फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया विकसित देशों के बाजारों में मांग में नरमी के कारण भारत को निर्यात सुधार के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। वित्त मंत्रालय ने सोमवार को अपनी मासिक रिपोर्ट में यह बात कही। 2024-25 के पहले सात महीनों के दौरान व्यापारिक निर्यात में मध्यम वृद्धि दर्ज की गई, जिसका कारण कमजोर बाहरी मांग और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतों में गिरावट रही। दूसरी ओर, मजबूत घरेलू मांग से प्रेरित होकर व्यापारिक आयात ने अच्छा प्रदर्शन किया। निर्यात की तुलना में आयात में अधिक वृद्धि के परिणामस्वरूप व्यापार घाटा बढ़ा। व्यापार घाटा निर्यात और आयात के बीच का अंतर होता है। यह 2024-25 में अब तक 60.02 अरब डॉलर से बढ़कर 63.24 अरब डॉलर हो गया है। इसमें 5.36 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अप्रैल से अक्तूबर 2024 के दौरान, भारत का कुल निर्यात लगभग 468.27 अरब डॉलर रहा, इसमें साल-दर-साल आधार पर 7.28 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सरकार 800 अरब डॉलर के अपने पूरे साल के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रति आशावादी बनी हुई है। वित्त मंत्रालय ने कहा, "मानसून के महीनों में थोड़ी नरमी के बाद, अक्तूबर में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई। मांग में लगातार वृद्धि जारी है, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही में FMCG की बिक्री में सुधार से यह संकेत मिलता है।" मुद्रास्फीति के मोर्चे पर, अक्तूबर में घरेलू खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई, जिसमें मुख्य रूप से चुनिंदा सब्जियों की कीमतें बढ़ने से इजाफा हुआ । मंत्रालय ने कहा, "प्रमुख उत्पादक राज्यों में भारी बारिश के कारण आपूर्ति में व्यवधान ने टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों पर दबाव डाला। वैश्विक कीमतों में वृद्धि ने भी तेल और वसा से जुड़ी मुद्रास्फीति को बढ़ावा दिया। हालांकि, आने वाले महीनों में खरीफ की बंपर फसल से खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आने की उम्मीद है। अनुकूल मानसून की स्थिति, पर्याप्त जलाशय स्तर और उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य रबी की बुवाई और उत्पादन को बढ़ावा मिलने की संभावना है।" मासिक रिपोर्ट के अनुसार मुद्रास्फीति का प्रक्षेपवक्र काफी हद तक खाद्य तेलों, टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर निर्भर करेगा। मासिक रिपोर्ट के अनुसार, "सकारात्मक पक्ष पर यह है कि नवंबर के शुरुआती रुझानों के अनुसार टमाटर और प्याज की कीमतों में नरमी आई है। बंपर खरीफ उत्पादन की उम्मीद से आने वाले महीनों में खाद्य पदार्थों की महंगाई कम होने की संभावना है।" अक्तूबर महीने में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 6.21 प्रतिशत रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से अधिक है। वहीं, लगातार पांच महीनों तक शुद्ध खरीदारी के बाद, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक अक्तूबर में शुद्ध विक्रेता बन गए। वित्त मंत्रालय ने इसका श्रेय भू-राजनीतिक तनाव और चीन में हाल के घटनाक्रमों को दिया, जिसके कारण भारतीय इक्विटी बाजार में बड़ी बिकवाली हुई।