फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया हाल के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और उसके गठबंधन सहयोगियों को शानदार जीत दिलाने के बाद, हेमंत सोरेन ने एक और कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री का पद संभाला है। जोरदार मुकाबले वाले चुनाव ने नयी सरकार के लिए चुनौतियां और मुश्किल बना दी हैं। सोरेन ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए प्राथमिकताओं की सूची बना ली है। इस सूची में सबसे ऊपर है झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना के तहत महिलाओं के लिए नकद सहायता बढ़ाकर 2500 रुपये महीने करना और झारखंड राज्य सेवा आयोग (जेपीएससी) व झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) के तहत भर्ती तेज करने सहित नये रोजगार पैदा करना। जेपीएससी और जेएसएससी की भर्तियों में शीघ्रता लाने के वादे के सामने एक और चुनौती एक अन्य प्रमुख वादे (सन 1932 के खतियान के आधार पर डोमिसाइल नीति लागू करने) के साथ तालमेल बिठाना है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि बड़ी तादाद में विदेशियों की आवक से राज्य का आदिवासी चरित्र बदल रहा है, जिसे देखते हुए डोमिसाइल के मुद्दे ने एक नयी अहमियत हासिल कर ली है। डोमिसाइल कानून में बदलाव के लिए केंद्र की मंजूरी की भी जरूरत होगी, और झामुमो ने भाजपा पर इसे रोकने का आरोप लगाया है। सोरेन को इसके अलावा भी राज्य में कई अन्य शासन-संबंधी मुद्दों पर केंद्र के साथ मिल कर काम करना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य की आकांक्षाओं को समर्थन देने का वादा किया है, लेकिन भाजपा का राजनीतिक जोड़-घटाव सोरेन के एजेंडे में अड़ंगा डाल सकता है। नयी सरकार को नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण बढ़ाने के चुनावी वादे पर भी काम करना होगा और सरना धर्म कोड लागू करना होगा। सोरेन ने कहा है कि उनकी पिछली सरकार ने इन तीनों मुद्दों – डोमिसाइल नीति में बदलाव, सरना धर्म कोड, और आरक्षण – पर निर्णय पारित किये थे, पर केंद्र ने इन्हें रोक दिया था। उन्हें 450 रुपये में एलपीजी सिलिंडर देने, धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 3200 रुपये प्रति क्विंटल करने, और मुफ्त राशन योजना के तहत परिवारों के लिए अनाज की मात्रा बढ़ाने जैसे अपने चुनावी वादे पूरे करने के लिए रास्ता तलाशना होगा। सोरेन को झगड़े के कगार पर खड़े समाज, चोट करने का मौका तलाश रही विपक्षी भाजपा, और कमजोर सहयोगियों, कांग्रेस व राष्ट्रीय जनता दल से निपटना होगा। सोरेन केंद्रीय एजेंसियों की जांच के निशाने पर रहे हैं जो अक्सर भाजपा की राजनीतिक सुविधा के मुताबिक काम करती हैं। उनकी राजनीतिक मुद्रा राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर भाजपा-विरोधी है और उन्हें शासन में केंद्र का सहयोग भी तलाशना है। इसे देखते हुए, उनके सामने आगे कठिन जिम्मेदारी है