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नागा साधु किसे कहते है औऱ महाकुम्भ में स्नान करना क्यों है आवश्यक
  • 151045769 - MITESH KUMAR SINHA 0 0
    04 Feb 2025 00:53 AM



यूपी फर्रुखाबाद। जनपद में थाना कादरीगेट अंतर्गत लगने वाले मेला श्री राम नगरिया में दिखने वाले नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।

इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। हां, लेकिन अगर बिना कारण अगर कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्रोध भयानक हो उठता है। कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे।

नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं।

ये साधु प्रायः कुम्भ एवं मेला श्री राम नगरिया में दिखायी देते हैं। नागा साधुओं को लेकर कुंभ मेले में बड़ी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है, खासकर विदेशी पर्यटकों में। कोई कपड़ा ना पहनने के कारण शिव भक्त नागा साधु दिगंबर भी कहलाते हैं, अर्थात आकाश ही जिनका वस्त्र हो। कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे ये साधु कुम्भ मेले में सिर्फ शाही स्नान के समय ही खुलकर श्रद्धालुओं के सामने आते हैं। आमतौर पर मीडिया से ये दूरी ही बनाए रहते हैं।

अधिसंख्य नागा साधु पुरुष ही होते हैं, कुछ महिलायें भी नागा साधु हैं पर वे सार्वजनिक रूप से सामान्यतः नग्न नहीं रहती अपितु एक गेरुवा वस्त्र लपेटे रहती हैं।

भारतीय संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक के सभी शुभाशुभ संस्कारों में कुम्भ (कलश) को स्थापित करने के पश्चात् ही देव पूजन कर्म करने का विधान है। कलश या घट कुम्भ का पर्याय है, ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियों में से कुम्भ एक राशि भी है। कुम्भ का आध्यात्मिक अर्थ है ज्ञान का संचय करना, ज्ञान की प्राप्ति प्रकाश से होती है और कुम्भ स्नान, दर्शन, पूजन से आत्म तत्व का बोध होता है। हमारे अन्दर ब्रह्माण्ड की समस्त रचना व्यापत है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ‘यत् पिण्डे, तत् ब्रह्माण्डे, तत् ब्रह्माण्डे, यत् पिण्डे’, अर्थात् जो मानव पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड है और जो ब्रह्माण्ड में है, वही मानव पिण्ड में है। कुम्भ, ‘घट’ का सूचक है और घट शरीर का, जिसमें घट-घट व्यापी आत्मा का अमृत रस व्याप्त रहता है।

एक हजार अश्वमेध यज्ञ, एक सौ वाजपेय यज्ञ एवं एक लाख पृथ्वी की परिक्रमा करने का जो फल प्राप्त होता है वही फल मनुष्य को ‘कुम्भ स्नान’ से मिलता है। प्रयागराज में 2025 में महाकुम्भ के आयोजन के अवसर पर गंगा, यमुना, सरस्वती के पावन त्रिवेणी संगम पर असंख्य श्रद्धालु मोक्ष की डुबकी लगाऐंगे। धार्मिक विश्वास के अनुसार कुंभ के अवसर पर श्रद्धापूर्वक स्नान करने वाले लोगों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। देखे फर्रुखाब्द से डिस्ट्रिक इंचार्ज मितेश सिन्हा की रिपोट 151045769

 

बाइट: नागा साधु

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