काशी के धन्वंतरि निवास में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि का इकलौता मंदिर है। सात पीढ़ियों से भगवान धन्वंतरि के आयुर्वेद की परंपरा यहां आज भी जीवंत है। सबसे खास बात ये है कि यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर महामना मदन मोहन मालवीय और देश के प्रथम राष्ट्रपति, प्रथम प्रधानमंत्री सहित दुनिया भर की हस्तियां इलाज के लिए आ चुकी हैं। सुड़िया स्थित धन्वंतरि निवास में आयुर्वेद की छह पीढि़यों की परंपरा सहेज कर रखी गई हैं। देश का इकलौता स्थान है जहां भगवान धनवंतरि की अष्टधातु की प्रतिमा विराजमान है। यही कारण है कि यहां पर असाध्य रोग लकवा, पार्किंसन सहित कई व्याधियों का इलाज होता है। परिवार में आयुर्वेद की शुरुआत पं. कन्हैया लाल वैद्य से हुई और उनके बाद पं. गिरधारी लाल वैद्य, पं. रघुनंदन, पं. रमाशंकर वैद्य और पं. शिवकुमार शास्त्री ने इसे आगे बढ़ाया।
पं. समीर शास्त्री ने बताया कि सभी पूर्वज काशी के राजघराने से संबंधित रहे। काशीराज ने उन्हें राजवैद्य की उपाधि दी थी। पिताजी पं. शिवकुमार शास्त्री ने देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की भी चिकित्सा की थी। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को जब लकवा हुआ था तो उनका इलाज भी पिताजी ने किया।
वर्तमान में राजवैद्य परिवार के पं. राम कुमार शास्त्री, नंद कुमार शास्त्री, समीर कुमार शास्त्री के साथ सातवीं पीढ़ी के उत्पल शास्त्री, आदित्य विक्रम शास्त्री और मिहिर शास्त्री पूजन व आयुर्वेदिक चिकित्सकीय परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
325 साल से हो रही भगवान धन्वंतरि की पूजा
धनतेरस के दिन श्रद्धालुओं को भगवान धन्वंतरि की अष्टधातु की प्रतिमा के दर्शन मिलते हैं। वर्ष में केवल पांच घंटे ही आम श्रद्धालु भगवान धन्वंतरि के दर्शन कर पाते हैं। 325 साल से सुड़िया स्थित धन्वंतरि निवास पर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है।
आज शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक होंगे दर्शन
29 अक्तूबर को धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के दर्शन के लिए मंदिर के पट सिर्फ पांच घंटे ही खुलेंगे। आम श्रद्धालुओं को शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक ही दर्शन मिलेगा। मान्यता है कि धनतेरस के दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि के मात्र दर्शन एवं प्रसाद ग्रहण करने से वर्ष भर स्वास्थ्य उत्तम एवं काया निरोगी रहती है। भगवान धन्वंतरि के जन्म के समय दोपहर में भगवान को चांदी के सिंहासन पर विराजमान कराया जाएगा। उनके चारों हाथों में अमृत का कलश, चक्र, शंख और जोंक सुशोभित होगा। भगवान को स्वर्ण, हीरे, माणिक, पन्ना, मोती और जड़ीबूटियों में केसर, कस्तूरी, अंबर, अश्वगंधा, अमृता, शंखपुष्पी, मूसली का विशेष भोग लगाया जाएगा। हिमालय से मंगाए गए फूलों से शृंगार होगा।
अब तक ले चुके हैं चिकित्सा का लाभ
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महामना पं. मदन मोहन मालवीय, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु, पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव, अमेरिकी कलाकार जॉर्ज हेरिसन, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोईराला, जीपी कोइराला, पं. जसराज, भारत रत्न पं. रविशंकर, पं. किशन महाराज सहित कई हस्तियों ने यहां चिकित्सा का लाभ लिया है। इसके अलावा हंगरी से बोरोस्ज्युला बोरोस लुसा, मॉरिशस से भुवन परिवार आयुर्वेदिक चिकित्सा का लाभ ले चुके हैं।