बासी_रोटी....
एक लड़का था | माँ ने उसका विवाह कर दिया | परन्तु वह कुछ कमाता नहीं था | माँ जब भी उसको रोटी परोसती थी, तब वह कहती कि बेटा, ठण्डी रोटी खा लो | लड़के की समझ में नहीं आया कि माँ ऐसा क्यों कहती है | फिर भी वह चुप रहा |
एक दिन माँ किसी काम से बाहर गयी तो जाते समय अपनी बहू (उस लड़के की स्त्री) – को कह गयी कि जब लड़का आये तो उसको रोटी परोस देना | रोटी परोसकर कह देना कि ठण्डी रोटी खा लो |
उसने अपने पति से वैसा ही कह दिया तो वह चिढ़ गया कि माँ तो कहती ही है, वह भी कहना सीख गयी !
वह अपनी स्त्री से बोला कि बता, रोटी ठण्डी कैसे हुई ? रोटी भी गरम है, दाल-साग भी गरम है, फिर तू ठण्डी रोटी कैसे कहती है ?
वह बोली की यह तो आपकी माँ जाने | आपकी माँ ने मेरे को ऐसा कहने के लिये कहा था, इसलिये मैंने कह दिया |
वह बोला कि मैं रोटी नहीं खाऊँगा | माँ तो कहती ही थी, तू भी सीख गयी !
माँ घर आई तो उसने बहू से पूछा कि क्या लड़के ने भोजन कर लिया ? वह बोली कि उन्होंने तो भोजन किया ही नहीं, उलटा नाराज हो गये !
माँ ने लड़के से पूछा तो वह बोली कि माँ तू तो रोजाना कहती थी कि ठण्डी रोटी खा ले और मैं सह लेता था, अब यह भी कहना सीख गयी | रोटी तो गरम होती है, तू बता कि रोटी ठण्डी कैसे है ?
माँ ने पूछा कि ठण्डी रोटी किसको कहते हैं ?
वह बोला – सुबह की बनायी हुई रोटी शाम को ठण्डी होती है | बासी रोटी ठण्डी और ताज़ी रोटी गरम होती है |
माँ ने कहा - बेटा, अब तू विचार करके देख तेरे बाप की जो कमाई है, वह ठण्डी, बासी रोटी है | गरम, ताज़ी रोटी तो तब होगी, जब तू खुद कमाकर लायेगा |
लड़का समझ गया और माँ से बोला कि अब मैं खुद कमाऊँगा और गरम रोटी खाऊँगा |
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि विवाह होने के बाद ठण्डी रोटी नहीं खानी चाहिये, अपनी कमाई की रोटी खानी चाहिये |
इसलिये विवाह तभी करना चाहिये, जब स्त्री का और बच्चों का पालन-पोषण करने की ताकत हो | यह ताकत न हो तो विवाह नहीं करना चाहिये |