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पाली. पुलिस का एक नवाचार महिलाओं और बेटियों के लिए सार्वभौम भरोसा साबित हो रहा है। इसमें न कानून का सहारा लिया जा रहा है और न उनकी बदनामी हो रही है। केवल महिला यात्रियों को अपनी समस्या साझा करने भर से उन्हें परेशानी से राहत मिल रही है।
पिछले तीन महीनों में 50 से अधिक मामले बेटियों और महिलाओं के शोषण और प्रताड़ना से मुक्ति के मिले हैं। न्याय अपहरण के लिए यहां बेटियों और महिलाओं को बंधक बनाना, शोषण करना, प्रताड़ना जैसे मामलों की एक अलग विंग तैयार की गई है, जिसे महिला बीट ऑफिसर का नाम दिया गया है। यह नवप्रवर्तन तीन माह पुरानी प्ले रेंज में किया गया है। एक लड़की को कोई भी अनाय लड़का व्हाट्सएप पर सन्देश चिंता व्यक्त कर रहा था। वह लगातार लड़कियों के नंबरों पर अनचाहे मैसेज रखता है। कभी मिस्ड कॉल तो कभी वाइसकॉल से परेशान। इससे लड़की तनाव में आ गई। उसने अपने परिवार के लोगों को भी नहीं बताया पा रही थी। उन्होंने क्षेत्र की महिला बीट स्टाफ को अपनी परेशानी बताई। महिला मैकेनिक ने नंबरों का पता लगाया लड़के को बताया।
*समझौता से ही समझौता हुआ मामला:*
महिला डॉक्टर को उसका पति एक दिन परेशान कर रहा था। शराब पीकर बिज़नेस करना आम बात हो गई। डॉक्टर होने के कारण वह अपनी परेशानी किसी के सामने साझा नहीं कर पा रही थी। बदनामी के डर से वह कानूनी कार्रवाई भी नहीं चाहती थी। वह महिला प्रशिक्षक से जुड़ी हुई थी। समझोइश से ही समझौता हो गया।
*व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जुड़े अवशेष हैं:*
इसमें ऐसी 50 महिला ऑर्थोडॉक्स आर्किटेक्ट की प्रोटोकाॅल फील्ड पोस्टिंग नहीं है। उदाहरण के तौर पर बीट ईज़ क्षेत्र जारी किया गया है। उन्होंने अपनी बीट में महिलाओं के वॉट्सएप ग्रुप बनाए रखे हैं। व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से वह महिलाओं से जुड़ी हुई हैं। फ़ोन कॉल के माध्यम से भी वह बेटी और महिलाओं से संपर्क साधती है। जहां कहीं से भी उन्हें संदेश मिलते हैं वह महिलाओं और बेटियों के पास जाकर उनसे संपर्क करते हैं और उनकी परेशानी दूर करते हैं। उनकी कोशिश यह है कि चित्रण से ही मामला जुड़ जाए। जहां कानूनी योग्यता की आवश्यकता होती है, महिला पुलिस अनुसंधान अधिकारियों की सहायता लेकर बेटी को दी जाती है। इस नवप्रवर्तन के सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। फीमेल बीट ऑफिसर से अब तक 5 हजार महिलाएं जुड़ चुकी हैं।
नरेंद्रसिंह देवड़ा, एपीपी, महिला अनुसंधान केंद्र, पाली
