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*जयपुर:* राजस्थान सहित उत्तर भारत में सुहागिनों का सबसे बड़ा त्योहार गणगौर होली के एक दिन बाद यानी शनिवार से घर-घर में मनाया जाएगा। कुँवारी लड़कियाँ, नवविवाहिता और महिलाओं ने अपने सभी साथियों के साथ मिलकर पूरा उत्साह दिखाया। इसमें युवतियां महिलाएं ईसर (शिव) और गणगौर (पार्वती) की पूजा करती हैं।
*गणगौर का त्यौहार कब मनाया जाता है:*
यह व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और यह भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इसे तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है। "गणगौर" नाम "गण" (भगवान शिव) और "गौर" (माता पार्वती) का मेल है।
*यह व्रत कैसे रखा जाता है:*
गणगौर व्रत कथा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए लिखती हैं। इसके अलावा रोमांस भी रोमांस वर के लिए यह व्रत रचती हैं। क्योंकि धार्मिक धार्मिकों के जो महिलाएं यह व्रत लिखती हैं उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं इस साल कब मनाया जाने वाला गणगौर व्रत, क्या है इसकी पूजा विधि और महत्व।
*गणगौर व्रत का शुभ उत्सव:*
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि प्रारंभ: 31 मार्च, प्रातः 9 बजकर 11 मिनट
पर लेकिन इसकी शुरुआत आज यानि 15 मार्च से शुरू हो रही है जो 16 दिन तक है।
*गणगौर पूजा विधि:*
गणगौर व्रत के दिन सुबह जल्दी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद सबसे पहले पूजा के लिए गणगौर यानि भगवान शिव और माता पार्वती की छोटी सी मिट्टी की मूर्ति। फिर उन्हें सुंदर वस्त्र वस्त्र. इसके बाद माता पार्वती की सुहागरात की सभी खोजें। भगवान शिव और माता पार्वती को चंदन, अक्षत, रोली, कुमकुम और दूर्वा निर्भय करें। उनके सामने धूप और दीप जलते हैं। उन्हें फल, मिठाई और चूरमा का भोग लगाया जाता है। फिर एक थाली में सुहागरात में चांदी का सोना, पान, सुपारी, दूध, दही, गंगाजल, हल्दी, कुमकुम और दूर्वा दाल लें। फिर हाथ में दूर्वा दल लेकर भगवान शिव और माता पार्वती पर छिड़कें। फिर दोनों का ध्यान कर खुद को सुहागरात पर जल छिड़कें। इसके बाद गणगौर व्रत की कथा पढ़ें। अंत में आरती के साथ पूजा का समापन करें।
*जयपुर में है गणगौर माता की शाही सवारी:*
राजस्थान में, जयपुर में गणगौर माता की सवारी एक प्रसिद्ध लोक पर्व है, जिसमें रॉयल लवाजमे के साथ सवारी चलती है। जयपुर में गणगौर की शाही गाड़ी चलती है जो त्रिपोलिया गेट से गणगौर बाजार तक चलती है, जिसमें हाथी, घोड़े और घुँघरू रॉयल लवाजमे शामिल होते हैं। जयपुर की गणगौर की शाही गाड़ी का इतिहास काफी पुराना है और यह जयपुर के राजपरिवार से जुड़ी हुई है।
