फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया एक पूजा स्थल की स्थिति बदलने की नीयत से अभिप्रेरित मुकदमेबाजी, एक संदिग्ध इकतरफा अदालती आदेश और इसके चलते पैदा हुए हिंसक विरोध ने हाल में उत्तर प्रदेश के संभल जिले में चार लोगों की जान ले ली। सुप्रीम कोर्ट के शांति और मेल-जोल बनाये रखने के आह्वान ने तनाव से कुछ राहत दी है। शीर्ष अदालत ने ट्रायल जज से यह भी कहा है कि जब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट सर्वेक्षण संबंधी आदेश की वैधता पर मस्जिट कमेटी को नहीं सुन लेता, वह हिंदुत्ववादी पैरोकारों द्वारा दायर मुकदमे पर आगे नहीं बढ़ें। उसने यह भी निर्देश दिया है कि चंदौसी में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए सिविल कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने अगर कोई रिपोर्ट तैयार की है, तो उसे सीलंबद ही रखा जाए। यह घटना आक्रामक हिंदुत्ववादी पैरोकारों की कार्रवाई के एक हानिकारक पैटर्न का हिस्सा है। ये लोग बहुत-सी मस्जिदों को हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाये जाने का दावा करते हैं और इन संरचनाओं का धार्मिक चरित्र बदलने के लिए न्यायिक प्रक्रिया के इस्तेमाल की कोशिश करते हैं। निचली अदालत ने मामला हाथ में लेने के दिन ही आदेश पारित कर दिया, वह भी मस्जिद प्रबंधन कमेटी को सुने बिना। स्थानीय बाशिंदों ने सर्वेक्षण को बाबर के शासन में निर्मित 16वीं सदी की इस मस्जिद को मंदिर में बदले जाने की कोशिश के रूप में देखा। पुलिस का कहना है कि चार लोगों की मौत प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल आग्नेयास्त्रों की गोली से हुई, जबकि बाशिंदों का कहना है कि यह पुलिस की गोलीबारी का नतीजा थी। सिविल कोर्ट का आदेश आठ पक्षकारों द्वारा दायर मुकदमे में एक अर्जी पर आया। हिंसा की घटना मस्जिद के दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हुई। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वाराणसी और मथुरा में मस्जिदों के खिलाफ इसी तरह के दावों से बनी नजीर ने अदालतों के लिए विवादित संपत्ति के सर्वेक्षण का झटपट आदेश पारित करना सामान्य बना दिया है। ऐसे मुकदमे कानून में अनुमति-योग्य थे या नहीं, यह स्थापित होने से पहले ही आदेश पारित कर दिये गये। इस प्रक्रिया में, अदालतों ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के सचेत उल्लंघन की नियमित रूप से इजाजत दी है। यह कानून पूजा स्थलों की 15 अगस्त, 1947 वाली स्थिति को फ्रीज करता है और उनकी स्थिति बदलने की नीयत से मुकदमों पर रोक लगाता है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की राय थी कि यह अधिनियम उस दिन किसी पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र निश्चित करने से नहीं रोकता। इससे बुरी नीयत से प्रेरित कई दावेदारों को हौसला मिला हो सकता है। इस अधिनियम से इतर, यह मस्जिद भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित पूजा स्थल है और इसके ऐसे किसी इस्तेमाल पर रोक है जो इसके चरित्र से मेल न खाता हो। सबक महज यह नहीं है कि अदालतों को प्रतिशोधवादी मुकदमों को इजाजत देने को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए। इस बात को भी पर्याप्त रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए कि ऐसे घटनाक्रम सांप्रदायिक तनाव भड़काते हैं और शांति व मेल-जोल के लिहाज से अवांछित नतीजे लेकर आते हैं।