फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया इस हफ्ते फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत और फ्रांस “वैश्विक बदलाव” के लिए एक ताकत बन सकते हैं। यह बयान मोदी और उनके मेजबान फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों दोनों के लिए महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संदर्भ लिये हुए था। मोदी का यह दौरा वाशिंगटन की उनकी पूर्व-निर्धारित यात्रा से ठीक पहले हुआ, जहां ट्रम्प प्रशासन ने वैश्विक समीकरणों को अप्रत्याशित रूप से बदल दिया है। यह बतौर प्रधानमंत्री मोदी का छठवां फ्रांस दौरा था, जबकि मैक्रों तीन बार भारत यात्रा पर आ चुके हैं। इसने उनकी साफ जाहिर आपसी समझदारी को बढ़ाया है। पेरिस में दोनों ने एआई ऐक्शन समिट की सह-अध्यक्षता की, जिसके बाद वे मार्सिले पहुंचे। वहां उन्होंने नये भारतीय वाणिज्य दूतावास का उद्घाटन किया, बहुपक्षीय थर्मोन्यूक्लियर रिएक्टर परियोजना का दौरा किया और एक जहाजरानी कंपनी का भ्रमण किया। मिसाइलों, हेलीकॉप्टर और जेट इंजनों पर सौदों की समीक्षा करते हुए, उनकी बातचीत रक्षा साझेदारी पुख्ता करने पर केंद्रित थी। भारत ने भी भारत-निर्मित रॉकेट लांचरों की पेशकश की। मोदी सरकार द्वारा भारत के नाभिकीय उत्तरदायित्व कानूनों में सुधार की घोषणा के चंद दिनों बाद, दोनों देश छोटे मॉड्युलर रिएक्टर विकसित करने और लंबे समय से रुके असैन्य नाभिकीय समझौते को आगे बढ़ाने पर राजी हुए। दोनों नेताओं ने यूक्रेन और गाजा सहित वैश्विक संघर्षों पर चर्चा की। उन्होंने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को आगे बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता को भी पुन: पुष्ट किया। दोनों देशों की प्रमुख भूमिका वाली यह पहलकदमी पश्चिम एशियाई स्थिरता पर निर्भर है। मैक्रों ने भारत और फ्रांस का जिक्र दो महान शक्तियों के रूप में किया जो बहुत करीब से एकजुट हैं। उन्होंने जोर दिया कि भले ही वे (भारत और फ्रांस) अमेरिका और चीन के साथ मजबूत जुड़ाव चाहते हैं, लेकिन दोनों में से कोई भी किसी एक शक्ति पर निर्भर होने का इच्छुक नहीं है। द्विपक्षीय संबंधों से इतर, मोदी के इस दौरे के व्यापक रणनीतिक निहितार्थ थे। दोनों नेताओं ने जलवायु परिवर्तन, व्यापार व्यवधानों, और एआई द्वारा पैदा हो रहे जोखिमों जैसी वैश्विक चुनौतियों को संबोधित किया। हालांकि, एक प्रमुख मुद्दा जिस पर दोनों पक्षों ने चुप्पी साधे रखी, वह यह है कि वाशिंगटन के साथ रिश्तों पर कैसे आगे बढ़ा जाए। हालांकि दोनों नेता ट्रम्प के साथ सकारात्मक संबंध बनाये रखना चाहते हैं, लेकिन वे उनकी अप्रत्याशित नीतियों को लेकर चौकन्ने हैं। इन अप्रत्याशित नीतियों में टैरिफ व आर्थिक उपायों को लेकर उनका दृष्टिकोण, और वैश्विक संघर्षों पर उनका एकपक्षीय रुख शामिल है। मोदी की रवानगी के बाद एक इंटरव्यू में, मैक्रों ने गाजा पर अमेरिकी नीति की आलोचना करने में संकोच नहीं किया। उन्होंने साफ कहा कि वहां एक मानवीय अभियान की जरूरत है, न कि एक “रियल-एस्टेट अभियान” की। ट्रम्प का रूस और चीन के साथ स्वतंत्र रूप से काम-काज (जो अक्सर यूरोप या हिंद-प्रशांत के प्रमुख सहयोगियों से सलाह-मशविरे के बगैर किया जाता है), और बहुपक्षीय व्यवस्था के प्रति उनका असम्मान, मोदी और मैक्रों के बीच दीर्घकालिक चर्चा का विषय हो सकते हैं। आने वाले महीनों में, भारत और फ्रांस वैश्विक बदलावों को लेकर अपनी साझा समझदारी और मिलकर समाधान तलाशने में खुद को संभवत: ज्यादा एकजुट पायेंगे।
