फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि से सुप्रीम कोर्ट के जांचपरक सवालों ने उनके द्वारा संवैधानिक कर्तव्य का जान-बूझ कर उल्लंघन किये जाने का एक पैटर्न उजागर किया है। ये सवाल कई विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने में रवि के कृत्य की कानूनसम्मतता से जुड़े थे। इन विधेयकों के लिए पहले उन्होंने “स्वीकृति रोक” ली थी, लेकिन राज्य विधानसभा द्वारा उन्हें दोबारा अंगीकार किये जाने के बाद वे स्वीकृति देने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य थे। पीठ ने जब यह पूछा कि क्या रवि ने इन विधेयकों को स्वीकृति (जिसे संविधान के अनुच्छेद 200 का पहला परंतुक या प्रोवाइजो जरूरी बनाता है) देने से बचने के लिए ही राष्ट्रपति के पास भेजा, तो वह सब की ओर से बोल रही थी। पुरानी समझ यह थी कि स्वीकृति का रोका जाना किसी विधेयक के जीवन का अंत कर देता है, जिसे साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बदल दिया। उसने माना कि जब भी राज्यपाल उस तरह की कार्रवाई की विकल्प चुनते हैं, उन्हें विधायिका को विधेयक लौटाना चाहिए, जैसा कि परंतुक जरूरी बनाता है; और अगर सदन द्वारा इसे दोबारा पारित किया जाता है, तो वे स्वीकृति देने को बाध्य हैं। सवालों से रूबरू अटार्नी जनरल ऑफ इंडिया (एजी) ने केंद्रीय कानून के साथ संभावित असंगति का मुद्दा उठाया। उन्होंने दलील दी कि चूंकि ये विधेयक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति के तरीके में बदलाव करना चाहते हैं, यूजीसी विनियमों के साथ टकराव दिखने के कारण राज्यपाल ने उचित रूप से इन विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा। एजी ने यह भी कहा कि जब राज्यपाल ने पहले स्वीकृति रोकी, विधेयकों का अस्तित्व समाप्त हो गया और विधानसभा ने यह मान लिया कि इन्हें राज्यपाल द्वारा “लौटा” दिया गया तथा इन्हें दोबारा अंगीकार किया। एक संबंधित विवाद में, उन्होंने यह दलील भी दी कि अगर असंगति का मसला देखने में आता है, तो विधेयक को लौटाने की जरूरत ठीक नहीं रह जाती। विधेयकों के साथ पेश आते समय राज्यपालों द्वारा अपनायी जाने वाली सही कार्रवाई के निर्धारण में ये दलीलें आकर्षक लग सकती हैं, और पीठ, जिसने फैसला सुरक्षित रख लिया है, जवाब के साथ आ सकती है। हालांकि यह तथ्य कि राज्यपाल कानून-निर्माण की प्रक्रिया को विफल करने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते रहे हैं, बिल्कुल स्पष्ट है। उन्होंने इनमें से कुछ विधेयकों पर एक या दो साल तक कुछ नहीं किया था या स्वीकृति रोकते समय असंगति से जुड़े अपने ऐतराज जाहिर नहीं किये थे। इसके अलावा, उन्होंने न सिर्फ इस तथ्य की अनदेखी की कि विधेयकों को अपने समक्ष दोबारा पेश किये जाने पर वह स्वीकृति देने को बाध्य हैं, बल्कि उन्होंने इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। साल 2023 की सुनवाई में भी, शीर्ष अदालत ने सवाल किया था कि क्या स्वीकृति रोकने का विकल्प चुनने वाले राज्यपाल उसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजकर एक और विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं। रवि ऐसे किसी भी कानून को विफल करने पर उतारू जान पड़ते हैं जो उनके दुनियावी नजरिये से मेल नहीं खाता। समय आ गया है कि केंद्र सरकार तमिलनाडु में उनके बने रहने से संवैधानिक शासन के लिए पैदा हुई चुनौतियों पर गौर करे।
