सूर्य संपर्क से वंचित कर रही है।
दिन का ज्यादातर समय ऑफिस के भीतर बैठे-बैठे बिताने के कारण भी लोगों का धूप से संपर्क कम होता जा रहा है जिससे कारण भी विटामिन-डी की कमी के मामले काफी बढ़ गए हैं।
अध्ययन में क्या पता चला?
साइंस नेचर जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, ट्यूनीशिया, अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों में कुल आबादी के लगभग 45 फीसदी लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे थे। वहीं 2022 में भारत के लगभग 49 करोड़ लोग विटामिन-डी की कमी से ग्रस्त थे।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम ने कहा कि ये कमी सिर्फ हड्डियों की कमजोरी या फिर ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों के खतरे को बढ़ाने तक ही सीमित नहीं है, विटामिन-डी की कमी कई अन्य प्रकार की क्रॉनिक बीमारियों के खतरे को बढ़ा देती है।
जिन लोगों में विटामिन-डी की कमी होती है उनमें समय के साथ मांसपेशियों की कमजोरी, थकान, अवसाद, दिल की बीमारियों, टाइप-2 डायबिटीज के साथ स्तन और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है।
कम उम्र से ही विटामिन की पूर्ति पर दें ध्यान
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, देश में बढ़ती इस 'साइलेंट समस्या' पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यता है। विटामिन-डी की कमी के कारण होने वाली बीमारियों की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ बढ़ने का भी जोखिम रहता है। शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की सेहत पर इसका गंभीर असर देखा जाता रहा है।
इस विटामिन की कमी को रोकने के लिए आहार और दिनचर्या में सुधार करना जरूरी है। सुबह के समय 10-15 मिनट हल्की धूप में जरूर वॉक करें।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी भारतीयों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें सूर्य के संपर्क में रहने पर जोर दिया गया है।
दूध-दही, नट्स, हरी सब्जियों और मांसाहार के माध्यम से शरीर में इस विटामिन की पूर्ति की जा सकती है।