फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया यहां तक कि घोर निराशावादी आर्थिक पूर्वानुमानकर्ताओं ने भी जुलाई-सितंबर की तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुमानों में परिलक्षित आर्थिक रफ्तार में तेज गिरावट की आशंका नहीं जताई थी। अधिकांश स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों ने जीएसटी राजस्व वृद्धि में कमी और उपभोक्ता टिकाऊ व गैर-टिकाऊ वस्तुओं की कमजोर बिक्री जैसे शहरी मांग के संकेतकों का हवाला देते हुए पहली तिमाही (क्यू1) में 6.7 फीसदी के पांच-तिमाही के निचले स्तर के बरक्स क्यू2 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6.5 फीसदी रहने की उम्मीद जताई थी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने जहां अपनी अक्टूबर की समीक्षा में दूसरी तिमाही की वृद्धि दर सात फीसदी आंकी थी, वहीं आरबीआई के अधिकारियों ने इसके तुरंत बाद एक लेख में 6.8 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान लगाया था। लेकिन, वास्तविक आंकड़ा महज 5.4 फीसदी का ही रहा - 2022-23 की तीसरी तिमाही के बाद से सबसे धीमी वृद्धि दर – जो अर्थव्यवस्था में सकल मूल्य-वर्धित (जीवीए) में 5.6 फीसदी की मामूली बेहतर वृद्धि के साथ, एक महत्वपूर्ण झटका है। पिछले साल सकल घरेलू उत्पाद में 8.2 फीसदी की जोरदार वृद्धि के बाद, 2024-25 के दौरान सात फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर वाले एक और साल की उम्मीदें अब बहुत ज्यादा आशावादी नहीं तो अनिश्चित होती हुई जरुर दिखाई देती है क्योंकि पहली छमाही में सिर्फ छह फीसदी की वृद्धि दर ही दर्ज की गई है। आरबीआई की एमपीसी, जिसकी इस सप्ताह फिर से बैठक होने वाली है, को निश्चित रूप से इस साल के लिए अपने 7.2 फीसदी के विकास दर संबंधी पूर्वानुमान को फिर से बदलना होगा और उसके लिए धीमे वृद्धि संबंधी आवेगों एवं निवेश का समर्थन करने के लिए ब्याज दरों में कटौती करने के मंत्रियों के हाल के आह्वान के बीच मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने पर अपना ध्यान केंद्रित रखना मुश्किल हो सकता है। अक्टूबर में मुद्रास्फीति 15 महीने के उच्चतम स्तर 6.2 फीसदी पर होने के साथ, आरबीआई, जो ब्याज दरों के मामले में रूख बदलने से पहले महंगाई में टिकाऊ गिरावट की प्रतीक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है, द्वारा फिलहाल इन आह्वानों को स्वीकार किये जाने की संभावना नहीं है। वह, ज्यादा से ज्यादा, सख्त तरलता की स्थिति को कम करने के उपायों का एलान कर सकता है। विकास दर में मंदी के मद्देनजर मिंट स्ट्रीट के दिग्गजों को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, नॉर्थ ब्लॉक के अधिकारियों ने कमजोर आर्थिक संकेतकों की हालिया श्रृंखला को कम करके आंकने की कोशिश की है और दूसरी तिमाही के विकास के आंकड़े को शहरी मांग में कमी, जिसे आने वाले महीनों में खत्म हो जाना चाहिए, के चलते ‘एकबारगी’ करार दिया है। ग्रामीण मांग के साथ - साथ सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में सापेक्ष वृद्धि से इस साल की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था में तेजी आने की उम्मीद है। पूंजीगत व्यय इस साल अब तक प्रभावित रही है - पहली तिमाही में आम चुनाव और दूसरी तिमाही में विस्तारित मानसून के बीच कम खर्च की वजह से ठहराव आया है। यह मान लेना बहुत ही लापरवाही भरा हो सकता है कि शहरी उपभोग अपने आप ही बढ़ जाएगा और ब्याज दरें ही विकास दर की राह में एकमात्र बाधा होगी। कम वेतन वृद्धि एवं लगातार महंगाई ने शहरी जेब पर कब्जा जमा लिया है और इसे दूर नहीं किया जा सकता है। केंद्र को अपना ‘सब ठीक है’ वाला रवैया छोड़ना चाहिए और जीवनयापन की लागत को कम करने एवं मांग को पुनर्जीवित करने के लिए ईंधन पर लगने वाले करों व कुछ वस्तुओं पर उच्च जीएसटी दरों में कटौती सहित जरूरी राजकोषीय उपाय करने चाहिए।