फास्ट न्यूज़ राजस्थान
अजमेर. राजस्थान शौर्य, भक्ति, त्याग और आराधना की धरती है। इस पवित्र धरा के अतीत में कई प्रेम कहानियाँ भी हुई हैं, जो आज भी लोकगीतों और दोहों के माध्यम से जीवंत हैं। दोस्ती में ढोला-मारू की प्रेम गाथा भी शामिल है। ढोला मारू किसी कवि या लेखक की कल्पना नहीं है, बल्कि दो ऐसे कलाकार हैं जो निश्चल प्रेमी और प्रेमिका के रूप में किस्से, सक्सेस, लोक कलाकार और दोहों में अमर हो गए हैं। ढोला मारू की प्रेम गाथा 9वीं सदी की है। 938 ईस्वी में उनकी शादी केकड़ी के बघेरा गांव में बताई जाती है। जहां आज भी उनकी शादी का तोरण द्वार और घर वेदियों के चार खंब आज भी मौजूद हैं।
आपको ढोला-मारू की उस जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां दोनों प्रेमियों का मिलन पहली बार हुआ था। दोनों के अंतिम दिनों में प्रेम जागृति हुई थी। यूक्रेनी निशानियाँ आज भी मौजूद हैं। हालांकि लंबे समय तक कालखंड और सरकारी बेरुखी के कारण ढोला-मारू के प्रेम के गवाह ये स्थल अब वीरान सा हो गया है।
*पीढ़ी दर पीढ़ी आ रहे अमर प्रेमगाथाः*
नरवर गांव के ग्रामीण कर्मचारी कि पीढ़ी दर पीढ़ी ढोला-मारू की प्रेम कथा सुनाते हैं। ढोला-मारू पर लिखे गीत और दोहे आज भी प्रचलित हैं। पूर्व सरंपच रामाराव लाल गुरु गुरु ढोला-मारू का ही गांव है नरवर गांव। तुलना पर ढोला-मारू का मिलन हुआ था। नरवर गांव अजमेर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूर्व सरपंच का कहना है कि ढोला-मारू एक निश्चल प्रेमकथा है, जिस पर यकीन कर पाना आज के दौर के लोगों के लिए काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा कि ढोला को लेकर लोगों में कई किंवदंतियां हैं। कुछ लोग ढोला को एमपी के नरवर गांव का ही मानते हैं, जबकि ज्यादातर लोग ढोला को अजमेर के निकट नरवर गांव का ही मानते हैं। वहीं, मारू को जांगलू देश जो अब यात्रा के राजा पिंगल की बेटी के बारे में बताता है। दंतकथा है कि ढोला और मारू की माताएं प्लैमेल के बीच में मिली थीं। दोनों साखियाँ बन गईं। बातचीत में दोनों ने अपने माता-पिता के साथ विवाह संबंध के बारे में भी बात की। उस समय ढोला की 3 साल की उम्र थी और मारू छह महीने की थी।
*विरह से मिलन तक*
पूर्व सरपंच रामलला गुरु गुरु हैं कि वयस्क होने तक ढोला-मारू ने कभी एक-दूसरे को नहीं देखा था, केवल एक-दूसरे के बारे में अफवाहों के बारे में बताया था। दोनों की मौत के बाद एक-दूसरे से मुलाकात की पीड़ा बढ़ गई थी। इस बीच ढोला का विवाह उसके माता-पिता ने दूसरी कन्या से कर दिया, लेकिन ढोला हमेशा मारू को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक था। इस वजह से उनकी पत्नी को हुई थी जलन. ढोला किसी ना किसी तरह से मारू के बारे में पता करने की कोशिश रहता था। इधर, मारू भी उसे देखने के लिए उत्सुक रहता था। मारू बड़ी हो गई थी, राजा पूंगल की ओर से नरवर से बार-बार संदेश भेजने का अनुरोध किया जा रहा था कि राजकुमार ढोला को