फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया पैरोल या फर्लो (अवकाश) पाये कैदियों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग शुरू करने का सुझाव जेलों में भीड़ घटाने के एक व्यावहारिक साधन के रूप में विचार लायक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसंधान एवं योजना केंद्र की एक शोध रिपोर्ट में यह विचार पेश किया गया है कि कम या मध्यम स्तर के जोखिम वाले विचाराधीन कैदियों को ऐसे उपकरण पहनाने की प्रायोगिक परियोजना (पायलट प्रोजेक्ट) शुरू की जाए, जो उनकी गतिविधियों को ट्रैक और प्रतिबंधित करेंगे। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग के इस्तेमाल पर विचार किया गया है। ‘मॉडल प्रिजन्स एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ में एक प्रावधान है, जिसमें कहा गया है कि “कैदियों को जेल से छुट्टी दी जा सकती है बशर्ते कि वे इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग उपकरण पहनने को तैयार हों” ताकि उनकी गतिविधि और क्रियाकलाप की निगरानी की जा सके। इसमें किसी भी उल्लंघन की स्थिति में छुट्टी रद्द होने की बात कही गयी है। यह अध्ययन बताता है कि ओडिशा पहला राज्य था जिसने जेलों में भीड़ घटाने के लिए गैर-नृशंस अपराधों के विचाराधीन आरोपियों को ‘टैंपर-प्रूफ इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकर’ पहनाने का प्रस्ताव रखा। इस तरह का उपाय जमानत देने की अवधारणा को विस्तार प्रदान करेगा। हालांकि, इसमें यह बात भी वाजिब ढंग से उठायी गयी है कि कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन किये बगैर टेक्नोलॉजी को कब और कैसे इस्तेमाल में लाया जा सकता है, इसके लिए कोई दिशानिर्देश या न्यूनतम मानक उपलब्ध नहीं हैं। कुछ शर्तों पर जेल से बाहर जाने की इजाजत पाने वाले कैदियों की गतिविधियों की ट्रैकिंग के लिए तकनीक के इस्तेमाल से ऐसी चिंताएं उपजती हैं। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए ऐसी शर्तों को अस्वीकार किया, जो आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाली थीं। वह मामला जमानत की इस शर्त से संबंधित था कि आरोपी को अपनी लोकेशन गूगल मैप पर पिन करनी चाहिए और उसे जांच अधिकारी के साथ शेयर करना चाहिए। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग को सिरे से खारिज कर दिया जाए। संसद की एक स्थायी समिति ने ऐसे किफायती उपकरण इस्तेमाल किये जाने की मंजूरी दी थी। इसके लिए उसने अधिकारों के हनन से बचाव होने, प्रशासनिक खर्च घटने और जेलों में भीड़ कम होने के संभावित लाभों का हवाला दिया था। पिछले कुछ सालों में जेलों में बढ़ती भीड़ चिंता का विषय रही है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर, 2022 को देश की जेलों में कैदियों की संख्या 5,73,220 थी, जो कुल क्षमता के 131.4 फीसदी के बराबर थी। लिहाजा, भीड़ घटाने वाले किसी भी कदम (जिसमें ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भी शामिल है) को स्वागत-योग्य माना जाना चाहिए। दुनिया की कई न्याय-व्यवस्थाओं में निश्चित श्रेणी के अपराधियों की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए उपकरण पहनाये जाते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हालिया रिहा कैदी अपने पीड़ितों तक न पहुंचें या अपने अपराध से जुड़ी जगहों में न घुसें, इन उपकरणों का इस्तेमाल तर्कसंगत होगा। अगर ट्रैकर आकार और दिखने में छोटे होंगे, तो जमानत के लाभार्थियों को कलंक के डर से इन्हें पहनने में होने वाली हिचक से छुटकारा मिल जायेगा।