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पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की दुविधा: आर्थिक आंकड़े, नीति
  • 151171416 - AKANKSHA DUBEY 0 0
    21 Jan 2025 19:31 PM



फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया कोविड-19 महामारी के बाद से, केंद्र आर्थिक सेहतमंदी को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक पूंजीगत व्यय का इस्तेमाल कर रहा है। मंत्र यह है कि बुनियादी ढांचे के निर्माण से सीमेंट एवं स्टील जैसे उत्पादों की मांग बढ़ेगी, निर्माण क्षेत्र में नौकरियां सृजित होंगी और साथ में अर्थव्यवस्था पर एक मजबूत गुणक प्रभाव पड़ेगा, जिससे अंततः निजी निवेशकों के लिए ग्रीनफील्ड व ब्राउनफील्ड परियोजनाओं की योजना बनाने के वास्ते अनुकूल हालात पैदा होंगे। बजट 2024-25 में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार अन्य प्राथमिकताओं और राजकोषीय समेकन की अनिवार्यताओं के साथ, अगले पांच वर्षों के दौरान बुनियादी ढांचे के लिए मजबूत राजकोषीय समर्थन बनाए रखने का प्रयास करेगी। उन्होंने इस साल 11.11 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का एलान किया, जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 फीसदी है। आंशिक रूप से चुनाव प्रभावित पहली तिमाही में खर्च पर अंकुश के चलते यह लक्ष्य हासिल होने की संभावना नहीं है। उद्योग जगत ने जहां केंद्र से 2025-26 के दौरान भी पूंजीगत व्यय को जारी रखने का आग्रह किया है, वहीं वह अपने खुद के कामकाज को बढ़ाने संबंधी सरकार के निरंतर प्रोत्साहनों एवं अनुनय के अनुरूप प्रतिक्रिया करने में विफल रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल की पहली तीन तिमाहियों में से दो में निजी निवेश की योजनाओं, विशेषकर घरेलू उद्योग द्वारा, में उल्लेखनीय रूप से क्रमिक गिरावट दर्ज की गई है। पहली तिमाही में, निजी पूंजीगत व्यय की योजनाएं कई सालों के निचले स्तर पर आ गईं और जुलाई-सितंबर की तिमाही में भले ही निवेश के इरादों में सुधार दर्ज किया गया, लेकिन तीसरी तिमाही में वह तेजी ख़त्म हो गई। जहां प्रोजेक्ट टुडे के आंकड़ों से यह पता चलता है कि घरेलू निवेश का मूल्य दूसरी तिमाही से 1.4 फीसदी कम हो गया है, वहीं सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक नई परियोजनाओं का मूल्य एक साल पहले के स्तर से 22 फीसदी से ज्यादा गिर गया है। कॉरपोरेट जगत की जोखिम लेने की क्षमता पर कई कारक असर डाल रहे हैं – दूसरी तिमाही के कमजोर नतीजे, वैश्विक अनिश्चितताएं, बढ़ती लागत और अपेक्षाकृत अधिक आकर्षक शहरी बाजारों में घटती मांग। तीसरी तिमाही के शुरुआती नतीजों सहित वर्तमान संकेतों के मुताबिक, न तो मांग में वास्तव में कोई सुधार हुआ है और न ही कारखाने की क्षमताओं पर विस्तार के लिए कोई प्रत्यक्ष दबाव है। इस मंदी से स्थायी मुक्ति के लिए, निजी पूंजी को आगे बढ़कर कमान संभालनी चाहिए क्योंकि राजकोषीय शुद्धता को बनाए रखते हुए औअसंख्य कल्याणकारी योजनाओं को समर्थन प्रदान करते हुए सार्वजनिक पूंजीगत व्यय को बढ़ाने की सीमाएं हैं। सरकार को यह स्वीकार करना चाहिए कि उद्योग को प्रोत्साहन देने से नए परिव्यय को बढ़ावा मिलने की संभावना नहीं है और आयात-प्रतिस्थापन जैसे विषयों पर केंद्रित प्रोत्साहन अपर्याप्त हैं। अगर कोई परियोजना अव्यवहारिक है और मांग कमजोर है, तो एक भी नया रुपया निवेश नहीं किया जाएगा। नीति का ध्यान दृढ़ता से यह सुनिश्चित करने पर होना चाहिए कि निवेश को बढ़ावा देने के लिए जमीन तैयार हो और चिमनियों एवं नई नौकरियों को बढ़ावा देने वाली इस किस्म की योजनाओं को साकार करना आसान हो। इसके लिए, आय एवं उपभोग को बढ़ावा देना अहम है और साथ ही वृहद एवं सूक्ष्म स्तर के सुधारों में तेजी लाना भी महत्वपूर्ण है। चूंकि बजट में किए गए वादे के मुताबिक अगली पीढ़ी के सुधारों को रेखांकित करने वाली एक आर्थिक नीति की रूपरेखा के बारे में अरसे से नहीं सुना गया है, लिहाजा यह कोई बहुत ज्यादा सुकून देने वाली स्थिति नहीं है।र

 



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