भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने आश्वस्तकारी संकेत दिया है कि जून से सितंबर तक, भारत में संभवत: ‘सामान्य से अधिक’ या 87 सेमी के ऐतिहासिक औसत से 5 फीसदी ज्यादा मानसूनी बारिश होगी। अनुमान के मुताबिक होने पर, यह ‘सामान्य से अधिक’ बारिश का लगातार दूसरा साल होगा। जून से सितंबर तक अमूमन जितनी बारिश होती है, पिछले साल उससे 8 फीसदी ज्यादा मानसूनी बारिश हुई थी। यह खरीफ की बुआई के लिए अच्छी खबर है। इससे अनाज के भंडार में सुधार और निर्यात के लिए रिजर्व बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस साल सरकार ने आयात बिल घटाने के लिए, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दालों की खरीद की प्रतिबद्धता भी जतायी है। चूंकि अनाज के मुकाबले दालों को ज्यादा जमीन चाहिए होती है, पर्याप्त फसल के लिए अच्छी बारिश आवश्यक है। मानसून की भविष्यवाणी के लिए आईएमडी दो-चरणों वाली प्रणाली अपनाता है: पहली भविष्यवाणी अप्रैल में की जाती है, फिर मध्य-मई में सुधारा जाता है जिसमें वर्षा वितरण की अतिरिक्त जानकारी होती है। इन्हें मासिक आधार पर नियमित रूप से सुधार किया जाता है, साथ ही कई सारे अल्पकालिक पूर्वानुमान भी जारी किये जाते हैं। इस तरह, मौसम विज्ञान और इसके लिए आवश्यक गणनात्मक साधनों की सीमाओं को देखते हुए, यह जरूरी नहीं कि अप्रैल में जो भविष्यवाणी की जाती है वह आगे भी वैसी ही सामने आये। हालांकि, इस साल अल नीनो की अनुपस्थिति के बारे में निश्चितता है। भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के गर्म होने से ताल्लुक रखने वाला अल नीनो 10 में से छह साल कमजोर मानसून के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में बिना अल नीनो का मानसून भारत के लिए शुभ संकेत है। एक और उत्साहजनक कारक ‘यूरेशियन हिम आच्छादन’ कहलाने वाला मानदंड, या उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया के हिम आच्छादित इलाके (जनवरी-मार्च, 2025) हैं। ये ‘सामान्य से कम’ थे, और आईएमडी के मौसम-विज्ञानियों के मुताबिक, इनका उस साल की ग्रीष्मकालीन मानसूनी बारिश के साथ ‘उलटा संबंध’ होता है। उलटा संबंध का मतलब है कि कम हिम आच्छादन ज्यादा बारिश का संकेत है। अपनी मानसून भविष्यवाणियों के लिए, आईएमडी ऐसे मौसम मॉडलों का इस्तेमाल करता है जो महासागर और वातावरण का अनुरूपण (सिमुलेशन) करते हैं। इस साल, अल नीनो के लिए छोड़ दें तो, कोई भी ‘महासागरीय मानदंड’इस बारे में किसी तरह का संकेत नहीं देता कि मानसून कैसा रहेगा। यह असामान्य नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह है कि उप-महाद्वीप के ज्यादा निकट कारक – मसलन, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवाती गतिविधियां – मानसून के लिए ज्यादा अहम होंगे। सामान्य से अधिक बारिश बीते वर्षों में बाढ़ और भूस्खलन लेकर आयी है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों ने ज्यादा गंभीर बना दिया है। पिछले साल की केरल की वायनाड आपदा, जिसमें कम-से-कम 200 लोग मारे गये और इससे कई गुना विस्थापित हुए, बस केवल एक उदाहरण है। इसलिए, मानसून के मोर्चे पर सकारात्मक खबर से केंद्र और राज्यों का ध्यान जान-माल का नुकसान न्यूनतम करने के लिए समुचित बुनियादी ढांचे की स्थापना से नहीं भटकना चाहिए।