फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया भारत की संशोधित अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के आठवें साल में, इस प्रणाली को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च संस्था ने पिछले शनिवार को बैठक की और ऐसे कई फैसलों का खुलासा किया - जिसमें कुछ दरों में बदलाव और स्पष्टीकरण शामिल थे - जो कुछ वैसे व्यापक मुद्दों के चलते बाधित थे, जिन्हें सुलझाना इसने तय किया। केंद्र और राज्यों को साथ लेते हुए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद को अपनी 55वीं बैठक में जाकर यह समझ में आना कि उसे इस बात को स्पष्ट करने की जरूरत है कि किसानों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली काली मिर्च एवं किशमिश, उपहार वाउचर और उधारकर्ताओं पर बैंकों व गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा लगाया जानेवाला जुर्माना कर योग्य नहीं हैं, शिक्षाप्रद है। इसी तरह, स्वास्थ्य के नाम पर मीठी किस्मों पर ज्यादा कर लगाने के औचित्य के बावजूद, पॉपकॉर्न जैसी सामान्य चीज के लिए इतने सालों के बाद एक तीन-स्तरीय शुल्क को अपनाना चिंताजनक है। इस किस्म के कदम न तो जुलाई 2017 में जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी को एक ‘अच्छा और सरल कर’ बताने के केंद्र के दावों पर सही ठहरते हैं और न ही लंबे समय से टल रहे करों को तर्कसंगत बनाने की कवायद के जरिए इसकी विविध एवं जटिल दरों की संरचना के सार्थक बदलाव के लिहाज से अच्छे हैं। परिषद द्वारा जीएसटी दरों में फेरबदल करने के लिए नियुक्त मंत्रिस्तरीय समिति की शुरुआती सिफारिशों पर विचार करने की भी जहमत न उठाने और न ही जीवन और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के कराधान पर पुनर्विचार में तेजी लाने की प्रतिबद्धता के बावजूद इसकी समीक्षा करने के समिति के सुझावों पर गौर करने से इस समिति के आगे की दिशा में बढ़ने को लेकर लगायी जाने वाली उम्मीदें कम हो गईं हैं। समिति के मुखिया का यह कहते हुए बैठक से जल्दी निकल जाना कि समिति जल्द ही बीमा पॉलिसियों के करों पर आगे विचार-विमर्श करेगी, पूरी तरह से आकस्मिक न सही लेकिन सहज भी नहीं है- खासकर जब सरकार बजट सत्र के बाद से इस मोर्चे पर कार्रवाई का वादा कर रही है। इस हिचकिचाहट, वजह चाहे जो भी हो, ने उद्योग जगत को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। नवंबर में, नए जीवन बीमा के कारोबार में इस साल पहली बार गिरावट आई क्योंकि उपभोक्ताओं ने जीएसटी में कटौती की उम्मीद में बीमा कवर खरीदना बंद कर दिया। इस अनिर्णय और तीन साल पहले शुरू की गई दरों को तर्कसंगत बनाने की व्यापक योजना से बहुत ज्यादा देर तक कदम पीछे खींचे रहने से पहले ही अस्थिर हो चुके उपभोग एवं कर संबंधी निश्चितता के साथ-साथ उपभोग पर निर्भर करने वाली निजी निवेश की योजनाओं पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर के फैसले को पलटने के परिषद के निर्णय ने रियल स्टेट से जुड़ी कंपनियों को किराये या पट्टे के उद्देश्यों से संबंधित वाणिज्यिक संरचनाओं के निर्माण की लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने की इजाजत दी, जिसका भारत के निवेश के माहौल पर भी असर पड़ेगा। जुलाई 2017 से पूर्वव्यापी प्रभाव से अमल में आने वाले कानूनी बदलावों के साथ, पिछले दशक में इसी तरह के कर संबंधी दुस्साहस से डरे हुए निवेशकों के लिए यह अतीत से मिलने वाला एक बड़ा झटका होगा।