फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया मेडिकल क्षेत्र में नवाचार, आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और प्रभावी रणनीति की मदद से पिछले दो दशकों में भारत ने कई प्रकार की बीमारियों पर जीत हासिल की है। हालांकि ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) अब भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण बना हुई है। भारत सरकार ने इसी साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने की लक्ष्य निर्धारित किया था, हालांकि जिस तरह के डेटा प्राप्त हो रहे हैं उसे देखते हुए ये लक्ष्य अभी बहुत दूर नजर आता है।
ट्यूबरकुलोसिस या क्षय रोग (टीबी) एक गंभीर बीमारी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। 13 दिसंबर 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में बताया-
भारत में टीबी के मामलों की दर कम हुई है। साल 2015 में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 237 लोगों को ये बीमारी थी जो 2023 में 17.7 प्रतिशत घटकर प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 195 हो गई है। टीबी से होने वाली मौतों में भी 21.4 प्रतिशत की कमी आई है, जो 2015 में प्रति लाख जनसंख्या पर 28 से घटकर 2023 में प्रति लाख जनसंख्या पर 22 हो गई है।
सरकार के प्रयासों से टीबी के मामलों में कमी तो जरूर आई है, पर देश से टीबी उन्मूलन का लक्ष्य अब भी काफी दूर नजर आ रहा है।
भारत में टीबी के मामले
भारत में हर साल टीबी के लाखों नए मामले तो सामने आ ही रहे हैं इसके साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के डेटा के मुताबिक देश में 40 प्रतिशत मरीज ऐसे भी हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं देखे जाते हैं। इन मरीजों से भी संक्रमण के प्रसार का खतरा हो सकता है जोकि टीबी के खात्मे की दिशा में बड़ा चैलेंज माना जाता रहा है।
भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को खत्म करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना ck
देश में टीबी से संबंधित प्रगति
राष्ट्रीय स्तर पर करीब 17 हजार ग्राम पंचायतों ने बीते एक साल में एक भी नया मामला नहीं मिलने का दावा किया है। उत्तर प्रदेश से साल 2024 में 7,755 ग्राम पंचायतों ने टीबी मुक्त होने का प्रमाण हासिल करने का दावा किया है। इनमें अकेले सिद्धार्थनगर जिले से 216 ग्राम पंचायतों ने राज्य सरकार को आवेदन किया है।
उत्तर प्रदेश के राज्य टीबी अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने बताया कि 2023 में कुल 1,372 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त घोषित किया गया। वहीं, बीते एक वर्ष में 7,755 ग्राम पंचायतों ने आवेदन किया है जिसका सत्यापन एक सप्ताह में पूरा होगा।
वहीं दूसरी ओर हाल ही में तमिलनाडु टीबी प्रसार सर्वेक्षण में 39% सबक्लिनिकल टीबी के मामले पाए गए। सब क्लिनिकल टीबी का मतलब उन रोगियों से है जिनमें बीमारी के लक्षण जैसे खांसी या कफ आदि नहीं दिखाई देते हैं। ऐसे मामलों को देखते हुए सभी राज्यों को बिना लक्षण वाले मरीजों को निगरानी में लेने और जांच कराने की सलाह दी गई है।
दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 26 लाख नए टीबी मरीज मिल रहे हैं जबकि कुल मरीजों की संख्या 28 लाख से अधिक होने का अनुमान है। इनमें 42.6% ऐसे भी हैं जिनमें बीमारी का लक्षण नहीं है, इन लोगों से समुदाय में संक्रमण फैलाने का जोखिम अधिक हो सकता है क्योंकि इन्हें अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं होता है और ये बचाव के लिए जरूरी उपाय भी नहीं कर रहे होते हैं।
क्या कहती हैं विशेषज्ञ?
