फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया अरबपति कारोबारी गौतम अडानी और उनके सहयोगियों द्वारा एक से ज्यादा राज्यों के अधिकारियों को रिश्वत की पेशकश किये जाने के अमेरिकी न्याय विभाग के आरोपों की अगर भारतीय एजेंसियां घरेलू जांच नहीं करती हैं तो यह एक स्थायी शर्म की बात होगी। संघीय अभियोजकों ने उन अमेरिकी कानूनों के कथित उल्लंघनों पर आधारित अपने अभियोग दायर किये हैं जो विदेशी व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ भ्रष्ट लेनदेन पर रोक लगाते हैं। भारत को घरेलू भ्रष्टाचार-विरोधी कानून के लिहाज से अपनी जांच का आदेश देना होगा। फिलहाल, खासकर अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के रहस्योद्घाटनों के बाद, मोदी सरकार ने अडानी समूह द्वारा कुछ भी गलत किये जाने के ख्याल को स्वीकार करने में स्पष्ट अनिच्छा दिखायी है। भाजपा इस समूह का जोरदार बचाव करती रही है मानो उसके हित अडानी के कॉरपोरेट हितों से अलग न हों। केंद्र सरकार आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने के अनुरोध से अभी तक बेअसर रही है। इन आरोपों में शेयरों की कीमतों में हथकंडेबाजी, संबंधित पक्षों से लेनदेन का खुलासा न करना, फंड्स को गोल-गोल घुमाना और यहां तक कि नियामकों पर कब्जा करना शामिल है। कुछ एजेंसियों द्वारा छिटपुट और शायद बेमन से की गयी जांच का कुछ खास नतीजा नहीं निकला है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं एक्सचेंज बोर्ड (सेबी) द्वारा की गयी छानबीन के नतीजों को इतना भरोसेमंद माना कि उसने अडानी की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने की मांग खारिज कर दी। अडानी ग्रीन और ऐजर पावर ग्लोबल लिमिटेड से सौर ऊर्जा की आपूर्ति से जुड़े इस विदेशी अभियोग में कई राज्य सरकारों (सर्वाधिक उल्लेखनीय आंध्र प्रदेश) का नाम लिया गया है। रिश्वत के रूप में पेशकश की गयी रकम 2029 करोड़ रुपये (26.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर) में से 1750 करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश के एक ‘विदेशी अधिकारी’ के लिए थे। उस समय आंध्र प्रदेश की सत्ता में रही वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और तमिलनाडु सरकार ने अडानी समूह से किसी रिश्ते से इनकार किया है और कहा है कि उनका सौदा एसईसीआई के साथ था। हालांकि, यह अभियोग आरोपियों के बीच ऐसे आंतरिक संदेशों के आदान-प्रदान की बात करता है कि किस तरह “डिस्कॉम्स को प्रेरित किया जाए”। इस मामले के समय इन राज्य सरकारों को चलाने वाली गैर-भाजपा पार्टियों पर निशाना साधने के बजाय, केंद्र को अडानी समूह की जांच में आनाकानी छोड़नी चाहिए। दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार अडानी की दौलत में बड़ी गिरावट आ सकती है, क्योंकि न सिर्फ उनकी कंपनियों के शेयर टूटे हैं बल्कि वे देश भी उनसे मुंह फेर सकते हैं जिन्होंने उनके समूह के जरिये निवेश किया है। हालांकि, यह अपने राजनीतिक संरक्षकों के नियंत्रण से बाहर की घटनाओं के कारण एक कारोबारी दिग्गज के झटका झेलने का मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि एक सरकार को एक व्यक्ति का बचाव किस हद तक करते देखा जा सकता है।