मानस की चौपाई परहित सरिस धर्म नहिं भाई...। यानी दूसरों की भलाई या सेवा के समान कोई और धर्म नहीं है। इसी भाव से कुछ दानवीरों ने काशी आने वाले दर्शनार्थियों को धर्मशालाओं के रूप में ठौर दिया है। महंगाई के इस दौर में ये धर्मशालाएं उनके लिए काफी मददगार साबित हो रही हैं। इनमें से कोई 91 तो कोई 60 साल से श्रद्धालुओं की सेवा में लगी हैं। कुछ में तो होटल जैसी सुविधाएं हैं। महाकुंभ के पलट प्रवाह के दौरान इन धर्मशालाओं में भी भीड़ बढ़ गई है। हर रोज यहां आठ से 10 हजार दर्शनार्थी यहां ठहर रहे हैं। प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार जिले में 54 धर्मशालाएं हैं। इनमें कई धर्मशालाओं के संचालन को सौ साल होने वाले हैं। शुरू में ये निशुल्क ही चलते थे। बाद में गृहकर, बिजली व पानी के खर्च को देखते हुए दर्शनार्थियों से 200 से लेकर 1800 रुपये प्रतिदिन का किराया लिया जाने लगा। इनमें कुछ वातानुकूलित भी हैं। इनका किराया थोड़ा महंगा है। कमरे में चौकी-बेड, चादर, तकिया, कंबल उपलब्ध रहता है। कुछ धर्मशालाओं में भोजन बनाने की भी सुविधा है। विभिन्न प्रांतों से आने वाले दर्शनार्थियों का दल जिन्हें बाहर का भोजन नहीं पसंद, वो खुद बनाकर खाते हैं। शहर में चौक, बांसफाटक, गोदौलिया, दशाश्वमेध, गिरजाघर, लक्सा, रथयात्रा, गोलघर कोतवाली, कैंट, इंग्लिशिया लाइन, हौज कटोरा, बुलानाला, आदमपुर, रामनगर आदि इलाकों में ये धर्मशालाएं हैं।
हर हफ्ते करते थे अन्नदान
कारामल सावि देवी सिंधी धर्मशाला लक्सा 1959 में स्थापित हुई। मैनेजर मनोज सिंह ने बताया कि पहले हर हफ्ते अन्नदान किया जाता था। डॉक्टर भी निशुल्क इलाज करते थे। अब ये व्यवस्था नहीं है। अब सिर्फ रहने की सुविधा है। विरेवश्वर पांडेय धर्मशाला सन् 1934 में स्थापित हुई। मनमोहन पांडेय काशी में दर्शन पूजन करने आए थे। तब यहां दर्शनार्थियों के ठहरने को लेकर हो रही परेशानी को देखकर धर्मशाला बनवाई। यहां 50 कमरे हैं। गिरजाघर पर ही भगवान दास जायसवाल ने पुरुषोत्तम धर्मशाला 1972 में बनवाई। बेरीवाला अतिथि भवन 1968 में शुरू हुआ। यहां वातानुकूलित कमरे भी हैं। गोदौलिया पर जयपुरिया धर्मशाला 1961 से स्थापित है। एसी कमरों के साथ भोजन की सुविधा है। यहां का शुल्क अन्य धर्मशालाओं से थोड़ा महंगा है। पटेल स्मारक अतिथि निवास तेलियाबाग सन 1962 में स्थापित किया गया। इसके एक-एक कमरे दानदाताओं के दान से बनाए गए। इसलिए हर कमरे पर उनका नाम दर्ज है।
होटल खुल रहे धर्मशालाएं नहीं
काशी में भीड़ बढ़ने से हर साल होटल तो खुल रहे हैं, मगर धर्मशालाओं की संख्या नहीं बढ़ रही। पांच दशक पहले तक समृद्ध लोग सेवाभाव को परम कर्तव्य मानकर धर्मशालाएं शुरू करते थे, अब ऐसा बहुत कम है।
आज भी बुजुर्गों को देते हैं तरजीह
कोलकाता के महेशचंद्र भट्टाचार्या ने खास तौर से बुजुर्गों के लिए गिरजाघर के पास 1934 में हरसुंदरी धर्मशाला बनवाई। काशी में बाबा के दर्शन-पूजन और अपने पितरों के तर्पण करने के लिए आने वाले यहां निशुल्क ठहरते हैं। धर्मशाला की प्रबंधक काजल चटर्जी ने बताया कि हरसुंदरी चैरिटेबल ट्रस्ट से संचालित इस धर्मशाला में 35 कमरे हैं। पेशे से होम्योपैथ चिकित्सक महेशचंद्र ने प्रयागराज, वृंदावन में भी ऐसी धर्मशालाएं बनवाई हैं। इस वक्त अयोध्या में भी बनवा रहे हैं। उनके सेवाभाव के तहत ही नौ स्कूल और कोलकाता में होमियोपैथ मेडिकल कॉलेज भी चल रहा है।
आश्रम और मठों के भी खुले हैं दरवाजे
मठों और मंदिरों में भी दर्शन-पूजन के लिए आने वाले लोग ठहरते हैं। मठों में उनको भोजन की भी सुविधा मिलती है। यहां पर जंगमबाड़ी मठ, आंध्रा आश्रम, कबीर मठ, पातालपुरी मठ, कांची कामकोटि, देवरहा बाबा आश्रम में रहने-खाने की सुविधा निशुल्क है। वहीं, सिंधी, मारवाड़ी, गुजराती, मराठी, पंजाबी, बंगाली, राजस्थानी समाज की भी धर्मशालाएं हैं, जहां उनके समाज के लोग ठहरते हैं।