बातचीत में नोएडा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (निम्स) में कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ रेनू सोनी बताती हैं, 2025 में भी देश से टीबी खत्म करने का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा, इसका एक कारण ये है कि बहुत से लोग लंबे समय तक बने रहने वाले कफ और बुखार को अनदेखा कर देते हैं। दो सप्ताह से अधिक समय तक अगर खांसी की दिक्कत बनी रहती है और कफ या खून आता है, सीने में दर्द, कमजोरी या थकान की समस्या रहती है तो ये टीबी का संकेत हो सकता है। इसकी तुरंत जांच और इलाज कराएं।
कुछ मरीजों में टीबी के कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं, पर जब उनकी इम्युनिटी कमजोर होती है तो इसके स्पष्ट संकेत दिखने लगते हैं, इसे लेटेंट ट्यूबरक्यूलोसिस कहा जाता है। अगर आपके परिवार में किसी को टीबी है तो अन्य लोगों को भी स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए, इससे समय पर पता लगाया जा सकता है। टीबी की दवा को कभी कोर्स पूरा होने से पहले नहीं छोड़नी चाहिए।
वैश्विक स्तर पर टीबी के मामले
ऐसा नहीं है कि टीबी सिर्फ भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए चिंता का कारण बना हुआ। कई अन्य देश भी इससे परेशान रहे हैं, हालांकि वैश्विक टीबी का लगभग 26% हिस्सा अब भी भारत से ही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक रिपोर्ट में बताया कि साल 2023 में दुनियाभर में 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों में तपेदिक का पता चला है। यह संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा 1995 में ट्रैक रखना शुरू करने के बाद से दर्ज किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या है।
इससे पहले 2022 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी के 7.5 मिलियन (75 लाख) मामले दर्ज किए। पिछले साल लगभग 1.25 मिलियन (12.5 लाख) लोगों की टीबी से मृत्यु भी हुई है।
ड्रग रिजेस्टेंस टीबी भी बन रहा खतरा
देश में ड्रग रिजेस्टेंस टीबी के मामले भी काफी चुनौतीपूर्ण रहे हैं। हाल ही में प्रयागराज महाकुंभ के दौरान भी 19 मरीजों में ड्रग सेंसिटिव टीबी और एक ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का मरीज भी पाया गया। ड्रग रिजेस्टेंस टीबी (टीबी), टीबी का एक प्रकार है जो उन बैक्टीरिया के कारण होता है जो एंटी-टीबी दवा के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। ऐसे मरीजों पर टीबी के सामान्य उपचार का असर नहीं होता है।
इसको लेकर साल 2021 में मौखिक दवा की शुरुआत की गई थी, इस पहल की मदद से ड्रग रिजेस्टेंस टीबी के उपचार की दिशा में बड़ी सफलता मिली है। ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के उपचार की सफलता दर जो साल 2020 में 68 प्रतिशत थी वह इस दवा के बाद बढ़कर 2022 में 75 प्रतिशत हो गई है।
ट्यूबरकुलोसिस के बारे में जानना सभी के लिए जरूरी
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाला यह संक्रामक रोग है। ये मुख्य रूप से वायुजनित ड्रॉपलेट्स के माध्यम से फैलता है। टीबी रोग वाले लोगों की खांसी या छींक से निकलने वाले बूंदों के माध्यम से आसपास के अन्य लोगों में संक्रमण का खतरा हो सकता है। यही कारण है कि स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के बीच टीबी की घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है।
सफदरजंग अस्पताल में सामुदायिक चिकित्सा विभाग के निदेशक और प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि भारत में स्वास्थ्य कर्मियों के बीच टीबी पर व्यापक दर काफी चिंताजनक है।
साल 2004 से 2023 के बीच दस अध्ययनों की समीक्षा की गई। इसमें प्रयोगशाला तकनीशियनों (प्रति 100,000 में 6,468.31 मामले), डॉक्टरों (प्रति 100,000 में 2,006.18) और नर्सों (प्रति 100,000 में 2,726.83) के बीच विशेष रूप से टीबी की उच्च दर का पता चलता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, दो सप्ताह से अधिक समय तक अगर खांसी की दिक्कत बनी रहती है और कफ या खून आता है, सीने में दर्द, कमजोरी या थकान की समस्या रहती है तो ये टीबी का संकेत हो सकता है। इस तरह के संकेतों पर गंभीरता से ध्यान देना और उपचार प्राप्त करना बहुत जरूरी हो जाता है।
