नोट :वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 40 मिनट से लेकर 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा.
फ़ास्ट न्यूज़ इंडिया यूपी 🙏 फर्रुखाबाद।माँ कुष्मांडा का पूजा विधि (Maa Chandraghanta Ki Puja Vidhi)
मां कुष्मांडा की पूजा करने के लिए सुबह उठकर स्नान कर मंदिर की साज सज्जा करें. उसके बाद मां कुष्मांडा का ध्यान कर कुमकुम, मौली, अक्षत, लाल रंग के फूल, फल, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक चढ़ाएं. साथ ही यदि सफेद कुम्हड़ा या उसके फूल है तो उन्हें मातारानी को अर्पित कर दें. फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी के दीप या कपूर से मां कूष्मांडा की आरती करें.
मां कुष्मांडा का भोग (Maa Chandraghanta Bhog)
मां कुष्मांडा को कुम्हरा यानी के पेठा सबसे प्रिय है। इसलिए इनकी पूजा में पेठे का भोग लगाना चाहिए. इसलिए आप पेठे की मिठाई भी मां कुष्मांडा को आर्पित कर सकते हैं. इसके अलावा हलवा, मीठा दही या मालपुए का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. पूजा के बाद मां कुष्मांडा के प्रसाद को स्वयं भी ग्रहण करे और लोगों में भी वितरित कर सकते हैं.
माँ कुष्मांडा पूजा मंत्र (Maa Chandraghanta Puja Mantra)
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥
मां कूष्मांडा की प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
मां कूष्मांडा की स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कूष्मांडा बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:।
मां कुष्मांडा की आरती (Maa Chandraghanta Aarti)
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
कुष्मांडा पूजा का महत्व (Maa Chandraghanta Significance)
मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा आर्चना करने से परिवार में सुख समृद्धि आती है और मां संकटों से रक्षा करती हैं. अगर आविवाहित लड़कियां मां की श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करती हैं तो उन्हें मानचाहे वर की प्राप्ति होती है और सुहागन स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मिलता है. इसके अलावा देवी कुष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।
मां कुष्मांडा की व्रत कथा
सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि प्राचीन काल में त्रिदेव ने सृष्टि की रचना का संकल्प लिया. उस समय सम्पूर्ण ब्रह्मांड में घना अंधकार व्याप्त था. समस्त सृष्टि एकदम शांत थी, न कोई संगीत, न कोई ध्वनि, केवल एक गहरा सन्नाटा था. इस स्थिति में त्रिदेव ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता की याचना की.
जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने तुरंत ही ब्रह्मांड की रचना की. कहा जाता है कि मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से सृष्टि का निर्माण किया. मां के चेहरे पर फैली मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रकाशमय हो गया. इस प्रकार अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना करने के कारण जगत जननी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है. मां की महिमा अद्वितीय है.
मां का निवास स्थान सूर्य लोक है. शास्त्रों के अनुसार, मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं. ब्रह्मांड की सृष्टि करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर जो तेज है, वही सूर्य को प्रकाशवान बनाता है. मां सूर्य लोक के भीतर और बाहर हर स्थान पर निवास करने की क्षमता रखती हैं.
मां के मुख पर एक तेजोमय आभा प्रकट होती है, जिससे समस्त जगत का कल्याण होता है. उन्होंने सूर्य के समान कांतिमय तेज का आवरण धारण किया हुआ है. यह तेज केवल जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा द्वारा ही संभव है। मितेश कुमार सिन्हा डिस्ट्रिक्ट ब्यूरो चीफ 151045769