मां काली का दरबार संगीत की स्वरलहरियों के साथ ही भक्तों के जयकारे से गूंज उठा। कलाकारों ने गायन, वादन और नृत्य के जरिये माता के चरणों में हाजिरी लगाई। मध्यरात्रि तक भक्ति संगीत और भजनों की गंगा में संगीत साधकों के साथ श्रद्धालु भी गोते लगाते रहे। मां काली का पंचमेवा से शृंगार किया गया।शुक्रवार की शाम को संगीत समारोह में डॉ. ममता टंडन की शिष्य मांडवी सिंह, श्रुति सेठ, व्याख्या श्रीवास्तव, अनुकृति व शांभवी सेठ ने समूह कथक नृत्य से गणेश वंदना के साथ शुरुआत की। इसके बाद जय जय जग जननी... के साथ पारंपरिक कथक की प्रस्तुति करते हुए दादरा में राधा कृष्णा पर आधारित भाव नृत्य छोड़ो मोरी बहिया कन्हाई... पेश किया। नृत्य के दौरान उन्होंने युद्ध क्षेत्र में घोड़े के दौड़ने की आवाज और बारिश की आवाज घुंघरूओं से निकाली तो श्रोता भी वाह-वाह कर उठे।इसके पूर्व द्वितीय निशा में मंदिर के महंत पं. ठाकुर प्रसाद दुबे ने माता काली को पंचामृत स्नान कराकर नूतन वस्त्र आभूषण से सुसज्जित कराया। इसके बाद काजू, किशमिश, बादाम, छुहारा, मखाना और नारियल से बनी माला से मां का शृंगार किया गया। प्रधान पुजारी पं. विकास दुबे काका गुरु ने आरती उतारी। सायं काल भाजपा संस्कृति प्रकोष्ठ के संयोजक गीतकार कन्हैया दुबे केडी के संयोजन में सुप्रसिद्ध सितार वादक पं. देवव्रत मिश्र व पं. कृष्ण मिश्रा की पिता पुत्र की जोड़ी ने सितार पर युगलबंदी की।