"मियां, मैं तुम्हारे लिए कोई फिल्म नहीं बनाऊंगा। ना ही मैं तुम्हें लॉन्च करूंगा। तुम खुद स्ट्रगल करो। और हां, हो सके तो मेरा नाम भी किसी से ज़्यादा मत लेना। ना ही मुझसे किसी को फोन करने को कहना।" अजीत साहब ने अपने बेटे शहज़ाद से ये बात तब कही थी जब शहज़ाद ने उनसे कहा कि मैं भी एक्टर बनना चाहता हूं। लेकिन जब अजीत साहब ने शहज़ाद खान को ये सब बातें कही तो शहज़ाद ने कसम खाई कि मैं मरता मर जाऊंगा लेकिन इस आदमी से एक पैसा नहीं लूंगा। ना ही किसी से इनका नाम लूंगा।
शहज़ाद खान ने अपने पास जमा पैसा निकाला। कुछ पैसा इनके दोस्तों ने इन्हें दिया। दोस्तों की मदद से इन्होंने एक एक्टिंग क्लास भी जॉइन कर ली। एक दिन शहज़ाद को पता चला कि अर्जुन हिंगोरानी(वही जिन्होंने धर्मेंद्र को फिल्म इंडस्ट्री में लॉन्च किया था। और जिन्होंने शहज़ाद के पिता अजीत के साथ भी कई फिल्में बनाई थी।) कोई फिल्म बनाने जा रहे हैं। उनसे मिलने का इरादा लिए शहज़ाद खान एक दिन पहुंच गए रूपतारा स्टूडियो। लेकिन घंटों तक शहज़ाद वहां खड़े रहे, अर्जुन हिंगोरानी आए ही नहीं।
शहज़ाद खान अर्जुन हिंगोरानी का इंतज़ार कर रही रहे थे कि किसी ने पीछे से इनके कंधे पर हाथ मारा। इन्होंने मुड़कर देखा तो एक आदमी खड़ा था। वो आदमी वहां मौजूद एक इमारत की पहली मंज़िल की तरफ इशारा करते हुए इनसे बोला,"वो साहब ने आपको बुलाया है।" पहले तो शहज़ाद खान को लगा कि शायद अर्जुन हिंगोरानी आ चुके हैं और वो ही इन्हें मिलने के लिए बुला रहे हैं। लेकिन थोड़ी देर में इन्हें अहसास हुआ कि अर्जुन हिंगोरानी का ऑफिस तो ग्राउंड फ्लोर पर है। ये आदमी तो किसी दूसरे ऑफिस की तरफ इशारा कर रहा है।
शहज़ाद जब उस ऑफिस में पहुंचे तो पता चला कि ये प्रताप शर्मा का ऑफिस है। प्रताप शर्मा भी एक फिल्मकार हैं। उन्होंने एक और एक ग्यारह(1981), मर्दानगी(1988) व आग के शोले(1988) जैसी फिल्मों का निर्माण किया है। जब शहज़ाद खान प्रताप शर्मा से मिले तो उन्होंने इनसे कहा,"मैं एक फिल्म बना रहा हूं जिसका नाम है सोम मंगल शनि। उसमें सोम के रोल में हम हेमंत बिर्जे को फाइनल कर चुके हैं। मंगल खान के कैरेक्टर के लिए मैं तुम्हें लेना चाहता हूं। तुम इस फिल्म में काम करोगे?"
प्रताप शर्मा को ज़रा भी मालूम नहीं था कि ये लड़का दिग्गज एक्टर अजीत का बेटा है। और शहज़ाद खान भी कसम खा चुके थे कि वो अपने पिता का नाम किसी हाल में नहीं लेंगे। इसलिए उन्होंने भी प्रताप शर्मा को नहीं बताया कि वो कौन हैं। प्रताप शर्मा ने जब उन्हें सोम मंगल शिन नाम की वो फिल्म ऑफर की तो इन्होंने फौरन वो ऑफर स्वीकार कर लिया। इस तरह शहज़ाद खान की पहली फिल्म बनी सोम मंगल शनि। हालांकि इनकी पहली रिलीज़्ड फिल्म है कयामत से कयामत तक।
दरअसल, सोम मंगल शनि की शूटिंग कंप्लीट होने में काफी वक्त लग गया था। और शहज़ाद खान कुछ ही दिन बाद कयामत से कयामत तक फिल्म भी साइन कर चुके थे। इसलिए कयामत से कयामत तक शहज़ाद खान की पहली रिलीज़्ड फिल्म है। कयामत से कयामत तक फिल्म में ये कैरेक्टर आर्टिस्ट थे। लेकिन सोम मंगल शनि में इन्हें हीरो का किरदार मिला था। शहज़ाद कहते हैं कि वो चाहते तो हीरो बनना ही थे। लेकिन किस्मत ने उन्हें कैरेक्टर आर्टिस्ट बना दिया।
