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राजकुमार
  • 151168597 - RAJESH SHIVHARE 2 1
    13 Oct 2024 19:41 PM



"क्या ये सच है कि आपको कैंसर हो गया है?" सुभाष घई ने राज कुमार से पूछा। उस वक्त राज कुमार सुभाष घई की फिल्म सौदागर में काम कर रहे थे। फिल्मी गलियारों में तब ये चर्चाएं तो चल रही थी कि राज कुमार को कैंसर डिटेक्ट हुआ है। लेकिन राज कुमार ने कभी किसी से इसके बारे में बात नहीं की थी। सुभाष घई ने भी ऐसे ही एक दिन किसी से राज कुमार जी के कैंसर के बारे में सुना था। हालांकि वो एकदम से राज कुमार से इस बारे में बात करने की हिम्मत नहीं जुटा सके थे। मगर उस दिन राज कुमार की तबियत ज़रा सही नहीं थी। वो अपने डायलॉग्स ठीक से बोल नहीं पा रहे थे। 

 

आखिरकार सुभाष घई ने राज कुमार से बात करने का फैसला किया। वो राज कुमार से बोले,"आपकी सेहत के बारे में लोग बातें कर रहे हैं। क्या ये सच है कि आपको कैंसर हो गया है?" अब राज कुमार तो राज कुमार ठहरे। शाही मिज़ाज रखने वाले इंसान। जिस वक्त सुभाष घई ने राजकुमार जी से वो सवाल पूछा था उस वक्त भी वो सिगरेट पी रहे थे। सुभाष घई का सवाल सुनकर उन्होंने गहरा सा एक कश लिया। और फिर स्टाइल में धुआं छोड़ते हुए अपने शाही अंदाज़ में ही सुभाष घई को जवाब दिया,"राज कुमार को सर्दी-जुकाम जैसी मामूली बीमारी नहीं हो सकती। कैंसर जैसी बड़ी बीमारी ही होगी जानी।"

 

राज कुमार जी जब तक ज़िंदा रहे, अपने शाही एटिट्यूड के साथ ही जीते रहे। हां, अक्सर उनके अक्खड़पने की वजह से इंडस्ट्री के दूसरे कलाकारों संग उनके रिश्ते खराब ज़रूर हुए। लेकिन उन्होंने खुद को कभी नहीं बदला। शायद इसी वजह से बहुत से लोग राज कुमार को एक इंसान के तौर पर नापसंद करते हों? लेकिन एक एक्टर के तौर पर राज कुमार को नापसंद किया जाना मुमकिन नहीं है। उनके डायलॉग्स सुनकर तो उदासी से भी ज़्यादा उदास बैठा कोई इंसान भी अपनी ब्लड स्ट्रीम यानि रक्त वाहिकाओं में एक अलग एनर्जी सी महसूस करने लग जाता था। 

 

आज राज कुमार जी का जन्मदिवस है। 08 अक्टूबर 1926 को बलूचिस्तान के लोरालई शहर में राज कुमार जी का जन्म हुआ था। वो इलाका अब पाकिस्तान कहलाता है। आज भी राज कुमार जी का पुश्तैनी मकान लोरालई में मौजूद है। राज कुमार जी तो अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनकी कहानियां हमेशा रहेंगी। चलिए, राज कुमार जी को नमन करते हुए आज उनकी कुछ रोचक और अनसुनी कहानियां जानते हैं। यहां से आगे बढ़ने से पहले आपको ये भी बता देना ज़रूरी है कि अब राज कुमार जी की जितनी भी कहानियां आप इस लेख में के ज़रिए जानेंगे वो सब डायरेक्टर मेहुल कुमार जी ने अपने अलग-अलग इंटरव्यूज़ में बताई हैं। मेहुल कुमार वही हैं जिन्होंने राज कुमार जी के साथ तिरंगा फिल्म बनाई थी। 1987 में आई फिल्म "मरते दम तक" में मेहुल कुमार ने पहली दफा राज कुमार जी के साथ काम किया था। ये सभी कहानियां "मरते दम तक" फिल्म से ही कनेक्टेड हैं।

 

ये किस्सा साल 1987 का है। उस वक्त राज कुमार डायरेक्टर मेहुल कुमार की फिल्म "मरते दम तक" की शूटिंग शुरू करने वाले थे। मुंबई के मड आइलैंड इलाके में मौजूद नैय्यर बंगलॉ में पहले दिन की शूटिंग होनी थी। पहले दिन जो सीन शूट होना था उसमें गोविंदा, फराह, शक्ति कपूर और राज कुमार जी को होना था। बाकि सब तो सेट पर वक्त से पहले ही पहुंच गए थे। लेकिन राज कुमार को ज़रा देर हो गई। अचानक मेहुल कुमार के स्टाफ ने देखा कि राज कुमार आ चुके हैं। लेकिन वो अपनी गाड़ी से नहीं, एक टैक्सी से आए हैं। राज कुमार जी का टैक्सी से आना बड़ी बात थी। इसलिए सभी लोग काफी हैरान हुए। 

 

डायरेक्टर मेहुल कुमार उन्हें रिसीव करने टैक्सी के पास आए। राज कुमार जब टैक्सी से उतरे तो मेहुल कुमार ने उनसे टैक्सी में आने की वजह पूछी। राज कुमार ने बताया कि उनकी गाड़ी रास्ते में खराब हो गई। इसलिए उन्हें टैक्सी में आना पड़ा। अगर वो आज नहीं आते तो लोगों को बातें बनाने का मौका मिल जाता कि देखो, राज कुमार तो पहले दिन ही शूटिंग पर नहीं आया। खैर, राज कुमार ने जब टैक्सी वाले को पैसे देने चाहे तो टैक्सी वाले ने पैसे लेने से इन्कार कर दिया। उस टैक्सी वाले के लिए तो वो बहुत बड़ी बात थी कि उसकी टैक्सी में "राज कुमार" बैठे हैं। वो कह भी रहा था कि वो राज कुमार जी से पैसे नहीं ले सकता।

 

राज कुमार ने उस टैक्सी वाले से काफी कहा कि वो अपने पैसे ले ले। लेकिन वो टैक्सी तैयार नहीं हुआ। तब राज कुमार उसे अपने साथ सेट पर लाए। उससे पूछा कि क्या वो कुछ खाना पसंद करेगा? क्या उसे चाय पीना पसंद है? टैक्सी वाले ने कुछ भी खाने-पीने से इन्कार कर दिया। उसने बस राज कुमार जी के पैर छुए। उनसे आशीर्वाद लिया। और खुश होता हुआ वहां से चला गया। उस टैक्सी वाले की खुशी देखकर राज कुमार भी बहुत खुश हुए उस दिन। मेहुल जी ने ये भी बताया था कि राज कुमार जी ने भी उस टैक्सी वाले को वहां से खाली हाथ नहीं जाने दिया। उस ज़माने में वहां तक का किराया 20-25 रुपए होता था। राज कुमार ने उसे सौ का नोट देकर भेजा था।

 

"मरते दम तक" फिल्म की पहले दिन की शूटिंग का भी एक छोटा सा, लेकिन दिलचस्प किस्सा है। राज कुमार जी की एंट्री वाला सीन पहले दिन ही फिल्माया गया था। सीन कुछ ऐसे था कि फराह खान शक्ति कपूर को पीटती-कूटती हुई लाती हैं और एक आदमी के जूतों के पास शक्ति कपूर को पटक देती हैं। फिर कैमरा टिल्ट-अप होता है और पता चलता है कि वो आदमी राज कुमार हैं। वहां राज कुमार कोई डायलॉग बोलते हैं और शॉट कट हो जाता है। वो शॉट खत्म होने के बाद राज कुमार ने पूरी यूनिट के सामने मेहुल कुमार से पूछा कि ये कैसा शॉट लिया है तुमने? हमें तो कुछ समझ नहीं आया। 

 

