लंदन में एक खालिस्तानी प्रदर्शनकारी के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कार की ओर बढ़ने से जो सुरक्षा संबंधी उल्लंघन हुआ, उसने उनके ब्रिटेन और आयरलैंड के हफ्ते भर के लंबे दौरे से जुड़ी सुर्खियों को गौण बना दिया। और विदेश मंत्रालय ने मंत्री के ब्रिटिश मेजबानों के सामने अपनी नाखुशी साफ जाहिर की। हालांकि, पूर्व-निर्धारित दौरे में कोई बदलाव नहीं किया गया और जयशंकर ने डर को दरकिनार करते हुए, एलान किया कि भारत-ब्रिटेन संबंध अपने “जटिल इतिहास” और मौजूदा समस्याओं के बावजूद एक “बहुत बड़ी तेजी” के लिए तैयार हैं। भारत मैनचेस्टर और बेलफास्ट में अपने दो वाणिज्य दूतावासों के साथ ब्रिटेन में अपनी क्षमताओं का निर्माण कर रहा है, जबकि जयशंकर ने ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड लैमी के साथ, बहु-विलंबित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंजाम तक पहुंचाने पर केंद्रित बातचीत आगे बढ़ायी। यह समझौता साल 2020 में ब्रिटेन के ‘ब्रेक्जिट’ के बाद पूरा होना था, लेकिन नहीं हो पाया है। आयरलैंड में भी हुई चर्चाओं में एफटीए को लेकर बातचीत ही हावी रही। और, यह भारत और यूरोपीय संघ द्वारा साल 2025 के अंत तक द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) पूरा करने की प्रतिबद्धता जताये जाने के कुछ दिनों बाद हुआ है। इस बीटीए पर बातचीत साल 2007 में शुरू हुई थी। ब्रिटेन के साथ 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयरलैंड के साथ 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है जो यथाशक्ति नहीं है। और, आपसी सहयोग बढ़ाना, खासकर उच्च-तकनीक से जुड़े व्यापार में, दोनों राजधानियों के एजेंडे में था। एफटीए पर बातचीत पिछले महीने भारत-ब्रिटेन के बीच दोबारा शुरू हुई और इस हफ्ते भारत-यूरोपीय संघ के बीच एक और दौर संपन्न हुआ। इन एफटीए वार्ताओं को अमेरिका के साथ आयात शुल्क (आयात शुल्क ब्रिटेन और ईयू के लिए भी गतिरोध का मुद्दा रहा है) पर भारत के अधिक समझौताकारी रवैये से फायदा होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की मांगों के आगे झुकते हुए, सरकार का वाइन व स्प्रिट, मोटर व इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क घटाने का निर्णय इसका एक उदाहरण है, और भारत-अमेरिका बीटीए पर बातचीत में ऐसी और कटौतियों की उम्मीद है।
इस लिहाज से, ट्रम्प द्वारा अमेरिकी गठबंधनों और व्यापार नीति का पुनर्विन्यास जयशंकर के लिए मददगार हो सकता है। यह यात्रा यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के नेतृत्व वाले ईयू प्रतिनिधिमंडल और बेल्जियम की राजकुमारी एस्ट्रिड की अगुवाई वाले वरिष्ठ मंत्री-स्तरीय व कारोबारी दल के दिल्ली दौरे के बाद हुई, जिसने यह एहसास कराया कि यूरोप नये और ज्यादा भरोसेमंद दोस्त तलाश रहा है। इसके अलावा, जयशंकर की यात्रा व्हाइट हाउस में ट्रम्प और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच उस नाटकीय भिड़ंत के ठीक बाद हुई, जिसके चलते आनन-फानन में लंदन में गैर-अमेरिका नाटो देशों की शिखर बैठक बुलायी गयी, जहां ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने “राजी देशों के गठबंधन” के साथ यूक्रेन को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जतायी। चूंकि अटलांटिक के पार भूराजनीतिक और भू-वित्तीय आकलनों पर दोबारा काम किया जा रहा है, भारत कूटनीति में तेजी लाकर और दोनों पक्षों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर लाभ उठाने की स्थिति में है।