अपने करियर में शहज़ाद खान ने हिंदी व अन्य भाषाओं की मिलाकर 200 से भी अधिक फिल्मों में काम किया है। और ये कुछ टीवी शोज़ में भी नज़र आ चुके हैं। आज शहज़ाद खान का जन्मदिन है। 25 अक्टूबर 1966 को शहज़ाद खान का जन्म हुआ था। इनके पिता कितनी बड़ी हस्ती थे, ये तो हम सभी जानते ही हैं। चलिए, अब ये भी जान लेते हैं कि शहज़ाद खान को कयामत से कयामत तक फिल्म में काम कैसे मिला था।
एक दिन शहज़ाद खान को एक फिल्म मैगज़ीन के ज़रिए पता चला कि नासिर खान एक फिल्म शुरू करने वाले हैं जिसका नाम होगा कयामत से कयामत तक। इत्तेफाक से शहज़ाद खान का घर नासिर खान के ऑफिस से बहुत अधिक दूर नहीं था। महबूब स्टूडियो के सामनने नासिर खान का ऑफिस हुआ करता था। एक दिन शहज़ाद अपनी कुछ तस्वीरें लेकर नासिर खान के ऑफिस पहुंच गए। वहां और भी कई एक्टर्स काम की उम्मीद में आए थे। लगभग 45 मिनट के इंतज़ार के बाद शहज़ाद खान को नासिर हुसैन ने मिलने बुलाया। शहज़ाद जब नासिर हुसैन के ऑफिस में एंटर हुए तो नासिर खान का चेहरा दीवार की तरफ था।
उन्होंने दीवार की तरफ देखते हुए ही शहज़ाद खान को बैठने को कहा। शहज़ाद कुछ बोलते उससे पहले ही नासिर खान ने कहा,"अगर हीरो के रोल के लिए आए हो तो तुम्हारा आना बेकार है। हीरो मैं सिलेक्ट कर चुका हूं। वो देखो, वहां हीरो बैठा है।" नासिर खान के बड़े से केबिन के एक कोने में आमिर खान तब कोई किताब पढ़ रहे थे। शहज़ाद खान ने आमिर को देखा। वैसे तो वो आमिर को पहले से जानते थे। लेकिन उन्होंने नासिर खान से ऐसा कुछ कहा नहीं। वो बस नासिर खान से यही बोले कि आप मुझे कोई अच्छा सा रोल दे दीजिए। चाहे कैरेक्टर रोल ही क्यों ना हो।
तब नासिर खान शहज़ाद खान की तरफ मुड़े। उन्होंने शहज़ाद को एक कागज़ व पैन देकर कहा कि इस पर अपना पता व टेलिफोन नंबर लिख दो। शहज़ाद ने अपना पता और टेलिफोन नंबर लिखकर दिया तो उनका टेलिफोन नंबर देखकर नासिर खान ज़रा कन्फ्यूज़ हुए। फिर वो शहज़ाद खान से बोले,"ये तो हामिद का नंबर है। क्या तुम हामिद की बिल्डिंग में रहते हो?" वैसे तो अधिकतर लोगों को पता ही होगा। लेकिन जिन्हें नहीं पता उनके लिए बता देते हैं कि शहज़ाद खान के पिता और एक ज़माने के हिंदी सिनेमा के धाकड़ हीरो, चरित्र अभिनेता व खलनायक रहे अजीत का रियल नेम हामिद अली खान था।
शहज़ाद ने नासिर खान से बताया कि मैं उनकी बिल्डिंग में नहीं, उनके घर में रहता हूं। नासिर खान कन्फ्यूज़न में इन्हें देख रहे थे। तब शहज़ाद खान ने उन्हें बताया कि मैं उनका बेटा हूं। ये सुनकर पहले तो नासिर खान बड़े हैरान हुए। फिर इन्हें डांटते हुए बोले,"तुमने पहले क्यों नहीं बताया कि तुम हामिद मियां के बेटे हो?" शहज़ाद खान ने उनसे बताया कि कैसे वो अपने दम पर अपना करियर बनाने निकले हैं। और कतई नहीं चाहते हैं कि वो किसी भी तरह अपने पिता के नाम का सहारा लें। नासिर खान को शहज़ाद खान का ये अंदाज़ पसंद आया। और उन्होंने कयामत से कयामत तक फिल्म में आमिर खान के दोस्त के किरदार में शहज़ाद खान को साइन कर लिया।
शहज़ाद खान के पूरे करियर का सबसे यादगार रोल है फिल्म "अंदाज़ अपना अपना" का भल्ला का रोल। उस रोल में स्वर्गीय विजू खोटे जी संग मिलकर इन्होंने बेहतरीन कॉमेडी की थी। उस रोल के बारे में भी बात करेंगे। लेकिन किसी और लेख में। शहज़ाद खान जी को किस्सा टीवी की तरफ से जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाईयां।