फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया अमेठी। मित्रता में छोटा, बड़ा, गरीब, अमीर नहीं होता है। जो दुख, सुख में समान रूप में साथ खड़ा हो, वही सच्चा मित्र है। ये बातें ब्लॉक अमेठी के परशुरामपुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन प्रवाचक भागवत भूषण आचार्य संतोष महाराज ने कहीं। प्रवाचक ने आदर्श मित्रता का उदाहरण कृष्ण-सुदामा की मित्रता को बताया। परीक्षित मोक्ष पर आध्यात्मिक चर्चा करते हुए प्रवाचक ने बताया कि महाराज परीक्षित ने मोक्ष प्राप्ति व लोक कल्याण के लिए भागवत कथा का श्रवण किया। गुरुदेव भगवान शुकदेव गमन की कथा का भी वर्णन किया। प्रवाचक ने मित्र कैसा होना चाहिए परिभाषित करते हुए बताया कि आचार्य द्रोण और राजा द्रुपद मित्र थे। एक बार आचार्य द्रोण राजा द्रुपद के यहां गए तो द्वारपाल ने आकर आचार्य द्रोण के आने की सूचना दी। जिस पर राजा द्रुपद ने कहा कि उनकी कैसी मित्रता, मित्रता समान वालों से की जाती है। मैं चक्रवर्ती सम्राट और वह भिखारी ब्राम्हण। आचार्य द्रोण को ठेस लगी और अपने शिष्य के हाथों द्रुपद को पराजित कर पकड़वाया। फिर आचार्य द्रोण ने कहा कि मैं ब्राह्मण हूं तो मेरे कमंडल में जल है, जिस दिशा में छिड़क दूंगा, वह सूनी हो जाएगी और कंधे पर धनुष है। जिस दिशा में बाण का संधान करूंगा, वह सूना हो जाएगा। श्राप और युद्ध दोनों में समर्थ हूं। वहीं भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता के प्रसंग में बताया कि मित्र ऐसा होना चाहिए कि वह बड़ा, छोटा नहीं, समान दृष्टि, समान भाव से सुख-दुख में हर समय शामिल रहे। इसके साथ ही संवरासुर वध, परीक्षित मोक्ष आदि की कथा का विस्तार से सुनाई। इस मौके पर अयोध्या के महापौर व कुलगुरू गिरीशपति त्रिपाठी, अनंत विक्रम सिंह, ब्लॉक प्रमुख आकर्ष शुक्ल, पिंटू सिंह, घनश्याम चौरसिया, आचार्य सुभाष तिवारी, देव प्रकाश पांडेय, ओम प्रकाश आदि मौजूद रहे।