फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (एचआईवी) एक गंभीर संक्रामक रोग है जो एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) रोग का कारण बनता है। मेडिकल क्षेत्र में नवाचार और कारगर दवाओं के विकास के कारण अब ये संक्रमण लाइलाज तो नहीं रहा है हालांकि इसके कारण वैश्विक स्तर पर अब भी हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में दुनियाभर में एचआईवी से संबंधित बीमारियों से लगभग 6.30 लाख लोगों की मौत हो गई। साल 2004 की तुलना में ये 69% जरूर कम है, जब 2.1 मिलियन (21 लाख) लोगों की मौत हुई थी। एचआईवी संक्रमण को लेकर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने राहत भरी जानकारी साझा की है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 1980 के दशक के अंत में इस रोग के बढ़ने के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है जब इसके सबसे कम मरीज रिपोर्ट किए गए हैं। पिछले वर्ष एचआईवी से संक्रमित लोगों की संख्या किसी भी समय की तुलना में सबसे कम रही, हालांकि ये संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों से अब भी बहुत ज्यादा है।
वैश्विक स्तर पर एड्स महामारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे बचाव को लेकर लोगों को अलर्ट करने के उद्देश्य से हर साल एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र साल 2030 तक एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरे के रूप में समाप्त करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है। आइए देखते हैं कि इस दिशा में अब तक कितनी कामयाबी मिली है? एड्स रोगियों के मामले में कमी यूएनएड्स एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में लगभग 1.3 मिलियन (13 लाख) लोग इस बीमारी से संक्रमित हुए। यह अभी भी एड्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरे के रूप में समाप्त करने के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक संख्या से तीन गुना अधिक है। विशेषज्ञों ने कहा, एड्स की रोकथाम की दिशा में सफलता जरूर मिली है, लेकिन अभी भी बहुत प्रयास किया जाना बाकी है। इस प्रगति का श्रेय एंटीरेट्रोवायरल उपचारों को दिया जाता है जिसकी मदद से रोगियों में वायरल लोड को कम करने में मदद मिली है। हालांकि चिंताजनक ये है कि दुनियाभर में एचआईवी से पीड़ित लगभग 40 मिलियन (चार करोड़) लोगों में से लगभग 9.3 मिलियन (93 लाख) लोगों को अब भी कोई उपचार नहीं मिल रहा है। 28 देशों में एचआईवी संक्रमण में हुई वृद्धि रिपोर्ट के मुताबिक एड्स की रोकथाम के बेहतर प्रयास और मामलों में वैश्विक कमी के बावजूद, पिछले साल 28 देशों में एचआईवी संक्रमण में वृद्धि दर्ज की गई। इसके लिए इन देशों में प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (PrEP) नामक निवारक उपचार उपलब्ध कराने के प्रयासों में कठिनाइयों को प्रमुख कारण माना जा रहा है।यूएनएड्स की उप-निदेशक क्रिस्टीन स्टेगलिंग ने कहा, एचआईवी से पीड़ित लोगों के साथ भेदभाव और कलंक का भाव अब भी इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में बाधा बन रही है। हमें एक साथ मिलकर इस घातक बीमारी से मुकाबले के लिए आगे आने की जरूरत है। एचआईवी की दवा हाल के वर्षों में एचआईवी की रोकथाम और उपचार को लेकर कई प्रभावी दवाएं चर्चा में रही हैं। लेनाकेपाविर नामक दवा के प्रारंभिक परीक्षणों में पाया गया कि यह एचआईवी संक्रमण की रोकथाम में 100 प्रतिशत तक प्रभावी है। इस रोग के विरुद्ध लड़ाई में संभावित रूप से विशेषज्ञों ने इसे बड़ा परिवर्तनकारी बताया, हालांकि इसकी कीमत अब भी चिंता का कारण है। अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड कुछ देशों में इस दवा के लिए प्रति व्यक्ति 40,000 डॉलर चार्ज कर रही है। हालांकि पिछले महीने गिलियड ने कम आय वाले देशों में कम कीमत पर दवा बनाने और बेचने के लिए जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ सौदे की घोषणा की है। एचआईवी संक्रमण से बचाव जरूरी स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, एचआईवी और एड्स गंभीर स्वास्थ्य चिंता का कारण रहे हैं। इस बीमारी को लेकर कलंक का भाव इसके इलाज की दिशा में अब भी बाधा है। एचआईवी से बचाव को लेकर सभी लोगों को निरंतर सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है। सुरक्षित यौन संबंध, एचआईवी और यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) के लिए जांच, सुइयों-सिरिंजों या अन्य दवा इंजेक्शन उपकरणों को साझा न करने और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले तरीकों को अपनाकर इससे बचाव किया जा सकता है।