ललितपुर। दीपावली से पहले मिट्टी के दीये बनाने के लिए चाक ने गति पकड़ ली है। कुम्हारों का कहना है कि इस बार अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है। कुम्हारों की बस्ती में ज्यादातर परिवार मिट्टी के दीये, चक्की व ग्वालिन समेत अन्य सामान तैयार करने में जुटे हैं। बाजार में डिजाइन वाले दीये भी उपलब्ध हैं, लेकिन देसी दीयों की मांग अधिक रहती है। मोहल्ला चौबयाना में कई घरों में मिट्टी के दीपक, मटकी व चक्की बनाई जा रही है। कुछ घरों में ग्वालिन भी बनाई जा रही है। इन काम में बड़ों से लेकर बच्चे तक लगे हैं। कोई मिट्टी बनाकर गूंथने में जुटा है तो कोई चाक तक मिट्टी ला रहा है। घर के बड़े लोग चाक पर बैठकर मिट्टी को आकार देने में जुटे हैं, तो कोई बर्तनों को सुखाने में लगा है। बच्चों को दीपक व अन्य सामान एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखने की जिम्मेदार दी गई है तो महिलाएं सूखे बर्तनों के लिए आवा जलाने व पके बर्तनों को व्यवस्थित रखने में लगी हैं। कई महिलाएं पके बर्तन की रंगाई-पुताई कर उन्हें आकर्षक बनाने में जुटी हैं।
लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए जलाए जाते मिट्टी के दीये
दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं। मिट्टी से निर्मित चार, छह, बारह व चौबीस दीपों वाली ग्वालिन की पूजा होती है। मिट्टी की छोटी मटकियों में धान की खीलें भरकर उनकी पूजा होती है। शहर में चौबयाना, खिरकापुरा, गांधीनगर, नईबस्ती, आजादपुरा द्वितीय, नेहरूनगर आदि मोहल्लों में कुम्हारों की बस्ती में मिट्टी के सामान तैयार हो रहे हैं।
मिट्टी के बढ़ गए दाम
कुम्हारों ने बताया कि मिट्टी के दाम बढ़ गए हैं। पिछले वर्ष जहां एक ट्राली मिट्टी 4500 रुपये में खरीदी थी, वह अब बढ़कर सात हजार तक पहुंच गई है। दशकभर पहले जैसी मिट्टी के बर्तनों की बिक्री भी नहीं होती। बाजार में दस रुपये की चक्की व 20 रुपये में 16 दीपक बिकते हैं, ऐसे में अधिक मुनाफा नहीं हो पाता। दीपावली पर 10-15 हजार रुपये तक की कमाई जाती है। शेष दिनों में मजदूरी करनी पड़ती है।
दीपावली को लेकर मिट्टी के दीपक, चक्की व ग्वालिन बनाए जाने का कार्य जोर-शोर से चल रहा है। इस बार अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है। - लक्ष्मीनारायण कुम्हार
एक माह पहले से तैयारियों में जुट जाते हैं, लेकिन बाजार में सही जगह न मिलने से कुछ परेशानी है। घंटाघर के आसपास जगह दी जाए। - ब्रजेश प्रजापति