मेहुल कुमार ने राज कुमार जी को समझाया कि कैसे इससे पहले वाले शॉट में फराह खान ने शक्ति कपूर को फेंका था। और क्यों ये शॉट इसी तरह से लिया जाना ज़रूरी है। राज कुमार को समझ में आ गया। फिर आगे के सीन्स उन्होंने बिना कोई सवाल-जवाब किए कंप्लीट कर लिए। शूटिंग खत्म होने के बाद राज कुमार ने मेहुल कुमार को मिलने बुलाया। मेहुल जब उनके पास पहुंचे तो राज कुमार ने पहले तो उन्हें गले लगा लिया। फिर बोले,"देखो, ये मेरी आदत है कि पहले दिन मैं यूनिट के सामने ही डायरेक्टर को कोई भी घटिया सी बात कह देता हूं। अगर डायरेक्टर मेरा सजेशन मान लेता है तो फिर पूरी फिल्म मैं उससे अपने हिसाब से बनवाता हूं। अगर नहीं मानता है तो फिर मैं पूरी फिल्म डायरेक्टर के हिसाब से ही करता हूं। और ये फिल्म मैं तुम्हारे हिसाब से ही करूंगा।" उसी दिन राज कुमार और मेहुल कुमार की अच्छी दोस्ती हो गई थी।

 

"मरते दम तक" के प्रोड्यूसर प्राणलाल मेहता थे। प्राणलाल मेहता ने मेहुल कुमार द्वारा डायरेक्टेड एक गुजराती फिल्म देखी थी जो उन्हें बहुत पसंद आई थी। मेहुल जी के काम से प्राणलाल मेहता इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मेहुल कुमार को ऑफर दिया कि अगर तुम्हारे पास कोई हिंदी की कहानी है तो उसे मेरे लिए डायरेक्ट करो। मैं फिल्म प्रोड्यूस करूंगा। मेहुल जी के पास "मरते दम तक" की कहानी मौजूद थी। उन्होंने वही फिल्म बनाने का फैसला किया। मेहुल जी बहुत पहले ही तय कर चुके थे कि जब भी वो इस कहानी पर फिल्म बनाएंगे तो उसमें राणा के रोल में राज कुमार को ही लेंगे।

 

मगर जब मेहुल कुमार ने प्राणलाल मेहता को बताया कि वो कहानी के एक खास रोल में राज कुमार को लेंगे तो प्राणलाल मेहता ने फिल्म बनाने से ही इन्कार कर दिया। मेहुल ने उनके इन्कार की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि राज कुमार को वो दो दफा पहले भी अपनी फिल्म में काम करने का ऑफर दे चुके हैं। लेकिन राज कुमार ने दोनों दफा उनके साथ काम करने से मना कर दिया। इसलिए प्राणलाल मेहता राज कुमार को कोई फिल्म अब ऑफर नहीं करना चाहते थे। हालांकि उन्होंने मेहुल से ये भी कहा कि तुम जाकर राज कुमार जी से बात करके देख लो। अगर वो मान जाएं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं। 

 

मेहुल कुमार जाकर राज कुमार से मिले। उन्होंने राज कुमार को फिल्म में काम करने का ऑफर दिया। और उन्हें स्क्रिप्ट थमा दी। राज कुमार ने जब फिल्म का टाइटल "मरते दम तक" पढ़ा तो वो बोले कि टाइटल में तो दम है। स्क्रिप्ट का देखेंगे दम होगा कि नहीं। मेहुल कुमार ने उन्हें भरोसा दिलाया कि स्क्रिप्ट आपको ज़रूर पसंद आएगी। तब राज कुमार ने मेहुल से अगले सप्ताह आने को कहा। उन्होंने मेहुल से कहा कि अगले सप्ताह मैं तुम्हें बता दूंगा कि मैं तुम्हारी फिल्म में काम करूंगा कि नहीं। अगले सप्ताह जब मेहुल कुमार उनसे मिलने उनके घर पहुंचे तो मेहुल को देखते ही राज कुमार उनसे बोले,"आई एम डूईंग योर फिल्म।"

 

राज कुमार ने कहा,"तुम्हारी स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है। मैं इस फिल्म में ज़रूर काम करूंगा। ये बताओ कि इस फिल्म का प्रोड्यूसर कौन है?" मेहुल कुमार उनसे बोले कि आप उस प्रोड्यूसर की दो फिल्में पहले रिजेक्ट कर चुके हैं। राज कुमार ने प्रोड्यूसर का नाम बताने को कहा तो मेहुल ने उन्हें बताया कि ये फिल्म प्राणलाल मेहता प्रोड्यूस करेंगे। कुछ पल सोचने के बाद राज कुमार बोले,"अच्छा। मेहता साहब प्रोड्यूसर हैं। ठीक है, अगर हमने उनकी दो फिल्में रिफ्यूज़ की हैं तो उनकी इस फिल्म में हम ज़रूर काम करेंगे। उनसे कहना कि हमसे मिलें और बाकि बातें फाइनल करें।" 

