टीबी की फस्ट लाइन की दवा 4 एफडीसी और 3 एफडीसी की कमी मरीजों की परेशानियां बढ़ रही है। विभाग की गाइडलाइन के अनुसार टीबी मरीजों को एक बार एक माह की दवा देनी है, लेकिन मरीजों को दवा नहीं मिल पा रही है।
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HighLights
पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है प्रारंभिक टीबी की दवा
ग्वालियर सहित पूरे प्रदेश में है इन दवाओं की कमी
दवाओं की कमी अभियान को ठेंगा दिखा रहा है
फास्ट न्यूज़ इंडिया। जिले में टीबी के मरीजों की पहचान होने के बाद दी जाने वाली फस्ट लाइन की दवा 4 एफडीसी और 3 एफडीसी की कमी मरीजों की परेशानियां बढ़ रही है। विभाग की गाइडलाइन के अनुसार टीबी मरीजों को एक बार एक माह की दवा देनी है, लेकिन मरीजों को दवा नहीं मिल पा रही है। अकेले ग्वालियर में ही नहीं प्रदेश भर में दवाओं की कमी है। बावजूद इसके राज्य टीबी अधिकारी दवाओं की कमी से इनकार कर रही हैं।
दवाओं की कमी से 25 प्रतिशत मरीज प्रभावित हैं। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए अभियान भी संचालित है। ऐसे में दवाओं की कमी अभियान को ठेंगा दिखा रहा है। टीबी की दवा की नियमित आपूर्ति नहीं होने से टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लक्ष्य से भटकने की संभावना दिख रही है। जिले में नौ हजार 786 टीबी के मरीज हैं।
इनमें से करीब 3300 मरीजों को फस्ट लाइन की दवा 4 एफडीसी समय पर नहीं मिल पा रही है। बस किसी तरह काम चलाया जा रहा है। एक दिन का भी अंतराल पड़ सकता है भारी: विशेषज्ञ चिकित्सक का कहना है कि टीबी के मरीजों को शुरू से एफडीसी-4 या एफडीसी-3 दवा दी जाती है। एफडीसी-चार में आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, एथमब्यूटोल और पाइराजिनामाइड दवाएं मिश्रित रहती हैं।
एफडीसी-3 में आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन और एथमब्यूटोल का मिश्रण (कंबिनेशन) दिया जाता है। शुरू के छह माह तक लगातार यह दवाएं चलती हैं। इसमें एक दिन का भी अंतर होने पर मरीज की बीमारी एमडीआर में बदलने का खतरा रहता है। एमडीआर टीबी को ठीक करने के लिए फिर उसे लंबे समय तक सात दवाओं के मिश्रण वाली दवा दी जाती है।
दवा छूटने पर बढ़ सकते हैं एमडीआर के मरीज
टीबी के मरीज को नियमित, समय से वजन के अनुसार दवा दी जाती है। दवा छोड़ना और दो से तीन दिन खाने में अंतर करने पर दिक्कत बढ़ने की संभावना रहती है। फिर दवा शुरू करने पर वह दवा का असर नहीं करने की संभावना रहती है और मरीज एमडीआर मरीज की श्रेणी में जा सकता है। इस श्रेणी के मरीज के थूकने, खांसने, छींकने से स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। मांग के सापेक्ष आपूर्ति नहीं होने से दवा की किल्लत हुई है।