फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नवजात गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गयी। अभी 15 नवंबर की यह घटना सरकार के बजट और योजना में अत्यधिक उपेक्षित क्षेत्रों – स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और अग्नि सुरक्षा – के घातक मेल को रेखांकित करती है। इस साल मई में पूर्वी दिल्ली के एक अस्पताल में ऐसी ही डरावनी घटना घटी थी। झांसी में नवजात चिकित्सा इकाई अपनी क्षमता के लगभग तीन गुने पर काम कर रही थी। कुल 18 बच्चों के लिए निर्धारित इनक्यूबेटरों में 49 बच्चे थे। अस्पताल कर्मियों ने कहा है कि कभी-कभार यह संख्या 60 तक पहुंच जाती है। उत्तर प्रदेश में डॉक्टर-मरीज अनुपात (जो 2021 में 1: 2,158 था) को देखते हुए, इस पर हैरत नहीं होनी चाहिए। गौरतलब है कि 2024 में भारत का डॉक्टर-मरीज अनुपात 1:836 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1:1,000 की सिफारिश के दायरे में है। सन् 1968 में स्थापित झांसी अस्पताल उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के 10 जिलों में फैले एक गरीब इलाके बुंदेलखंड को स्वास्थ्य संबंधी देखभाल मुहैया कराने वाला मुख्य ठिकाना है। रोजाना 5000 से अधिक मरीज आने के बावजूद, इस अस्पताल की कई इकाइयां जर्जर हालत में हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बहु-स्तरीय जांच का एलान किया है, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट बताती हैं कि बिजली का शॉर्ट-सर्किट हादसे का कारण हो सकता है, जिसने आईसीयू में मौजूद ऑक्सीजन सिलिंडरों के चलते गंभीर रूप ले लिया। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में उत्तर प्रदेश में बिजली के शॉर्ट-सर्किट से हुए 106 अग्निकांडों में 101 लोगों की मौत हुई। मौतों के मामले में वह ओड़िशा, महाराष्ट्र और बिहार के बाद चौथे स्थान पर रहा। इस साल एक संपादकीय “छुपा खतरा” (“Insidious, incendiary”) में इस दैनिक ने भारत के अग्नि सुरक्षा मानदंडों की चिरकालिक अवहेलना को उजागर किया। इसमें यह बताते हुए कि “भारत में अग्निशमन सेवाएं सुव्यवस्थित नहीं हैं” आगे कहा गया कि “हाल के वर्षों में अग्नि सुरक्षा कवच की जरूरत कई गुना बढ़ गयी है, जबकि अग्निशमन सेवाओं के विकास में उतनी ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।” वित्तीय वर्ष 2022 और वित्तीय वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य संबंधी देखभाल के लिए महज 2.2 फीसदी का आवंटन था, जो इस साल घटकर 1.75 फीसदी हो गया। विकासशील देशों में भारत के समकक्षों (जैसे ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा किये जाने वाले खर्च से तुलना करने पर यह बहुत ही अपर्याप्त है। वर्ष 2021 में भारत का लोक स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का 3.3 फीसदी था। यह विकासशील देशों (जहां लोक स्वास्थ्य पर खर्च का दायरा अक्सर जीडीपी के 2 फीसदी से 5 फीसदी के बीच है) के वैश्विक औसत से कम है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका लोक स्वास्थ्य के लिए अमूमन अपने जीडीपी का लगभग 10 फीसदी और आठ फीसदी आवंटित करते हैं। लिहाजा यह अंदाजा लगाना सुरक्षित हो सकता है कि भले अभी जांच चल रही हो, लेकिन लोक स्वास्थ्य और अग्नि सुरक्षा दोनों के प्रति एक व्यापक उदासीन रवैये ने झांसी त्रासदी को जन्म दिया।