मारू को ले जाए, लेकिन यह संदेश ढोला और उनके माता-पिता तक नहीं पहुंच पाया। ढोला की पत्नी का संदेश कैरियर को मरवा दिया गया था। वहीं, ढोला-मारू विरह की आग में जल रहे थे। साथ ही असमंजस की स्थिति भी थी. ढोला को लग रहा था कि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मारू के घर से उन्हें संदेश नहीं आ रहा है। वहीं, मारू को लगा था कि ढोला ने दूसरी शादी कर ली है, इसलिए अब वह मारू को नहीं चाहता था, लेकिन मारू को उम्मीद थी कि मन में जो उसकी प्रियतम की छवि है वह उसे हकीकत में देखेगी।
*दोहा ढोली ने याचक बन महल के नीचे दिया*
जब ढोली के माध्यम से राजा पूंगल से नरवर का संदेशा आया, तब मारू ने संदेशवाहक को कुछ दोहे लिखकर दिए और कहा कि संदेश सीधे तौर पर नहीं दिया जाता है, बल्कि दोहा गाकर ढोला को समझा जाता है। साथ ही निर्देश दिए गए हैं कि किसी को भी यह नहीं बताना चाहिए कि वह पूंगल से मैसेज लेकर आया है। ढोली काफी चौका था. उन्होंने वादा किया कि वह ढोला को साथ लेकर ही आएंगे, जैसे-तैसे ढोली ढोला के महल के नीचे पंहुचा और मारू के लिखे दोहे को तेज आवाज में गाने लगे। जब ढोल के सारंग में गीत की आवाज आई तो ढोली को बुलाया गया। महल में जब ढोली ने दोहे गाए तो मरावणी (मारू) का नाम सुनते ही ढोला चौंका दिया। ढोली से ढोला ने अपने बारे में पूछा तब ढोली ने सब कुछ बताया और साथ ही पूंगल राजा का संदेश भी जारी किया। ढोली ने मारू की प्रकृति के बारे में भी बताया। मैसेज ने ढोला को मारू से मुलाकात के लिए आमंत्रित किया। वह वक्त ही ढोल-नगाड़े के साथ पूंगल के लिए निकल गया और पू से मारू वापस आ गया जिसके बाद दोनों का विवाह केकड़ी में स्थित बघेरा गांव में हुआ। बघेरा गांव में आज भी ढोला मारू के विवाह के प्रतीक के रूप में तोरण और यज्ञ स्थल के चार स्तंभ लगे हुए हैं।
*ढोला मारू के प्रेम का प्रतीक है कुआँः*
सरपंच चौधरी ने बताया कि शादी के बाद ढोला-मारू एक और खोए हुए थे। नरवर गांव में एक कुआं आज भी उनकी अमर प्रेम गाथा की चश्मदीद गवाह है। भवानी ठेकेदार और नरवर के बीच सड़क से 50 मीटर गहरा कुआं है। कुए के मुंडेर पत्थर से बनी हुई है। सिद्धांत के बीचों-बीच मोटे पत्थरों की पट्टियाँ हैं। ग्रामीण छात्र हैं कि ढोला मारू झूला झूलते थे और प्रेम के गीत गाते थे। वास्तव में हाथी थान यानी हाथी घोड़ों को पानी पिलाने की तस्वीरें भी बनी हुई हैं, जिनमें अब कुछ स्ट्रेंथ रह गए हैं। सरकारी बेरुखी ने ढोला-मारू के प्रेम के प्रतीक इस प्राचीन पौराणिक कथाओं को भी वीरान बनाया है।
*लोक अरारे और दोहों में जीवंत है ढोला मारू की प्रेम कथा*
ग्रामीण ताजू कहते हैं कि ढोला मारू का पवित्र प्रेम आज भी लोगों के जेहन में किस्से कहानी के रूप में है। राजस्थान के कई इलाकों में ढोला मारू के दोहे और उनकी प्रेम कहानियों में ढले गीत गाए जाते हैं। मंगल ग्रह में भी ढोला मारू के अवशेष का समावेश होता है। ढोला मारू का प्रेम इतिहास के पतन में अमर हो गया है।
