भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने हाल के विधानसभा चुनावों में मतदान के आंकड़ों को लेकर कांग्रेस पार्टी के आरोपों पर 24 दिसंबर को अपना स्पष्टीकरण दिया। इस स्पष्टीकरण से चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता को लेकर बढ़ती चिंता कम होने की संभावना नहीं है। बीते 20 दिसंबर को, निर्वाचन आयोग की सिफारिशों पर, केंद्र ने चुनाव संचालन नियमों में संशोधन किया था, ताकि उनमें स्पष्ट रूप से उल्लिखित चुनावी दस्तावेजों के सिवाय, अन्य चुनावी दस्तावेजों तक सार्वजनिक पहुंच प्रतिबंधित की जा सके। आयोग ने निजता और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए, यह भी कहा है कि वह मतदान केंद्र के सीसीटीवी फुटेज साझा नहीं करना चाहता। नियमों में यह बदलाव पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद किया गया, जिसमें उसने आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से जुड़े तमाम दस्तावेज, सीसीटीवी फुटेज सहित, एक निजी व्यक्ति को देने का निर्देश दिया। अदालत ने नियम संख्या 93(2) - जो उन तमाम “कागजात” तक सार्वजनिक पहुंच की इजाजत देता था जिन पर स्पष्ट रोक नहीं थी - के तहत इसे अनुमति-योग्य करार दिया था। अब संशोधित नियम कहता है कि केवल वही “कागजात” लोक निरीक्षण के लिए खुले हैं जिनका इसमें स्पष्ट उल्लेख है। लोकतंत्र के ठीक से काम करने में जो संस्था इतना महत्व रखती है, और फिर भी अपनी विश्वसनीयता को लेकर अभूतपूर्व चुनौती से जूझ रही है, उसके लिए कम गोपनीयता और अधिक पारदर्शिता ही सही रास्ता होना चाहिए। अफसोस की बात है कि आयोग इस मामले में चूक रहा है, और अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रहा है। वोटिंग मशीनों में इलेक्ट्रॉनिक तरीके से छेड़छाड़ के आरोप बेजा और गलत समझ पर आधारित हैं, लेकिन चुनाव संचालन से जुड़ी चिंताएं – जैसे पुलिस की जोर-जबरदस्ती, स्थानीय प्रशासन का पक्षपाती होना, और विभिन्न साधनों के जरिये मतदाताओं को दबाना – वैध हैं। इनकी गहन और निष्पक्ष जांच की जरूरत है। इनमें से एक खास चिंता है, मतदान का समय खत्म होने के समय घोषित मतदान प्रतिशत की बनिस्बत, अंतिम आंकड़ों में मतदान प्रतिशत में नाटकीय वृद्धि। हाल के चुनावों में यह नजर में आया। निर्वाचन आयोग का यह कहना सही हो सकता है कि मतदान बंद होने के समय पर जो मतदाता कतार में खड़े हैं वे अंतिम आंकड़ों में ही दर्ज हो पायेंगे। लेकिन इस दावे को स्थापित करने का सबसे आसान और शायद सबसे भरोसेमंद तरीका यह है कि संबंधित वीडियो फुटेज के व्यापक निरीक्षण की इजाजत दी जाए। आयोग ने स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों की पहुंच सभी दस्तावेजों, कागजात और रिकॉर्ड तक है और इस संबंध में नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह साफ नहीं है कि आयोग के अधिकारी वीडियो फुटेज व अन्य रिकॉर्ड के लिए उम्मीदवारों के अनुरोध से कैसे पेश आयेंगे, जबकि जनता ज्यादातर मामलों में बतौर दस्तूर इनकार का सामना करेगी। अगर उम्मीदवार किसी तरह भी रिकॉर्ड तक पहुंच सकते हैं तो निजता और सुरक्षा के तर्क बहुत कमजोर हैं। वास्तव में, सिवाय समय और प्रयास के, नियमों में बदलाव से ऐसी किसी समस्या का समाधान नहीं होता जिसकी बात आयोग करता है। और इसने आयोग के इरादों पर और भी ज्यादा सवाल खड़े कर दिये हैं।