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स्वतंत्र एवं निष्पक्ष: निर्वाचन आयोग, पारदर्शिता की मांग
  • 151171416 - AKANKSHA DUBEY 0 0
    21 Mar 2025 17:41 PM



फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया 

ऐसा मालूम होता है कि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने चुनावों में बूथ-वार डाले गए मतों की पूर्ण संख्या का खुलासा करने को लेकर अपना रुख नरम कर लिया है। पिछले साल, बहु-चरणीय आम चुनाव के बीच जब इस आशय का सवाल उठा था, तो भारत निर्वाचन आयोग का रुख यह था कि फॉर्म 17-सी, भाग एक, जिसमें प्रत्येक मतदान केंद्र में कुल मतदाताओं की संख्या तथा असल में मतदान करने वालों की संख्या दर्ज होती है, का विवरण उम्मीदवार या उसके मतदान एजेंट के अलावा किसी अन्य को जाहिर करने का उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं है। लेकिन हाल ही में हुई एक सुनवाई के दौरान, इसने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार, जिन्होंने हाल ही में पदभार संभाला है, उन संगठनों और व्यक्तियों के प्रतिनिधियों से मिलने के लिए तैयार हैं, जिन्होंने निर्वाचन आयोग को फॉर्म 17-सी की स्कैन की हुई, अभिप्रमाणित और सुपाठ्य प्रतियां अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के प्रतिनिधियों को निर्वाचन आयोग को एक ज्ञापन देने और मुलाकात की मांग करने को कहा है। भले ही इसका यह मतलब नहीं है कि भारत निर्वाचन आयोग मतदाताओं की पूर्ण संख्या को सर्वत्र उपलब्ध कराने पर सहमत हो गया है, लेकिन इसके नतीजतन मतदान प्रतिशत के बारे में, संख्या और प्रतिशत दोनों के संदर्भ में, प्रकटीकरण की एक प्रणाली विकसित हो सकती है। वर्ष 2024 में, ईसीआई ने अपने वोटर टर्नआउट ऐप के जरिए मतदान के बारे में कुछ विवरण जारी तो किए थे, लेकिन यह अंतहीन अटकलों का एक स्रोत भी बन गया था क्योंकि ऐप में दिए गए प्रतिशत मतदान के अंत में बताए गए प्रतिशत से असामान्य रूप से ज्यादा दिखाई दिए। अंत में यह बात सामने आई कि मतदान के दिन घोषित मतदान प्रतिशत और सभी बूथों से प्राप्त जानकारी के आधार पर बाद में संशोधित आंकड़ों के बीच पांच से छह प्रतिशत अंकों का फासला है। इसे आमतौर पर दूर-दराज के इलाकों में स्थित बूथों सहित सभी बूथों से आंकड़े इकठ्ठा करने में हुई देरी का नतीजा बताया जाता है। हालांकि, अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि फॉर्म 17-सी उपलब्ध बूथ एजेंटों द्वारा हाथोंहाथ हासिल किया जाता है और चुनाव अधिकारियों के लिए इसे 48 घंटे के भीतर स्कैन करना और अपलोड करना कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं की मुख्य शिकायत यह है कि डाले गए मतों की पूर्ण संख्या के अभाव में तथा सिर्फ मतदान प्रतिशत के आंकड़े उपलब्ध होने की वजह से आने वाली विसंगतियों के चलते अंतिम नतीजे जारी होने पर पूरी प्रक्रिया पर संदेह पैदा होगा। इस मसले पर याचिकाकर्ताओं से मिलने की पेशकश करके भारत निर्वाचन आयोग ने अच्छा काम किया है। किसी भी चुनाव के निष्पक्ष न होने की आशंका को कम करने के लिए उठाए गए प्रक्रियात्मक कदम का कोई हठधर्मी विरोध नहीं हो सकता। यह कहना बेमानी है कि चुनावी प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता की मांग करने वाले हरेक कदम का मकसद आयोग की विश्वसनीयता को कमजोर करना या चुनावी प्रक्रिया को गलत तरीके से पेश करना है। पारदर्शिता बढ़ाने और ऐसा करने में लगने वाले वक्त को कम करने के लिए मौजूदा प्रक्रियाओं व कार्यप्रणालियों का निरंतर पुनर्मूल्यांकन होते रहना चाहिए।

 

 

 

 



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