फास्ट न्यूज इंडिया प्रतापगढ़। जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार शर्मा ने बताया है कि जनपद में आलू, आम, केला एवं शाकभाजी फसलों की गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के रोगों/व्याधियों को समय से नियंत्रण किया जाना नितान्त आवश्यक है। मौसम विभाग द्वारा जनपद में तापमान में गिरावट, कोहरा की सम्भावना व्यक्त की गयी है। ऐसी स्थिति में औद्यानिक फसलों को प्रतिकूल मौसम में रोगो/व्याधियों से बचाये जाने हेतु उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उ0प्र0 लखनऊ द्वारा सलाह दी गयी है कि वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बूंदा-बांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुॅचती है। पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियॉ सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है, जो तीव्रगति से फैलती है। पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रूई की तरह फफूॅद दिखाई देती है। बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिये साफ/कगुआ (कार्बेडाजिम 12 प्रतिशत + मैकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0) 2.0 से 2.5 किग्रा अथवा प्रोपिनेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू0पी, 2 से 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाये तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिये दूसरे छिड़काव में फफूॅदीनाशक के साथ कीटनाशक जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.1 प्रतिशत एस0एल0 1.0 लीटर, 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। जिन खेतों में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूॅद नाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 किग्रा0 अथवा साईमोक्जेनिल फफूॅदनाशक युक्त रसायन 2.0 किग्रा 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
उन्होने बताया है कि आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस कीट से आम की फलस को काफी क्षति पहुॅचती है। इसके शिशु कीट (निम्फ) को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिये माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 सेमी0 की ऊॅचाई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 25 सेमी0 चौड़ी पट्टी को तने के चारो ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पालीथीन शीट के ऊपरी व निचली हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिये। कीट के नियंत्रण हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारो ओर बुरकाव करना चाहिये। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते है तो ऐसी स्थिति में इमिडाक्लोप्रिड 17.1 प्रतिशत एस0एल0, 2.0 मिली0 दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर स्टीकर/सरफैक्टेन्ट के साथ मिलाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें। उन्होने बताया है कि वातावरण मेंं पाला पड़ने के कारण केले की फसल को काफी नुकसान पहुॅचता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियॉ यथा मिर्च, टमाटर, मटर आदि फसलों पर भी कम तापमान एवं कोहरा, पाला एवं बूंदा-बांदी से भारी नुकसान पहुॅचता है। ऐसी स्थिति में किसान भाईयो को सलाह दी जाती है कि फसल को पाले से बचाये तथा आवश्यकतानुसार फसलों में नमी बनाये रखने हेतु समय-समय पर सिंचाई की जाये। पौधशाला के छोटे पौधो को पाले, कोहरे से बचाये जाने हेतु उद्यानों को पालीथीन अथवा टाट से ढकना चाहिये। उन्होने कीटनाशक के प्रयोग से बरती जाने वाली सावधानियों के सम्बन्ध में बताया है कि कीटनाशक के डिब्बों को बच्चो व जानवरों की पहुॅच से दूर रखना चाहिये। कीटनाशक का छिड़काव करते समय हाथों में दस्ताने, मुॅह को मास्क व आंखों को चश्मा पहनकर ढक लेना चाहिये, जिससे कीटनाशी त्वचा व आंखों में न जाये। कीटनाशक का छिड़काव शाम के समय जब हवा का वेग अधिक न हो तब करना चाहिये अथवा हवा चलने की विपरीत दिशा में खड़े होकर करना चाहिये। कीटनाशक के खाली पाउच/डिब्बों को मिट्टी में दबा देना चाहिये। रिपोर्ट विशाल रावत डिस्ट्रिक ब्यूरो चीफ प्रतापगढ़ 151019049