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आग से बचाव: अस्पताल में आग की घटनाएं
  • 151000003 - VAISHNAVI DWIVEDI 0 0
    16 Dec 2024 18:50 PM



जब कोई अभयारण्य ही मौत के जाल में तब्दील हो जाए, तो इससे बड़ा विश्वासघात कुछ और हो नहीं सकता। अस्पतालों में आग लगने की दुर्घटनाएं जिनमें लाचार लोगों की मौत हो जाती है, पूरी तरह से इसी श्रेणी में आती हैं। पिछले हफ्ते दक्षिण तमिलनाडु के डिंडीगुल में एक हड्डी रोग (आर्थोपेडिक) की विशेष इकाई, सिटी हॉस्पिटल में भीषण आग लगने से एक बच्चे और दो महिलाओं सहित छह लोगों की मौत हो गई। हादसे के शिकार ये सभी लोग अस्पताल की लिफ्ट में फंस गए थे और शुरुआती रिपोर्टों से पता चला है कि उनकी मौत दम घुटने से हुई। छह लोगों में से सिर्फ एक, जो व्हीलचेयर पर था, अस्पताल में भर्ती मरीज था; बाकी सभी आगंतुक थे। वे आधे घंटे से ज्यादा वक्त तक लिफ्ट में फंसे रहे, क्योंकि धुआं छिद्रों से अंदर आने लगा और भागने के सभी रास्ते बंद हो गए। कथित तौर पर भूतल में शॉर्ट सर्किट के रूप में शुरू हुई आग पहली मंजिल तक फैल गई और जल्द ही चार मंजिला इमारत की सभी मंजिलों पर धुआं फैल गया, जिससे मरीज प्रभावित हुए। शुरुआत में मरीजों की फाइलों में आग लगने के बाद बाह्य रोगी विभाग में धुआं देखा गया। बचाव के कदम के तौर पर बिजली की आपूर्ति बंद कर दी गई, लेकिन छह व्यक्ति फिर भी भूतल पर लिफ्ट में घुस गए। इस दौरान मची भगदड़ में किसी ने भी दो मंजिलों के बीच फंसी लिफ्ट पर ध्यान नहीं दिया। इस बीच, ऊंची मंजिलों पर मरीजों को सांस लेने के लिए जूझना पड़ा, लेकिन कई लोगों के पास, चलने-फिरने की समस्याओं के चलते, भागने का कोई मौका ही नहीं था। बत्तीस मरीजों को आगे के इलाज के लिए पास के डिंडीगुल सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया और उनमें से तीन को वेंटिलेटर के सहारे की जरुरत पड़ी।

हाल के दिनों में देश के विभिन्न अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं में आई तेजी और उनमें हुई मौतें इस बात की याद दिलाती हैं कि स्वास्थ्य सेवा से जुड़े निजी या सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों में बुनियादी ढांचे के रखरखाव को पूरे देश में हैरतअंगेज तरीके से कम तरजीह दी जाती है। एक महीने पहले 15 नवंबर को उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी. इस साल मई में, पूर्वी दिल्ली के एक निजी अस्पताल, न्यू बोर्न बेबी केयर अस्पताल में आग लगने से सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी। यह निहायत ही शर्मनाक है कि, एक राष्ट्र के तौर पर, भारत अपने अस्पतालों को अग्निरोधक बनाने और यह सुनिश्चित करने पर बहुत कम ध्यान देता है कि अस्पतालों में सभी उपकरण मौजूद हों और एक यांत्रिक दोष के चलते आग लगने की स्थिति में अस्पताल खुद कार्रवाई करने व नुकसान को सीमित करने के लिए पूरी तरह से चुस्त हो। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अग्निशमन संबंधी लाइसेंस का समय-समय पर किए जाने वाले नवीनीकरण का माखौल न उड़े। अस्पतालों और सार्वजनिक स्थानों के संबंध में मौजूदा सरकारी अग्नि सुरक्षा नियमों का बिना कोई ढिलाई बरते स्पष्ट तरीके से और उत्साहपूर्वक पालन किया जाना चाहिए। अगर कोई अस्पताल कभी सुर्ख़ियों में आए भी, तो ऐसा उसकी उपचार क्षमता की वजह से हो न कि भयानक आग के चलते।

 

 
 



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