फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया संसद का बजट सत्र बदले हुए परिदृश्य में शुरू हुआ है। महामारी के चार साल बाद भारत की आर्थिक वृद्धि दर में सुस्ती नजर आ रही है, शेयर बाजार गिर रहे हैं, रुपया उम्मीद से भी ज्यादा रफ्तार से गिर रहा है और अर्थव्यवस्था को गति देने वाले प्रमुख कारक- घरेलू मांग और सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजीगत खर्च- कमजोर पड़ रहे हैं। साथ ही, निजी क्षेत्र में निवेश सुस्त बना हुआ है। संदर्भ के लिए, 2019-20 से 2023-24 के बीच सरकारी पूंजीगत व्यय में सालाना 16 फीसदी की चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी हुई, घरेलू निवेश में 12 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि कॉर्पोरेट निवेश मात्र 6 फीसदी बढ़ा, जबकि उनके लिए टैक्स की दर में भारी कटौती की गई। इसलिए, पटरी पर चल रही अर्थव्यवस्था की गाड़ी की रफ्तार सुस्त होना चिंता का विषय है। इसके अलावा, अमेरिका की नई सरकार वैश्विक व्यापार और कराधान के नियमों को बदलने के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है और इससे अस्थिरता और बढ़ रही है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में यह चेतावनी दी गई है कि वैश्वीकरण के कमजोर पड़ने के साथ, भारत को घरेलू कारकों पर ध्यान देना होगा, ताकि आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को तेज किया जा सके और इसे उन प्रतिस्पर्धी बाजारों के मुकाबले ज्यादा आकर्षक बनाया जा सके, जो विदेशी निवेशकों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। सर्वेक्षण का अनुमान है कि 2025-26 में जीडीपी की वास्तविक वृद्धि 6.3 फीसदी से 6.8 फीसदी के बीच रह सकती है। वहीं, इस साल के लिए 6.4 फीसदी की वृद्धि का अनुमान जताया गया है। इससे पता चलता है कि नई चुनौतियों के बीच आर्थिक रफ्तार और सुस्त पड़ सकती है। सर्वेक्षण के लेखकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के अपने सपनों को साकार करना है, तो इसके लिए कम से कम एक दशक तक 8 फीसदी के आस-पास की वृद्धि दर बनाए रखना होगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि ‘मौजूदा तौर-तरीकों’ वाली नीति से आर्थिक ठहराव को बढ़ावा मिल सकता है। हाल के सुधारों की तारीफ करने के बावजूद सर्वेक्षण ने आगाह किया है विनियामक सुधारों के बिना सही लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएंगे। इस बारे में सर्वेक्षण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार को ‘कारोबार की राह से हटना’ होगा, यानी उन नियमों को खत्म करना होगा, जो असल में छोटी-छोटी चीजों के मैनेजमेंट में शामिल होते हैं। साथ ही, प्राधिकरण और नागरिकों के बीच विश्वास बहाली करनी होगी। व्यापार सुगमता को बेहतर बनाने के लिए, सर्वेक्षण ने बाजार पर दबाव डालने वाले नियमों को कम करने और ‘न्यूनतम जरूरी, अधिकतम व्यावहारिक’ दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। साथ ही, इसने नियामकों से वही जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग की है, जो वे अपने दायरे में आने वाली संस्थाओं से अपेक्षा करते हैं। छोटे उद्यमों को सशक्त बनाने, आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने की मांग भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में सरकार ने 1970 के दशक वाले अंदाज में कुछ अप्रभावी नीतियों की ओर आकर्षित होती दिख रही है, जैसे कि आयात प्रतिबंध, प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन और विवादास्पद कर उपाय। ऐसे में यह सलाह बेहद प्रासंगिक है। सरकार ने इस सलाह को निष्पक्ष रूप से सुना या नहीं, इसका जवाब बजट से मिलेगा।