 

अगला किस्सा कुछ यूं है कि "मरते दम तक" फिल्म के आखिरी सीन में राज कुमार अपनी मृत्यु का ड्रामा रचते हैं। उनकी बाकायदा एक अंतिम यात्रा भी निकाली जाती हैं। सीन के लिए राज कुमार जी को एक गाड़ी में लिटाया गया। और उन्हें फूलों से ढक दिया गया। मेहुल कुमार ने भी अपने हाथों से एक फूलमाला राज कुमार जी के गले में डाली। वो देख राज कुमार मेहुल कुमार से बोले,"जानी, अभी पहना लो हमें जितने भी हार पहनाने हैं। जब हम जाएंगे तो आपको पता भी नहीं चलेगा कि हम कब चले गए।" उस वक्त तो मेहुल कुमार ने सोचा कि राज कुमार मज़ाक रहे हैं। लेकिन 3 जुलाई 1996 के दिन मेहुल कुमार को अहसास हुआ कि राज कुमार उस दिन मज़ाक नहीं कर रहे थे। 

 

मेहुल कुमार उस दिन महबूब स्टूडियो में मृत्युदाता फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। अमिताभ बच्चन और डिंपल कपाड़िया भी सेट पर मौजूद थे। तभी किसी ने मेहुल कुमार को फोन पर बताया कि राज कुमार जी का निधन हो गया है। उनका अंतिम संस्कार भी किया जा चुका है। उसी वक्त मेहुल कुमार को साल 1987 में फिल्म "मरते दम तक" की शूटिंग के दौरान का वो दिन याद आ गया जब राज कुमार ने उनसे कहा था कि जानी, अभी पहना लो जितनी माला पहनानी है। जब हम जाएंगे तो आपको पता भी नहीं चलेगा कि हम कब चले गए। "मरते दम तक" की शूटिंग के दौरान जब राज कुमार जी ने ये बात मेहुल कुमार से बोली थी तो मेहुल कुमार को बड़ा अजीब लगा था। 

 

शूटिंग खत्म होने के बाद उसी दिन मेहुल कुमार ने राज कुमार जी से पूछा था कि आपने ऐसा क्यों बोला था कि जब आप जाएंगे तो किसी को पता नहीं चलेगा? तब राज कुमार ने मेहुल से कहा,"जानी, फिल्म लाइन के लोग किसी की शमशान यात्रा को तमाशा बनाते हैं। वो चमकीले सफेद कपड़े पहनकर आते हैं। मीडिया वालों को बुलाते हैं। इससे होता ये है कि जिसकी मौत हुई है उसको सम्मान मिलने की जगह उसका तमाशा बन जाता है। इसलिए मैंने तय किया है कि जब मेरी डेथ होगी तो मेरी शमशान यात्रा में सिर्फ मेरी फैमिली के लोग होंगे। फिल्मी दुनिया का या मीडिया का कोई इंसान नहीं होगा।"

 

मेहुल कहते हैं कि राज कुमार ने बरसों पहले उनसे जो कहा था उसे साबित भी किया। वाकई में किसी को नहीं पता चला कि राज कुमार को कब शमशान ले जाया गया। कोई नहीं जानता कि राज कुमार का अंतिम संस्कार कहां हुआ। कैसे हुआ। जब उनका अंतिम संस्कार खत्म हो गया तब उनके परिवार के लोगों ने बाकि दुनिया को ये खबर दी कि राज कुमार अब नहीं रहे। खुद मेहुल कुमार को भी राज कुमार जी के बेटे पुरू राज कुमार ने दोपहर के बाद उनकी मौत की खबर दी थी। वो खबर मिलने के बाद मेहुल कुमार ने शूटिंग रोक दी। मेहुल राज कुमार के घर के लिए निकल गए। उनके साथ अमिताभ बच्चन और डिंपल कपाड़िया भी थी। ये तीनों जब राज कुमार जी के घर पहुंचे तो वहां बहुत कम लोग थे। फिल्म इंडस्ट्री से तो कोई भी नहीं था। RaajKumar 



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